रिमझिम रिमझिम
सावन के फुहारे ।
चंदन छिटा देवंव दाई
जम्मो अंग तुहारे ।।
तरिया भरे पानी
धनहा बाढ़े धाने ।
जल्दी जल्दी सिरजव दाई
राखव हमरे माने ।।
नान्हे नान्हे लइका
करत हन तोर सेवा ।
तोरे संग मा दाई
आय हे भोले देवा ।।
फूल चढ़े पान चढ़े
चढ़े नरियर भेला ।
गोहरावत हन दाई
मेटव हमर झमेला ।।
रमेश कुमार सिंह चौहान
सुरता : छत्तीसगढ़ी भाषा अऊ छत्तीसगढ़ के धरोहर ल समर्पित छत्तीसगढ़ी काव्यांजली