मास्टर कहे के मतलब, मास्टर माइंड नो हे, फेर आजकल तो कलजुगी इस्टाईल के गुरू हर, अपन ला चाल्स सोभराज ले कोन्हों कम नई मानय । फोकट चंद अउ घिस ले चंदन, ऐमन ला पोगा पंडित अउ भकला महराज के उपाधि ले घलो नवाज अउ जाने जाथय । फेसन के चिखला सहर, महानगर भर मा हावय, अइसन न हे, आज के माहोल मा तो गली-कूचा अउ खोर-खोर मा येहा बगरे हावय । तेमा कोन कहाय, ओ चिपरू, मंदू अउ लडबडहा मनखे मन करा घला खिसा मा मोबाइल ह चटके रहिथय । इसकूल म मोबाइल के परितबंध कानून कइ घांव बनिस अउ बनते रही, फेर कब पुख्ता बनही फेर नई, तेला तो बडका गुरू रइपुर वाला मन जानही । कहे भर मे अउ कागद में गोल-गोल रानी, इता-इत्ता पानी के खेल खेले मा, लइकामन का, कोनो नइ अघाय । अइसे कर सिकछा विभाग के करम हावय ।
गांव तीर के इसकूल अउ ओमा नवां-नवां मटमटही फेसनहिन अउ चमकूलहिन मेडम के पोस्टिंग हावय । दसबज्जी इसकूल आय फेर गियारा बजती मा, रोज दिन चपरासी फिरंता करा फून आही – इसकूल खुल गे का ? पराथना होगे का ? अउ मेडम मन आ गे का ? गोल्लर गुरूजी आगे का ? मोर ककछा के सब्बो झन लइका मन आये हे का ? अउ रंग रंग के परसन ला सुनत-सुनत फिरंता के मइनता डोल जथय ।
निस दिन नवां-नवां, रंग बिरंगी बहाना – आज हेड आफिस जावत हों, राज सर संग ओखर फटफटी मा आहूं । मोर गरहजरी झन लगाही कोनो हा । उहिती एसकालर सिप अउ कनिया परोतसाहन के रकम के जानकारी घलो लेना हे । लइका मन के कापी ला तिही हा जांच देबे, अउ बाठू गुरूजी काहीं कही त फेर में हा आके ओखर ले निपटत रहूं । अवइ-जवइ मा दू घंटा पहा गय, त इसकूल के डेरउठी मा पहुंचिन हावय । आते साथ मधियान भोजन झडकिन, पेट थोरकन अघाईस अउ अगया कम होइस त रंधइया ला मार बखान डारिस – रोज दिन उही कोचरहां आलू अउ सोयाबीन बरी ला देख डारे हे । सरकार कतकोन पुरोही फेर इखर नियत खोट्टी, कभू कम नइ होवय । जब रांधही ते फकत सरहा-गलहा ला, सम्मार होवय चाहे सनिच्चर, इखर सरी दिन सनी माढे रहिथय । फेर काय करबे खायेच ल परथे, तिर-तखार मा कोनो किरहा-खद्दू, भडू मन के होटल ढाबा घलो नइ हावय ।
इसकूल के आधा बेरा ढरक गे त मेडम जी हा किलास रूम मा आइस, लइका मन ला बड खुसी मा जय हिंद मेडमजी कहि के सांस भर मा कोल-बील कस जय हिंद मनइस । ततकेच बेरा मेडम के बेग मा माढहे मोबाइल के घंटी बाजे लागिस – करेजी किया रे, घेरी बेरी किया रे …. काय करेजी ते । मेडम बोलिस – हलो, मेहा मोंगरा बोलत हंव । ओती ले बवाज अइस – मेहा तोर दाई ओ बेटी । काय करत हस ओ, तोर इसकूल खुलगे का ? – पांव परत हों दाई, ददा के जर हा बने होइस का ? अउ नवां भउजी के लेवइया मन आगे का ? अउ छोटे बहिनी दसमत ला कब लेबर जाहू ? अब सूरू होइस ते कहां रबकने वाला हे, आधा-पउन घंटा-दू घंटा बीत गेय । एती चपरासी ह पूरा छुट्टी के घंटा घलो बजा डारिस । अइसे-तइसे इसकूल के पढई चलत हावय । फेर कोनो ला काहीं सिकायत नइ हे । काबर कि मेडम आये त, गांव भर के मनखे ला बड निक लागय अउ इसकूल ह घलो गदगद बोलथय । अब गांव-गांव के सरकारी इसकूल घलो, हाइटेक होगय हावय । इही ला तो कहिथय – नवां बिहान होगय ।
राजाराम रसिक
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