”बरतिया किथे कईसे गउंटिया जानत हस, हमन राउत हाथ के पानी नी पीयन तेला। हमन बड़े कबीरहा हरन। हमन नई खान तोर जेवन ल। हमन छोटे नई होवन। गउंटिया हा हाथ जोर के खड़ा होगे। फेर बराती मन टस के मस नी होईन। लगिन के बेरा हा निकलत रिहिस। दमाद बाबू बराती मन ल किथे हमन धरम के रखवारी करइया कबीरपंथी हरन। फेर कबीर के बताय रद्दा ल नी जानेन।”
सहर के तीर म लगे एक ठन गाय बरहापुर रहाय। जिहां खेती किसानी ले भरपूर एक झन किसान रहाय। कतको गाड़ा के धनहा रहाय वोकर। तेकर सेती वोला गउंटिया कहाय। वोकर तिहारू नाव रहाय। जेकर दु झन बाबू अउ एक झन नोनी रहाय। नोनी अनिता ह सहर जाके अब्बड़ पढ़-लिख डरिस। येकर भाई बड़े रहाय तेकर सेती उंकर बर बिहाव होगे रहाय। नोनी भर एके झन बांचे रहाय। नोनी ह गउंटिया के दुलौरिन हरे। अतेक पढ़े-लिखे के बाद घलो अपन नौकर-चाकर मनला अनिता हा कका के सिवाय दुसर भाखा कोनो ला नी केहे हावय। वोहा गउंटिया भरके नोनी नोहे। सबो गांव भर के नोनी हरे। गउंटिया हा अपन सबो कोराबार ल लईका मन के हिल्ले लगाय बर सोचत हाबे। फेर पहिली बेटी के हाड़ म हरदी लग जाय कहिके संसो जादा हे।
घर के गाय गरू, गोबर-माटी, पानी कांजी दवा दारु के बूता घर अमरु पहाटिया कहात लागे कोनो बूता बर कभू तियारे ल नी लगे। घर जादा संसो अपन मालिक के कारज म रहाय। अउ जतका मजा काकरो घर सउंजिया चरवाहा म नी मिलिस। वोकर ले जादा मजा कइही अमरु पहाटिया ल मिलत हे। सादा खानपान अउ सादा विचार रखनेवाला कबीर पंथ गउंटिया के मन म अपन बेटी ल घलो अपन पंथ म बिहाय के सोचत रिहिस। थोरिक दिन म गउंटिया के सोचे मुताबिक बने असन दमाद घलो मिलगे। दमाद ह सहर के बड़े जान ऑफिस म बहुत बड़े ऑफिसर हावे।
कोरी-कोरी रुपिया तनखा म झोंकथे। फेर देखे म घलो कतेक सिधवा रहाय। वोला देखके कोने नी कहाय अतेक बड़ नौकरी-चाकरी वाला होही कहिके। जईसने ससुर वईसने बेटी-दमाद। राम जानकी के जोड़ी बने फबत हावे। गांव भर उछल मंगल मनात हे। पहाटिया घलो घर-द्वार ल लिपे-पोते ल धरलिस। सबो डहान तियारी चलत हे। पहाटिया के मया नोनी बर अब्बड़ हे। आघु-आघु ले सबो काम बूता ल करत हे। जईसे वोकरे नोनी के बिदा होवैय्या हे। नोनी ह पहाटिया ल घलो कका सिवाय दूसर भाखा नी केहे हे। येकरे सेती अनिता के लईकपन ह पहाटिया के आंखी म झूलत हे। तरी-तरी आंखी के आंसू ह बोहात हे। अउ ऊपर ले बेटी के अपन घर जायके खुसी के आंसू ह छलकत हे। बिहाव के लगिन धरागे सगा-सोदर आय के बेरा होगे। सबो अपन काम बूता म लगे हे। बिहाव के दिन तेल-हरदी चढ़त हे। घर ह मनसे ले सईमों-सईमो करत हे। बिहनिया ले बराती मन आहीं तिंकर बेवस्था म कोनो कमी झन होवय तेकर जोरा होवत हे। गउंटिया ल फिफियानी बरोबर लगत हे।
पहाती बेरा, बरतिया मन तरिया पार म आगे। बड़े जोर-सोर ले परघा के बराती मन ला लाय गिस। बड़ आदर सनमान संग पंगत बईठारे गिस। पहाटिया खाए-पिए ल तियाग के मरो जियो पानी ला डोहारत रिहिस। पहाटनिन ह पंगत बर जेवन के बेवस्था करत रिहिस। बराती मन के नजर पहाटिया ऊपर परिस। न तुरते गउंटिया ल हुत करईन। गउंटिया सबो बूता ल तिरिया के धरा-पसरा बरतिया मन कर अईस। बरतिया किथे कईसे गउंटिया जानत हस हमन राउत हाथ के पानी नी पीयन तेला हमन बड़े कबरहा हरन हमन नई खान तोर जेवन ल हमन छोटे नई होवन। एक टेम नी खाबो ते लांघन नी मर जान। गउंटिया हा हाथ जोर के खड़ा होगे। फेर बराती मन टस ले मस नी होईन। ये गोठ ल गउंटिया के होवैय्या दमा द अऊ बेटी मन देखत-सुनत रिहिन। लगिन के बेरा ह निकलत रिहिस। दमांद बाबू-बराती मन ल घलो हमन धरम के रखवारी करैय्या कबीरपंथी हरन। फेर कबीर के बताय रद्दा ला नी जानेन। जानतेन त अईसे नी होतीस। कबीर साहेब तो अपन जीवन ल ऊंच-नीच जात-पात ल मेटाय बर जतका होईस वोतका करिस तेकरे सेती नाव कर्इिस। बराती मन ला चेतात किहिस तुमन ल काय करना हे तेला सोच लेवव। येती अपन बिहाव के फेरा के तियारी करके फेरा होगे। बराती मन देखते रहिगे। दमाद बेटी ला पहाटिया असीस दिस। येती थाना कछेरी म रिपोट होगे। गांव म पंचईत, पुलिस, दरोगा, समाज के मनखे जुरियागे। सबो मन दमाद बेटी के करनी के सराहना करिन। बराती मन के मुहू करिया होगे। अउ वो दिन ले अपन करनी के पछतावा आज तक ले वोमन करत हें। येती गांव म वो दिन ऊंच-नीच, छोटे-बड़े भेदभाव के मनसे ल बांटे के बनत रद्दा हा सबर दिन बर मुंदागे।
दीनदयाल साहू
प्लाट न. 429, मॉडल टाउन
नेहरूनगर भिलाई
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कोया पाड : बस्तर बैंड
गांव के महमहई फरा
Sughghar au Shikshprad lagis….Jai Ram..Jai Johar…Jai 36garh.
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