अनिल जांगड़े गौंतरिहा के छत्तीसगढ़ी गीत के किताब महुंआ झरे झंउहा-झंउहा पढ़े बर मिलीस। पढ़के मन ला संतुष्टि मिलिस गीत म सबो परकार के रस के सवाद हवय।
छत्तीसगढ़ी महतारी के सुग्घर बरनन अइसन बिखर गे हे। ओकर परती मन पियार अउ सरध्दा से झुक गे। पहिली गीत म कवि कहत रहिन- ‘सरग बराबर ये भुईया जिंहा बसे हे संत गियानी- चरन धोवत गंगा-जमुना हे, अमरित जस हवे पानी।’ अब्बड़ पावन अउ सुग्घर बरनन हवय। अउंटत लहू चूसे पसीना म ‘दया मया के तिरिथ कुरिया नवा सुरूज गदहईया के’ कहिके कवि छत्तीसगढ़ी महतारि के गौरव करथे। ‘गियान के अंजोर म कवि ह निरासा छोंड़व अऊ मिहनत के निचोड़ म अपन भाग लिखव के संदेस बताथे। छत्तीसगढ़ी भाखा बर कवि कहिथे- ‘माटी ह महके चंदन जईसे, तइसे ये बोली बोलइया, छत्तीसगढी हे गुरतुर भाखा, मनभावन ये बढ़िया कवि के मन म पीरा हे लाल बंदरवा के अईताचारी। देख फाटे धरती के छाती।’ बीरनारायण के बलि दानी बर कवि सीस झुकाथे। जिनगी बर कहिथे- मिलही माटी म काय एक दिन झिन करव गुमान रे… कवि अलग-अलग राज के एकता के संदेश कहिथे- ‘हमला हर जनम म तिरंगा के लाज बचा के रखना हे। कवि दाई-ददा के सम्मान म कहिथे ‘दाई-ददा ले बढ़के दुनिया म कोनो दूजा नईए।’ कवि हमला उपदेस देथे ये जिनगी अमोल हे, ओला नसा में झन गंवा।’ का होही राम म कवि दुनियादारी के चिंता म जल के कहथ रहिन ‘अब तुहीच मन हमर बिगड़ी ल बनाव।’ गउगोहार, छप्पन भोग गांव के गियान के मंदिर आगे किंतु राज म कवि के बरनन छमता, निसरग के परति परेम, परकिरति बरनन के सुग्घर दरसन होथे। जइसे दुलहन साज करे भुइया के सिंगार धरे।’ ‘कोयली बोले मंदरस मया के घोले’ अब्बड मीठ लगथे। ‘मनखे-मनखे सबो एक बराबर हंडिया म जईसे हे भात जइसन विचार मन ला बने भा जाथे… हली-भली हलका फबका गीत हवय। पंछी के कऊन ठिकाना हे? जीवन के सच्चाई ला कहिथे। कुल मिलाके कवि के गीत, मनला मोह लेथे उपदेस देथे जिनगी बर कुछु संदेस कहिथे। गीत माला ल पढ़त कहे के इच्छा होथे ये ह कवि के रचना के सफलता हवय। कवि जांगड़े जी ला हमर सुभकामना। जम्मो गीत म महुंआ के महक झलकथे।’
पुस्तक का नाम- मऊंहा झरे झंउहा-झंउहा
कवि- अनिल कुमार जांगड़े
प्रकाशन- छत्तीसगढ़ी राज्य भासा समिति बलौदाबाजार
मूल्य- 25 रुपए
नीला भाखरे
ब्लाक नं. 184 सेक्टर 1
गीतांजलि नगर रायपुर