एक दिन, अड़बड़ खुसी मनावत रिहीन मनखे मन। पता चलिस – कुकुर, मनखे ल चाब दिस, अऊ कुकुर मरगे। इही परगति ल तिहार कस मनावत रहय मनखेमन। इही समे ले कुकुर ल मनखे के सेवा बर मजबूर होये बर पर गिस।
समे नहाकत कतेक लागथे। परगति सबो के होवत रहय। तभ्भो ले कुकुर अभू बड़ डर्राये। एक घांव जीत के सुवाद पाये मनखे, कुकुर ल मजा चखाये के कोन्हो मउका हाथ ले नि जावन दे। परेसान कुकुर, एक दिन हबक दीस। फेर ये काये? न कुकुर मरीस, न मनखे। सरी दुनिया म खलबली माचगे। कोन्हो ल बिसवास नि होइस। मनखे के परगति म परस्नचिन्ह लग गे। बिग्यानिक मन बर सोध के बिसे होगिस। बिग्यानिक मन के दावा रिहीस के, अइसन होईच नि सके के, कोन्हो दूसर परानी, मनखे ल चाबय अऊ जिंदा बांच के निकर जाये। ओमन कहय – चबरहा जीव कुकुर नि होही, मनखेच होही।
इही वो समे आये, जब कुकुर अऊ मनखे के दोसती होईस। अभू कुकुर अऊ मनखे एके खटिया में सूते लागिन, एके संग खाये लागिन। तरपोंरी ले गोदी म पहुंच गे कुकुर। परतियोगिता अभू ले चलथे, फेर दोसताना होगे हे। एमा कभू मनखे जीतत हे, कभू कुकुर। सोंचे बर बिबस हे मनखे, ये काये, काकर अऊ कइसे परगति?
हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा