बहिरी ह इतरावत हे

जम्मोझन ऐके जगह जुरियाये,
बहिरी धरे मुस्कियात
फोटू खिंचावत हे,
अउ बहिरी मन के बीच,
मंजवा मचावत हे।
कचरा के होगे हे बकवाय
ऐती जाय कि ओती जाय,
पुक बरोबर उड़ियावत हे।
एइसन तो स्वच्छ्ता अभियान ल
आगू बढ़ावत हे,
वेक्यूम क्लीनर ह
कुड़कुड़ावत हे
बहिरी ह इतरावत हे।
Varsha Thakur1

 

 

 

 

वर्षा ठाकुर

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5 Thoughts to “बहिरी ह इतरावत हे”

  1. Bahut badia. Mujhe apni school ki kavitae yaad aa gai.

    1. varsha thakur

      पसंद आइस तेखर खातिर बर धन्यवाद।

  2. आज के प्रसंग की बहुत अच्‍छी कविता ।

  3. शकुन्तला शर्मा

    वाह वर्षा ! कतका बढिया लिखे हावस तैं हर । मज़ा आ गे । वो दिन बहिरी बिसाय बर गए रहेंव तव सब झन मोला देख के हॉसत रहिन हे अऊ बेचइया टुरा ह ” कय ठन देववँ ओ दायी ? ” कइके हॉस – हॉस के पूछत रहिस हे ।

    1. varsha thakur

      पसंद आइस तेखर खातिर बर धन्यवाद।

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