भोंभरा : कबिता

भुइंया ह बनगे तात-तवई
बंडोरा म तोपागे गांव-गंवई
नइये रूख-राई के छईहां
रूई कस भभकत हे भुईंहां
रद्दा रेंगइया जाबे कती करा
थिराले रे संगी, जरत हे भोंभरा
गला सुखागे, लगे हे पियास
कोनो तिर पानी मिले के हे आस
तरर-तरर चूहत हे पछीना
जिव तरसत हे, छईहां के बिना
का करबे जाबे तैं कती करा
थिराले रे संगी, जरत हे भोंभरा
कछार म नदिया के कलिंदर तै खाले
पीपर तरी बईठके थोरिक सुरता ले
नदिया के पानी ह अमरित कस लागय
बिन पानी मोर भाई, परान नई बांचय
सुन्ना हे रद्दा, गली, कलेचुप के हे पहार
थिराले रे संगी, जरत हे भोंभरा
गणेश राम पटेल
बिरकोनी, महासमुन्द

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One Thought to “भोंभरा : कबिता”

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