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मन डोले रे मांग फगुनवा …. बादर के दिन म फागुन लावत हें भाई लक्ष्‍मण मस्‍तुरिहा

छत्‍तीसगढ़ के नामी कबि गीतकार साहित्‍यकार लक्षमण मस्‍तुरिहा कवि सम्‍मेलन म –

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साथियों मिलते हैं एक ब्रेक के बाद

4 replies on “मन डोले रे मांग फगुनवा …. बादर के दिन म फागुन लावत हें भाई लक्ष्‍मण मस्‍तुरिहा”

पूरा समझ तो नहीं आया मगर रंग जमा दिया होगा..पक्का!!

बहुत बढ़िया प्रस्तुति…

http://cgsongs.wordpress.com में पढ़त पढ़त गीत सुनों, अउ छत्तीसगढ़ी गीत संगीत के मजा लो.

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