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गोठ बात

बाल साहित्य के पीरा

आजकल बाल साहित्य देखे म नई आवय। दूकान बाजार म लइका मन ल बने पुस्तक भेंट देना हे, सोच के कहूं पुस्तक मांगेस तव दूकान वाला सोच म पर जथे। कहिनी पुस्तक तो अब है नहीं। जेन हावय तेन दिल्ली प्रकासन के कुछ लोककथा सरिख पुस्तक मिलथे या फेर पंचतंत्र के कहिनी सरिख बड़े-बड़े जानवर मन के चित्र संग कहिनी चिक्कन पेपर म रहिथे। जेखर कीमत ल आन मनखे दे नई सकय।गांधीजी के विचार, ‘लइका के शिक्षा अपन भासा (बोली) म होना चाही।’ ये बात ल धियान म रखके अपन भासा म सब राज्य सिक्छन करत हावय। हमर छत्तीसगढ़ म घलो आठवीं तक पुस्तक हावय। जेमा छत्तीसगढ़ी पाठ हावय। ओमा जतका कहिनी हावय तेन ह हमर बाल साहित्य हावय। येखर अलावा मुरारीलाल साव के कविता संग्रह ”हम खेलबो घरघुंदिया” अउ कहिन के संग्रह देखे म अइस। एखर गंज अकन बाल कहिनी हमर मड़ई म छपे रहिस हे। बाल गीत लखनलाल गुप्त के ”हाथी घोड़ा पालकी” के नांव ले छपे रहिस हे। डॉ. पीसीलाल यादव के ‘सरगनिसैनी’ 2008 म आइस। एखर बाद कोनो भी बाल साहित्य देखे म नइ आय हावय। शिवशंकर शुक्ल के बाल साहित्य के धूम आज ले हावय। छुटपुट बाल कहिनी राघवेन्द्र अग्रवाल अउ किसान दीवान के छपत रहिथे। राघवेन्द्र अग्रवालजी ह हमर महापुरुष मन के संस्मरन अउ जीवन के महत्वपूर्ण घटना मन ल लइकामन बर छत्तीसगढ़ी म लिखे हावय। जोन ह संग्रहनीय हे।
छत्तीसगढ़ राज बने के बाद भी हमर बाल साहित्य बर कोनो नई सोचिन। कविता के अइसे धार बोहावत हावय जेन ल अपने लिखो अउ अपने पढ़ो होगे हावय। आज ये साहित्य बहुत जरूरी हावय। आज कम्प्यूटर, टीवी के जमाना म लइका के रुचि पुस्तक पढ़ाई ले हट गे हावय। आज के लइका कार्टून चेनल या फेर फिलिम ल मन लगा के देखथे या फेर फिलिम ल मन लगा के देखथे। मनोवैज्ञानिक रूप ले कहे जाथे के लइका ल कहानी सुन के ओला कल्पना करे ले जादा अच्छा लागथे जब कहिनी पात्र ह चलत-फिरत दिखथे। येमा लइका ल अपन दिमाग ऊपर जोर डारे के जरूरत नई राहय। कहिनी चित्र रूप म दिखत रहिथे। कहे जाथे के लइका मन ल चित्रकथा बने लागथे। फेर ओर पात्रमन सच म चले-फिरे अउ बोले ले लग जाथे तब तो लइका ल मजा आ जथे। आज ओखरे सेती कार्टून चेनल अधिक चलत हावय। गांव-गांव म चेला देखत हावयं। यदि ये चेनल छत्तीसगढ़ी म चलय? या येखर डबिंग छत्तीसगढ़ी म करके देखाय जाय। तब कइसे लगही। येला सोचना चाही। हमर लोक कहिनी, बाल कहिनी के कार्टून या फेर एनिमेशन फिलिम बनना चाही। फिलिम बनइया निर्माता मन ल घलो सोचना चाही के पइसा ही कमाना उद्देश्य नहीं, एक सुग्घर समाज के निरमान करना घलो उंखर जिम्मेदारी आय।
आज बाल साहित्य के लेखन बहुत जरूरी हावय, यदि समाज कार्टून अउ एनिमेशन डाहर जात हावय। तव हमर भासा ल लेके काबर नई जान? बाल साहित्य के रूप कुछु भी होवय याने फिलिम, चित्रकथा या फेर कहिनी कविता के रूप म सब स्वीकार हे। फेर परयास करना बहुत जरूरी है। हर बाल दिवस म ये साहित्य के परदरसन राजभासा आयोग ल करना चाही। येखर ले बाल साहित्य लिखे म सबला रुचि होही। अच्छा बाल कहिनी या फेर चित्रकथा ल पुरस्कृत घलो करना चाही। छत्तीसगढ़ी समाज म बगरे बाल साहित्य सबके आगू म आ जही। हमर छत्तीसगढ़ के लइका अपन भासा म अपन कहिनी ल पढ़ही। तब ओखर रुचि पढ़ई म होही। हमर बाल साहित्य के पीरा घलो मेटाही।

सुधा वर्मा

संग्रह के उद्देश्य से यह रचना देशबंधु के मड़ई परिशिष्ठ से साभार लिया गया है.