भासा कइसना होना चाही?

छत्तीसगढ़ी भासा के लेखन ऊपर प्रस्न उठत हावय। कइसे बनिस ओमा कहाँ-कहाँ के कतेक सब्द समाय हावय। येला सब जानत हावयं। आज दूरदर्शन के हिन्दी कइसना हे येला सब सुनत हावयं। बोलचाल के हिन्दी अउ लिखे के हिन्दी अलग-अलग हावय। साहित्यिक हिन्दी अलग हावय।
छत्तीसगढ़ी के संग घलो अभी अइसने होवत हावय। ये ह एक संधि काव्य आय। मैं अइसना समझथंव आज हिन्दी म अनेक सब्द अंग्रेजी समागे हावय वइसने छत्तीसगढ़ी म घलो अंग्रेजी हिन्दी के सब्द समागे हावय। येला स्वीकारे बर परही। लेखन म घलो बहुत फरक दिखाई देथे। एकरूपता लाना बहुत कठिन होगे हावय तभे तो राजभासा आयोग अपन तीन साल के कार्यकाल म घलो येला उजागर नई कर सकिस।
भासा एक बोहावत नंदिया आय। नंदिया म बरसात के पानी के संग अतेक, माटी-गोटी, गंदगी बोहा के आथे जेन ल नंदिया के पानी ह अपन म समाहित कर लेथे। जेन ह ओमा घुर नई सकय, जेन ल नंदिया के पानी ह आत्मसात नई कर सकयं तेन ह उफना के तीर म आ जथे।
भइगे अइसने भासा के संग होथे। विकास के संग नवा सब्द बनथे ये सब्द ल छत्तीसगढ़ी या फेर हिन्दी भासा में सामिल करे जाथे। तालमेल बइठगे। तब ये सब्द वो भासा म चले ले लगथे। बाद म दऊंड़थे। एखर बर दू सब्द के उदाहरन लेय जा सकथे। ‘लौह पथ गामिनी’- हिन्दी सब्द आय। ये सब्द हिन्दी म चल नई पाइस। ट्रेन सब्द सहज-सरल आय इही ह चलथे। ये ह तो अंग्रेजी के सब्द आय। ऐखर बर कोई विरोध नई होईस। ‘ट्रेन’ के उच्चारन छत्तीसगढ़िया मन नई कर पईन (एक वर्ग विसेस)। तब येला ‘टरेन’ कहे गीस। जेन मनखे एखर उच्चारन कर सकत रहिस हे तेन मन ट्रेन कहिन। मैं ह अपन घर म लइकापन ले ‘ट्रेन’ हा सुनत आत हंव। दूसर सब्द हावय ‘फिल्म’ जेखर चलचित्र ह हिन्दी सब्द आय फेर ये सिरिफ साहित्यिक भासा बनगे। सामान्य लेखन अउ बोले म ‘फिल्म’ सब्द के उपयोग होथे। छत्तीसगढ़ी म येला ‘फिलिम’ या फेर ‘फिलीम’ लिखथन। ये लेखन उच्चारण के आधार ले होथे। भासा में ये तय नहीं करे गे हावय के येला कइसे लिखना हे। फेर ये अंग्रेजी सब्द के उपयोग छत्तीसगढ़ी म होवत हावय।
अइसने कई ठन सब्द आय जेला छत्तीसगढ़ी लिखे ले परथे, एक वाक्य म कई सब्द होगे तब ‘बाल के खाल’ निकलइया मनखे ल लगथे के ये ह हिन्दी आय। कई ठन ठेठ सब्द ल आज लिखे के जरूरत नइए ओला सिरिफ इसकूल म पढ़ाय के जरूरत हे। यदि वो सब्द ह सिखागे तब तो अरथ बताए के जरूरत होही। कुची, राचर, जेवन, नून जइसे सब्द ल आज के लइका नई समझ पाय। कोई छत्तीसगढ़ी लेख लिखबे तब ओला एक वर्ग विशेष बर लिखत हन के सब बर लिखत हन। सब बर लिखना हे तब ठेठ ल छोड़ के लिखे बर परही। जइसे साहित्यिक हिन्दी बोलना अउ लिखना एक वर्ग विशेष बर होथे। फेर छत्तीसगढ़ी तो कई तरह ले बोले जाथे। जाति विशेष के सब्द उच्चारन, छेत्र विशेष के छत्तीसगढ़ी सब्द के उच्चारन अलग-अलग होथे। हर वो मनखे जब छत्तीसगढ़ी ल पढ़थे तब वोला कुछ न कुछ गलत लगथे। गलती निकाले के नहीं सच ल स्वीकारे के जरूरत हावय, अउ सबके लिखे छत्तीसगढ़ी ल पढ़े के जरूरत हे। तीनों स, श, ष, के जगह म स लिखना हे, काबर के छत्तीसगढ़ी म इही स के उपयोग होथे। फेर बड़े-बडे साहित्यकार म ये ‘श’ के उपयोग करथे। छेत्र म ‘त्र’ के उपयोग होय हावय ‘छेत्र’ उच्चारन सही हावय ‘छेतर’ कोनो नई काहयं। प्रकृति के जगह ‘परकिरती’ के उच्चारन हो सकथे, ‘प्रकार’ के जगह परकार के उपयोग हो सकथे फेर ‘क्रम’ ह ‘करम’ नई हो सकय। ये मेर ‘क्र’ के प्रयोग होबे करही।
छत्तीसगढ़ी म मुँह फैला के बोले जाथे इही कारन ले हिन्दी के प्रयोग करबे त फैला के करे बर परथे, त लिखे म घलो वो सब्द फैल जाथे। सब विवाद ले बाहिर, दूसर के कमी बताए बिगर लिखे के जरूरत हे। लेखन या छत्तीसगढ़ी भासा बोले म बाहिर के मन आगू आत हावय, हमन सब्द म अटके हावन। छत्तीसगढ़ी बोले या लिखे बर गाँव म रहे के जरूरी नइए, भासा ल समझना जरूरी हे। आज गांव के भासा घलो बदलत हावय- ‘ग्रेवी, कोल्ड, बकेट, पार्सल, वाकिंग, फ्राई, टोमेटो, एप्पल, कीचन, ड्राईंगरूम, बेडरूम, गेट’ सरिख सब्द गांव के अंदर पहुंच गे हावय। गांव के मजदूर सहर आथे तब अपन ठेठ छत्तीसगढ़ी ल लेके आथे। सहर के मन वो सब्द ल सीखथे। नवा सब्द पानी के धार सरिख इंहा-ऊंहा पहुंचत हावय। अइसना सब्द जेखर जरूरत नइए। आज के समय म उपयोग म नई आवय तेन ह तिरियावत हावय। ये ह समय के मांग आय, उतर के ठेठ छत्तीसगढ़ी जाय के जरूरत नइए। भासा के बोहावत नंदिया म जब ये सब समाहित हो जही तब भासा के एक अथाह सागर बनही। ओमा ये ठेठ सब्द मन सागर के तल म मूंगा, मोती सरिख बइठे रहिहीं। अनुकूल वातावरन पाके फेर एक बेर अपन होय के एहसास देवाहीं। भासा अइसना होना चाही।
सुधा वर्मा
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