मरहा राम के जीव

रात के बारा बजे रहय। घर के जम्मों झन नींद म अचेत परे रहंय। मंय कहानी लिखे बर बइठे रेहेंव। का लिखंव, सूझत नइ रहय। विही समय बिजली गोल हो गिस। खोली म कुलुप अंधियारी छा गे। बिजली वाले मन बर बड़ गुस्सा आइस। टेबल ऊपर माथा पटक के सोंचे लगेंव। तभे अचरज हो गे। मोला लगिस कि बिजली आ गे हे। खोली ह सीतल दुघिया रोसनी से भर गे। मुड़ी उचा के आंखी खोले के प्रयास करेंव फेर आंखी काबर खुलय? चउंधियाय कस हो गे। मन म डर समाय लगिस फेर विही समय मंदरस कस मीठ बोली सुन के मन आनंद से भर गे। कोई कहत रहय – ‘‘वत्स ! तोर मन के व्याकुलता ल मंय भलीभांति जानत हंव। तंय चाहे जइसन हस, मोला बड़ प्रिय हस। तोर उद्देस्य मोरे इच्छा ले प्रेरित हे विही कारन आज मंय तोर मदद करत हंव। जब तोर आंखी खुलही तब जउन जउन बात ल तंय सोंचत रेहेस फेर लिख नइ सकत रेहेस वो सब बात तोला तोर कापी म कहानी के रूप म लिखे लिखाय मिल जाही। ये ह वो कथा आय जउन ल मंय आज तक गुप्त रखे रेहेंव। फेर ये देस के जनता के दुर्दसा देख के एला प्रगट करे बर मंय विवस हो गे हंव। वत्स ! जउन ह ये कथा ल पढ़हीं-सुनहीं अउ तदनुसार आचरन करहीं, वोला जीवन म अपार सुख संपत्ति मिलही अउ स्वर्ग के प्राप्ति होही।’’
आंखी खुलिस त टेबल लेंप ह बरत रहय अउ वोकर खाल्हे, कापी म जउन कहानी ह लिखाय माड़े रहय वो जस के तस एदे हरे।
सबले पहिली खोजी चैनल म न्यूज आइस – ‘‘भूख से मौत। आदमी की भूख से मौत। मरहा राम की भूख से मौत। भोलापुर गांव में एक आदमी की भूख से मौत।’’
समाचार वाचक ह भीतर ले इहिच समाचार ल जोरदार स्टाइल म रहि रहि के दुहरावत रहय। चित्र म एक झन मोटियारी, जउन ह आधा सिसी रहय अउ एक झन डोकरी जउन पचासे साल के उमर म बुढ़ा गे रहय, लास तीर बइठ के कलप कलप के रोवत रहंय। डोकरी कहत रहय – ‘‘मंय का करो बेटा….. एक कप चहा घला तोला नइ मिलिस रे। अंहा…….’’ खाले समाचार के पट्टी चलत रहय जउन म एकेच ठन समाचार लिखाय रहय। ‘‘भूख से मौत……….।’’
देखते देखत जम्मों चैनल मन म इहिच समाचार सरलग आय लगिस।
मुख्यमंत्री अउ गृहमंत्री के टेलीफोन घनघनाय लगिस। एस.पी. अउ कलेक्टर के होस गायब हो गे। पक्ष विपक्ष के छोटे बड़े नेता अउ कार्यकर्ता, मानव अधिकार के मंतर पढ़इयां, पत्रकार अउ कलेक्टर, एस. पी. सब भोलापुर गांव डहर दंउड़े लगिन। सत्ता पक्ष वाले दिल्ली तक के नेता चिंता के दलदल म डूब गें। विपक्ष वाले मन के भाग खुल गे।
भोलापुर गांव राजमार्ग के किनारे बसे हे। डेढ़ दू हजार के आबादी होही। सहर नजीक हे। इंहा के मालगुजार मन के माल ह तो तइहा के सिरा गे हे, अब ले दे के गुजारा होवत हे। आठ दस एकड़ ले जादा के जोतदार अब इहंा एको नइ हे।
पइसा के लालच कहव कि पइसा वाले मन के दबदबा, सड़क तीर तीर के जम्मों जमीन किसान मन के हाथ ले निकल गे हें। अब कोनों खेत म राइस मिल खड़ा हो गे हे, कोनों म बड़े बड़े कारखाना बन गे हे, कोेनों म कालेज त कोनों म कालोनी आबाद हो गे हे।
गांव ले फर्लांग भर दुरिहा म एक ठन बड़ भारी कारखाना बनत रहय। का के कारखाना बनही तेला कोनों नइ जानंय। जे ठन मुंह ते ठन गोठ। कोनो कहय लोहा के कारखाना बनही, कोनो कहय कागद के कारखाना बनही त कोनो कहय दारू के कारखना बनही।
एकरे ले लग के मरहा राम के एक ठन खेत रहय। एक एकड़ के मालिक मरहा राम। जथा नाम तथा गुन। तन मन धन, सब प्रकार ले मरहच तो आय। कारखाना वाले मन वोला कतको लालच दिन, डराइन धमकाइन फेर मरहा राम ह अपन खेत ल नइ बेंचिस। अब कारखाना वाले मन दूसर उदिम करे के सुरू करे रहंय। सरासर नंगरइ अउ गुंडागिरी म उतर गे रहंय। मरहा राम के खेत ह अब गिट्टी मुरुम ले पटा गे। बड़े बड़े टरक खड़ा होय के सुरू हो गे।
मरहा राम के खेत ह कारखाना वाले मन के आंखी के किरचा बन गे रहय। एकर बिना कारखाना के नक्सा बनतेच नइ रहय।
कारखाना के मालिक ल न गांव वाले मन, न अतराब के मन, कोनों नइ चिन्हंय। ये कोती के वो रहवइया नो हे। दूसर डहर ले आ के कारखाना लगावत रहय। फेर नाम वोकर परसिध्द हो गे रहय; जोगेन्दर सेठ। अब का पता कि ये वोकर असली नांव आय कि नकली?
कारखाना के जम्मों कमइया मन तको विही डहर ले आय रहंय। एको झन छत्तीसगढ़िया नइ रहंय। गांव म आतिन, बजार हाट जातिन, नदिया तरिया जातिन, जोत्था के जोत्था, छुरी चाकू धर के। न तो गांव के दाई-बहिनी के इज्जत करंय न कोनों ल घेपंय। बात बात म मारपीट म उतर जावंय। गाना गावंय – ‘‘इहां के मरदवा कमजोर ब, अउरतिया सजोर ब।’’
बात सोला आना सच घला रहय। गांव के कोनो तो वो मन ल रोकतिन-टोंकतिन।
भगवान जाने आज का होइस ते। बिहिनिया मरहा राम ह रापा झंउंहा धर के खेत जाय बर निकले रिहिस। अब खेत के मेंड़ म कउहा रुख तरी वोकर लास चित परे रहय। वोकर बेवा दाई अउ वोकर आधासिसी घरवाली, लास तीर बइठ के कलप कलप के रोवत रहंय। वोकरे सीन टी. वी. मन म आवत रहय।
गांव म मुर्दानी छाय रहय। बैसाख जेठ के महीना। दिन के एक डेढ़ बजे होही। डर के मारे सब अपन अपन घर म ताला-बेड़ी लगा के खुसर गे रहंय। गली म बांड़ी बछरू के तको आरो नइ मिलत रहय। कुकुर मन जरूर अजीब अजीब अवाज म कुंकवात रहंय। मरहा राम के दाई अउ बाई के पाट दबइया, आंसू पोछंया कोनो नइ आइन।
रोवइ, गवइ अउ नचइ के एके हाल। सुनइया-देखइया नइ हे त नचइया ह कतिक देर ले नाचही अउ रोवइया ह कतिक देर ले रोही?
डोकरी सोंचथे – ‘‘हे भगवान! ये गांव के आदमी मन ल का हो गे हे। अतेक डरपोक अउ कायर कइसे हो गे हें। जम्मों झन चूरी पहिन के घर म काबर खुसर गे हें। ये दुनिया अउ ये गांव म तंय हमर बर एको झन इन्सान नइ बनाय हस?’’ वोकर दुख ह अब क्रोध अउ घृणा म बदल गे। दुख जब मर्यादा लांघ जाथे तब वोकरे ले हिम्मत उपजथे। डोकरी दाई के मन म क्रोध के ज्वालामुखी फूटे लगिस। वो ह बेटा के हत्यारा मन ल जी भर के कोसे लगिस।
कारखाना के कमइया परदेसिया टुरा मन वोती डोकरी के मजाक उड़ात रहंय। एक झन टुरा ह अपन संगवारी ल कहिथे – ‘‘देखा अवध बिहारी बाबू , इहां के मरद वाकई कमजोर ब। पर ये डोकरी को देखा, इहां के अउरतिया मन कतेक सजोर ब।’’
अवध बिहारी – ‘‘सच कहत हव रामपियारे भइया। इंखर आंसू पोछइया इंखर गांव म तो एको नहीं हैं। चला हमी मन इंखर सहारा बन जाई।’’
चार पांच झन टुरा मन आ के उंखर चारों मुंड़ा खड़े हो गें। डोकरी ल लगिस, यम दूत मन आ के खड़े हो गे हें। उंखर मन के भीतर के पिसाच उंखर आंखी म झांकत रहय।
राम पियारे – ‘‘ऐ बुढ़िया, तोहरे गांव वाले साले सब नामरदवा बा। पर तू फिकर न कर। हम सब मरदवा हैं न तुंहार मददवा खातिर।’’
अवध बिहारी – ‘‘ऐ डोकरी तुंहार बिटवा मर गइल, पर तुंहार बहुरिया हमार रहत रांड़ न होई। हम सब हैं न। अब हमीं को अपन बिटवा समझो। हो…हो….।’’
अवध बिहारी संग जम्मों झन हो….हो… करके हांसे लगिन। एक झन ह तो बहु के मरुवा तक ल धर लिस।
दाई रणचंडी बन गे। कछोरा भिरिस अउ टंगिया उबा के दंउड़िस। ‘‘खबरदार,मोर बेटी के मरुवा धरइया रोगहा राक्षत हो। बेटा के परान ल तो लेइच लेय हो अब, इज्जत घला लेना चाहत हो। गोंदी-गोंदी कांट के कुकुर कंउवा मन ल नइ खवा देहूं ते मंहू अपन बाप के बेटी नहीं।’’
परदेसिया टुरा मन सुकुड़दुम हो गे। चोर के कतका बल। सब अपन अपन परान बचा के भागिन।
वोतका बेर पीं…. पों…करत गजब अकन कार आइस अउ सड़क म खड़े हो गें। दाई ह जकही-भुतही कस टंगिया ल घुमातेच रहय, गरजतेच रहय।
कलेक्टर अउ एस. पी. दुनो झन उतर के चारों मुड़ा के मुआयना करिन। बड़ा चकरित खा गें। सोंचे रिहिन, घटना स्थल म हजारों आदमी के मजमा लगे होही। बड़ा उग्र धरना प्रदर्सन अउ नारा बाजी होवत होही। पब्लिक ह तोड़-फोड़ करत होही। पचासों पत्रकार मन सवाल पूछ-पूछ के जीना हराम कर दिहीं। फेर अइसन कुछू नइ होवत रहय। दुनों झन के जीव हाय किहिस। अब तो दुनों झन एकदम बेफिकर हो के गपियाय लगिन।
एस. पी. ह कलेक्टर के संसो ल देख के कहिथे – ‘‘अरे डोन्ट वरी सा’ब, हमार रहते कोनों चिंता करने का नाही। एकाध टाइम खाना नहीं मिला होगा, मर गया साला। साले छत्तीसगढ़ियों में दम ही कितना होता है?हमार देस म तो लोगों को कई कई दिन खाना नहीं मिलता, तब भी कोई नहीं मरता। वइसन दमदारी इंहा के भुक्खड़ों में कहां?’’
कलेक्टर – ‘‘मिस्टर सिंग, डोन्ट जोकिंग यार, बी सीरियस। कुर्सी कैसे बचेगी इसकी सोंचो। पत्रकारों को, सरकार और जनता को क्या जवाब दोगे, ये सोंचो।’’
– ‘‘अरे, कहना क्या? कह देंगे, बहुत दिनों से बीमार था, मर गया।’’
– ‘‘नो……..।’’
– ‘‘हार्ट फेल का मामला भी तो हो सकता है?’’
– ‘‘और सोंचो……।’’
– ‘‘जादा दारू पी के मर गया होगा साला।’’
-’’ व्हाट अ सिली आइडिया। और सोंचो यार।
– ‘‘सन स्ट्रोक से मार दें तो क्या हर्ज है?’’
– ‘‘गुड! व्हेरी गुड आइडिया। यह भूख से नहीं, सन स्ट्रोक, लू लगने से मरा है। आॅल राइट।’’
अब दुनों झन घटना स्थल कोती दंउड़िन। दू चार झन पुलिस वाले मन पहिलिच अगवा गे रहंय। पुलिस ल आवत देख के गांव के कोतवाल, जेकर अब तक कोई अता पता नइ रिहिस, सरकारी ड्रेस लगा के अउ छ फुट के सरकारी ठेंगा ल पटकत हाजिर हो गे।
अपन पार्टी वाले नेता मन ल आवत देख के सरपंच घला महुआ टपके कस टपक गे।
पुलिस अपन काम म भिड़ गें।
मरहा राम के आत्मा ह विही करा लदलद लदलद कांपत खड़े रहय। यम दूत ल देख के अउ जोर से कांपे लगिस। घिघ्घी बंधा गे रहय। हाथ जोड़ के लटपट किहिस – ‘‘मोला अउ झन मार ददा, तोर हांथ जोरत हंव, पांव परत हंव। आज ले खेत के नाम नइ लेवंव।’’
यम दूत चकरित खा गे। कहिथे – ‘‘तंय अतेक काबर कांपत हस रे मरहा राम के जीव। बैसाख जेठ के गरमी म तोला अग्घन पूस के कंपकंपी काबर छूटत हे? चल तोला लेगे बर आय हंव।’’
– ‘‘अंय, तंय कोन अस ददा?’’
– ‘‘यम दूत आवंव। नाम नइ सुने हस क?’’
– ‘‘सेठ के गुंडा मन सरीख दिखत हस महराज, विही पाय के डर्रा गे रेहेंव।’’
– ‘‘यहा का डर आय रे? आत्मा ल परमात्मा के अंस माने जाथे। निर्विकार माने जाथे। फेर तोर लदलदइ ल देख के मंय संका म पड़ गेंव।’’
– ‘‘का करबोन महराज। चारों मुड़ा ले आ आ के परदेसिया मन हमला चपकत जावत हें। उंखर गुंडागिरी म हमर आत्मा तको लदलदा गे हे।’’
– ‘‘जउन कहना हे, विहिंचे जा के कहिबे। चल जल्दी।’’
यम दूत ह मरहा राम के जीव के मुस्की बंधना बांध के यम लोक डहर रवाना हो गे। रस्ता भर मरहाराम के कंपकंपी चलतेच रहय। रस्ता म वैतरणी मिलिस न भवसागर। वोला पेटला महराज के परवचन के सुरता आ गे। यम दूत ल पूछथे – ‘‘कस महराज, भवसागर अभी कतका दुरिहा हे?।
– ‘‘भवसागर? अरे मूरख जीव! जिहां ले तंय आवत हस, विही तो भवसागर आय। इहां अउ कहां के मिलही?’’
– ‘‘अउ बैतरणी कब आही? मंय तो गउ दान घला नइ कर सकेंव महराज। काकर पूछी ल धर के नहंकहूं?’’
– ‘‘बैतरणी म तो तंय पहिलिच डूब चुके हस रे जीव। आदमी के जीवन हर तो बैतरण्ी आय। येला नहके बर गउ के पूछी के नहीं, हिम्मत, साहस अउ उत्साह के जरूरत परथे। तोर तीर तो कुछू नइ हे। कइसे पार नहकतेस? ये डहर कोनो बैतरणी नइ होवय।’’
मरहा राम चकरित खा के कहिथे – ‘‘यहा का कहिथस महराज। तब हमार गांव के पेटला महराज ह लबारी कहिथे क?’’
– ‘‘कोनों महराज मन लबारी नइ कहंय। तुंहर समझ म फेर रहिथे। सब होथय, फेर ये डहर नइ होवय। सब विहिंचेच, होथे ; धरती म।’’
अइसने गोठ बात करत दुनों झन यमलोक पहुंच गिन। गोठ बात म मरहा राम के कंपइ कम हो गे रहय, यमराज ल देखतेच फेर चालू हो गे।
यमराज ह दूत ल पूछिस – ‘‘दूत! ये ह कोन ए। कोनो छत्तीसगढ़िया तो नो हे ?डर के मारे लदलद लदलद कांपत हे। जल्दी येकर खाता बही खोल के बतावव तो।’’
चित्रगुप्त ह लकर-धकर खाता बही खोल के देखिस। पढ़ के सुनाइस – ‘‘नाम -मरहा राम, आत्मज -घुरवा राम, ग्राम – भोलापुर, छत्तीसगढ़…..।’’
यमराज – ‘‘बस बस बंद कर। एकर फैसला इहां नइ हो सकय। भगवान ह कालिच एक ठन आदेस निकाले हे। छत्तीसगढ़िया मन के नियाव आज ले विही करही। येला विहिंचे लेगव।’’
मरहा राम ह यमराज के बात सुन के खुस हो गे। वोला पेटला महराज के परवचन के सुरता फेर आ गे कि भगवान के दरसन करइया मन सोज्झे सरग जाथें।
दूत ह मरहा राम ल भगवान के दरबार म पेस करिस। मरहा राम के हालत देख के भगवान ल हंसी आ गे। हांसत हांसत कहिथे – ‘‘हरे! हरे! मरहा राम कोनों परदेसिया नो हे, छत्तीसगढ़िया आय। छत्तीसगढ़िया मन ल न हड़बड़ाय बर आय, न छटपटाय बर आय। न चालाकी आय, न हुसियारी आय। न लंदी होवंय, न फंदी होवंय। इंखर मेर न बुध्दिबल हे न बाहुबल। तब येला काबर अतेक मुस्की बंधना बांध के लाय हो। छोरो सब ल।’’
मरहा राम मने मन सोंचथे -’’हे प्रभु! एकरे सेती तोर नाम दीनबंधु हे।’’
मरहा राम के खाता बही खेले गिस। नाम – मरहा राम, आत्मज – घुरुवा राम, गांव – भोलापुर, छत्तीसगढ़, मौत के कारण – भूख।’’
मौत के कारण सुन के भगवान अकबका गे। माथा गरम हो गे। डपट के कहिथे – ‘‘का बोलेस? ये ह भूख म मर के आय हे? वाह रे निकम्मा छत्तीसगढ़िया हो, जीयत भर भूख मरथो ते मरथो, परान घला भूख म त्यागथो? सृश्टि म मंय ह चांटी मिरगा ले लेके हाथी तक चौरासी लाख जोनी के रचना करे हंव। सब झन के खाय पिये के बेवस्था करे हंव। कोनो प्राणी भूख म नइ मरंय, आदमी छोड़ के। वहू म छत्तीसगढ़िया सबले जादा। हत्तत रे अभागा हो, मंय तो आदमी जोनी बना के खुस होवत रेहेंव कि सबले श्रेश्ठ जोनी के रचना करे हंव, फेर तुंहर जइसन आदमी ल देख के सोंच म पड़ गे हंव कि कहीं सबले निकृश्ट आदमीच तो नइ हे? अरे! तुंहर छत्तीसगढ़ म तुहांर खातिर मंय का नइ बनाय हंव। धन-धान्य ले भरेंव। हीरा-जवाहरात, सोना-चांदी, जंगल-पहाड़, नदिया-झरना का नइ देय हंव तुंहला? सरग के खजाना लुटा देय हंव तुंहर छत्तीसगढ़ म। तभो ले तंय भूख म परान तियागेस? वाह रे मरहा राम छत्तीसगढ़िया! तोर जइसे अभागा, निकृष्टत, अउ निकम्मा ये दुनिया म अउ कोन होही? अपन आप ल छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया कहिथव? भूख म प्राण त्याग के आय हस। तोर तो मुंह देखे म घला पाप हे रे दुश्ट, नारकी।’’
भगवान के बात ल सुन के मरहा राम के कंपइ फेर सुरू हो गे। कांपत कांपत कहिथे – ‘‘भूख म नइ मरे हंव भगवान, भूख म नइ मरे हंव। तुंहर देय पेज पसिया पीतेच हन प्रभु। सरकार घला एक रुपिया म चांउर अउ चार आना म नून देथे। पेट भरे बर अलवा जलवा मिलिच जाथे प्रभु।’’
मरहा राम के चिरौरी सुन के भगवान के क्रोध अउ भड़क गे। कहिथे – ‘‘खामोस! अभागा छम्मीसगढ़िया, तोला सरम घला नइ आवय। पेज-पसिया ल मंय जानवर खातिर बनाय हंव कि आदमी बर? अउ ये अलवा-जलवा का होथे रे? मंय तो आदमी खातिर कोनों अलवा जलवा चीज नइ बनाय हंव। मंय तो तुंहर खातिर अमृत समान अन्न बनाय हंव। दूध, दही, घी बनाय हंव। नाना प्रकार के कंद-मूल, फल-फूल अउ मेवा बनाय हंव। तंय अलवा जलवा खा के मर गेस? हŸा रे पापी! बता तो ये अलवा जलवा का होथे? काला खा के मरे हस तंय।’’
– ‘‘एक रूपिया वाले चांउर के भात ल चवन्नी नून संग अगल-चिगल खा लेथन भगवान।’’
– ‘‘खाली नून भात खाय रेहेस?’’
– ‘‘संग म चेंच भाजी के साग घला खाय रेहेन भगवान।’’
– ‘‘येला कब खाय रेहेस?’’
– ‘‘रात म।’’
– ‘‘वोकर पहिली का खाय रेहेस?’’
– ‘‘अमारी भाजी।’’
– ‘‘वोकर पहिली?’’
– ‘‘कांदा भाजी।’’
– ‘‘वोकर पहिली?’’
– ‘‘सुकसा भाजी।’’
सुन के भगवान के मति छरिया गे। दुख अउ सोग म तरुवा धर लिस। किहिस -’’ वाह रे मरहा राम छत्तीसगढ़िया हो! तुम तो कीरा मकोरा ले घला गे गुजरे हव। चार जुवार ले खाली भाजी भात खावत रेहेस, इही ल खवइ कहिथे? तंय सचमुच भूख म मरे हस। जिंदगी भर भाजी खा खा के तुम तो आंत के रोगी हो गे हव। ताकत कहां ले आही? दार-भात, दूध-दही-घी, मेवा-मिश्ठान नइ मिलय?’’
– ‘‘सेठ-साहूकार, मंत्री-संत्री मन के मारे नइ बांचय प्रभु।’’
– ‘‘वो मन खावत होहीं, तुमन टुकुर-टुकुर देखत होहू?’’
– ‘‘का कर सकथन प्रभु।’’
– ‘‘अपन बांटा के चीज ल नंगा नइ सकव? हाथ गोड़ काबर देय हंव।’’
– ‘‘अइसन पाप काबर करबोन भगवान?’’
– ‘‘अच्छा….. पाप-पुन के फैसला घला तुंहिच मन कर लेथव रे? तब मंय काबर बइठे हंव।’’
– ‘‘छीना-झपटी, झगड़ा-लड़ाई म हिंसा होथे। पेटला महराज ह बताथे प्रभु। अउ सरकारी कानून ल घला डरे बर पड़थे।’’
– ‘‘वाह रे मरहा! चोर-उचक्का मन बेधड़क, छेल्ला घूमत हें, खीर-तसमइ झोरत हें, काजू-बदाम के हलवा उड़ावत हें, तुमन ल डर धरे हे। तुम छत्तीसगढ़िया मन तो पेटला मन के बीच चपका के फड़फडा़वत हो रे। तुंहर महराज पेटला, सेठ-साहूकार मन पेटला, मंत्री-संत्री मन पेटला, अधिकारी-कर्मचारी मन घला पेटला। ….कस रे मरहा, अतेक अकन पेटला तुमन कब कब बना डारेव? ……अउ का का बना डारे हव रे, बने बने फोर फोर के तो बता?……. मंय तो तुंहर करनी देख के चकरित खा गे हंव ।’’
मरहा राम ह सोगसोगान हो गे। कहिथे – ‘‘हे भगवान! सब तुंहरे लीला आय प्रभु। सब तुंहरेच बनावल आय।’’
– ‘‘मोर बनावल आय? पेटला महराज ह बताय होही?’’
– ‘‘हव भगवान, पेटला महराज ह हमर गांव अतराब के बड़ भारी ज्ञानी पुरुश आय। तुंहर एक एक ठन लीला के रहस्य के बिखेद कर कर के समझाथे प्रभु।’’
– ‘‘अउ तुमन पतिया लेथव?’’
– ‘‘कइसे नइ पतियाबोन प्रभु।’’
– ‘‘बिना सोंचे बिचारे पतिया लेथव?’’
– ‘‘येमा का सोंचना बिचारना प्रभु?’’
– ‘‘तुंहर छत्तीसगढ़ म लोटा धर के अवइया मन साल भर म हजारों सकेल डारथें। दू साल नइ पूरे, लखपति बन जाथें। अउ तीन साल पूरत पूरत करोड़ पति बन जाथें। कार, टरक, बड़े बड़े बंगला, के मालिक बन जाथें। तुमन जस के तस। ये कइसे हो जाथे, यहू ल नइ सोंचव?’’
– ‘‘अपन अपन भाग तो आय भगवान! येमा का सोंचना।’’
– ‘‘भाग्य के रोना रोवइया करम छंडा! मंय तो दुनिया म हवा, पानी, जंगल, जमीन, नदिया, पहाड़ सब ल सब बर बराबर बराबर बनाय रेहेंव रे। पोगरइया मन तुंहरो हिस्सा के चीज ल पोगरा डरिन। तुंहला दुख नइ होवय? थोरको नइ सोंचव? तुंहला दिमाग काबर देय हंव? एकरे सेती भूख म प्राण त्याग के आय हस। मंय तो चिंता म पर गेंव कि तोला कते नरक म डारंव। सोंचे नइ रेहेंव कि अइसनों पापी के नियाव करे बर पड़ही।’’
मरहा राम ल पेटला महराज के प्रवचन के चतुर बनिया वाले दृश्टांत के सुरता आ गे। कहिथे – ‘‘मंय तो तुंहर साक्षात दरसन कर डरेंव प्रभु। अब तो मोला सरग म जगा देएच ल पड़ही।’’
– ‘‘इहंा पेटला महराज के प्रवचन काम नइ आवय रे मूरख, मोर कानून चलथे। चतुर बनिया के कहानी सुनाय होही। तुंहर पेटला पंडित मन अतेक अगमजानी हो गे हें रे कि इहां का होथे तउन ल उहंा बइठे बइठे जान डरथे। बिना सोंचे समझे कपोल कल्पित दृश्टांत मन ऊपर बिसवास करइया, अरे निरीह छत्तीसगढ़िया हो, तुंहर ले बने तो कुकुर बिलइ हें। बिना सूंघे, बिना जांचे परखे कोई चीज ल मुंह नइ लगांय। तंय तो जिहां ले आय हस, विहिंचे फेर जा ,काबर कि वोकर ले बड़का नरक मोर सृश्टि म अउ कहीं नइ हे।’’
भगवान के फैसला सुन के मरहा राम चक्कर खा के गिर गे। दुहाई देय लगथे।
भगवान कहिथे – ‘‘तोर मरे के घटना अउ वोकर बाद उहां का का होवत हे, तउन ल महूं जरा देखंव भला।’’
भगवान घर के टाइम मसीन के आपरेटर ह मसीन ल एक घंटा रिवर्स कर देथे। मरहा राम के मरे के घटना दिखे लगथे। मरहा राम घला अपन मौत के सीन ल देखे लगिस।
………
बैसाख जेठ के महीना। चढ़ती बेरा के बात आय। सांय सांय लू चले के सुरू हो गे रहय। खेत खार चंतराय के दिन आ गे रहय। मरहा राम बिहिनियच ले कांद बूटा छोले बर खेत चल दे रहय।
चकमिक चकमिक करत एक ठन कार बनत कारखाना तीर आ के खड़े होइस। कारखाना के मालिक जोगेन्दर सेठ अंटियावत कार ले उतरिस। झक सफेद कुरता पैजामा पहिरे रहय। मुंहू चिक्कन, लाल बंगाला कस दिखत रहय। पिछलग्गा दूसर कार खड़ा होइस। उहां ले वोकर दू झन मुस्टंडा उतरिन जिंखर हाथ म बंदूक रहय।
मालिक ल आवत देख के कमइया मन उत्ताधुर्रा कमाय लगिन। मरहा राम घला सावचेत हो गे। सेठ ह सत्तू नांव के अपन एक झन मुसटंडा संग गोठियात कारखाना कोती चलिस। मुरहा राम के खेत बीच म पड़य। सेठ ह मुस्टंडा ल कहिथे – ‘‘अरे सत्तू , कल और लोग आ रहे हैं, एक दो दिनों में मषीनें भी आ जायेंगी। काम जल्दी पूरा करना है। ध्यान रहे, किसी भी छत्तीसगढ़िया को काम पर नहीं रखना है। और सुनों, इस खेत (मरहा राम के खेत कोती इसारा करत) को भी अपने कब्जे में ले लो। मैं सब देख लूंगा।’’ मरहा राम के खेत तीर जा के रुक गें।
सत्तू यस सर, यस सर कहत पीछू पीछू रेंगत रहय। दुसरइया मुस्टंडा ह कार तीर रुके रहय। गांव वाले दू चार झन सियान मन सेठ से मिले खातिर आवत रहंय। वो ह दुरिहच ले धमकाइस – ‘‘कौन है बे भगो यहो से सब।’’ हवा म दन दन दू ठन गोली दाग दिस। सब अपन अपन घर कोती पल्ला भागिन। एती मरहा राम के कंपकंपी छूट गे।
सेठ ल खड़ा होवत देखिस त मरहा राम ह बड़ हिम्मत कर के वोकर तीर म आइस। कांपत कांपत हाथ जोड़ के किहिस – ‘‘राम राम सेठ जी! खेत के इंटा पथरा ल हटवा देतेव, खेती किसानी के दिन नजदीक आवत हे।’’
अतकिच बात म सेठ अरे तरे हो गे। एक ठन हाना कहिथें – माछी खोजे घाव ल, राजा खोजे दांव ल। लाल लाल आंखी छटका के अउ मुटका उबा के सेठ ह कहिथे – ‘‘मादर…..मेरी ओर आंख उठाकर देखने की तेरी हिम्मत कैसे हुई?’’ अउ कंस के एक मुटका लगा दिस।
मरहा राम पहिलिच ले कांपत रहय। भीम के गदा कस मुटका के मार ल संउहार नइ सकिस। चक्कर खा के गिर गे।
सेठ ल रोसियात देख के सत्तू घला बगिया गे। वफादार कुकुर ह मालिक के छू कहे के पहिलिच झपट्टा मार देथे। ‘‘अरे मादर……. तेरी इतनी हिम्मत? सेठ साहब की ओर ऊंगली उठाता है।’’ कहत कहत छटपटात मरहा राम के पेट म कंस के एक लात जमा दिस।
मरहा राम ह छिन भर छटपटाइस फेर मुंह फार दिस। आंखी छटक गे। हाथ गोड़ अल्लर हो गे। परान निकल गे।
पल भर सेठ अउ सत्तू दुनों झन सन्न खाय रहिगें।
सत्तू कहिथे – ‘‘लगता है, मर गया। साला भुक्खड़। पता नहीं कब का खाया पीयां था।’’
सेठ ह घबरा गे रहय फेर सत्तू के बात सुन के वोकर आंखी म चमक आ गे। कहिथे – ‘‘अबे! सत्तू क्या कहा तूने, भुक्खड़? साला भूख से मर गया क्या रे? ह ..हा….।’’
सत्तू – ‘‘एकदम गुड आइडिया सेठ जी। ये साला भूख से ही मरा है। मैं यहां सब संभाल लूंगा। आप फौरन यहां से निकलिए।’’
सेठ जी – ‘‘अब तो यहां की गव्हर्नमेंट को भी देख लूंगा।’’
सेठ जी ह तुरत फुरत जा के कार म बइठिस अउ फुर्र हो गे।
मुस्टंडा के गोली के धमाका गांव भर म गूंजे रहय। सुन के मरहा राम के दाई अउ बाई के परान टोंटा म अटक गे। चेत बुध हरा गे। पागी पटका ल सकेलत खेत डहर दंउड़िन। मरहा राम ल मार खा के गिरत देख डरिन। दंउड़त दंउड़त गोहार पार पार के रोय लगिन -’’ दंउड़ो ददा हो…..दंउड़ो बबा हो….. मोर बेटा ल बंचाव….परदेसिया रोगहा मन मोर बेटा के परान लेवत हें।’’
फेर गांव के एक ठन करिया कुकुर तक उंखर पत राखे बर नइ आइस।
सत्तू के हिम्मत बाढ़ गे। उंखर पहुंचतेच वो ह दाई ऊपर बंदूक टेका दिस। किहिस – ‘‘अरे बुढ़िया! चुप हो जा साली। तेरे बेटे को हमने मारा ह क्या? वो तो साला भूख से मरा है। कब से खाना नहीे खिलाए थे?’’
डोकरी दाई – ‘‘रोगहा हत्तारा हो ! मोर बेटा के परान ल ले के कहिथव भूख म मर गे। तुंहर मुंह म कीरा परे। बंदूक के डर कोन ल बताथस रे रोगहा।’’
सत्तू – ‘‘अब तुम लोगों की बारी है। ऐसा ठिकाना लगाएंगे कि तुम तीनों की लास भी नहीं मिलेगी। जिंदा रहना चाहते हो तो चुप रहो।’’
डोकरी अउ बहु चारों मुंड़ा नजर घुंमा के देखिन। पाट दबइया कोनों नइ दिखिस। जी के डर घला बहुंत होथे। उंखर घिघ्घी बंधा गे। सत्तू समझ गे। काम बन जाएगा। नोट के बड़े अस गड्डी ल देखावत कहिथे – ‘‘हमारा सेठ बहुंत पहुंच वाला है। सरकार अउ पुलिस वोखर मुट्ठी में है। उसका तुम लोग क्या उखाड़ लोगे? मरने वाला मर गया। तुम्हारा खेत भी जाता रहेगा। कहीं के नहीे रहोगे। मिलकर रहने में ही भलाई है। जैसा कहता हूं ,वैसा ही करो। मजे में रहोगे। ……तुम्हारे बेटे को हम लोगों ने नहीं मारा है। भूखा प्यासा था, मर गया बेचारा। भूख से मरने वाले के परिवार वालों को सरकार लाखों रूपियों की सहायता देती है। तुम लोगों को भी मिल जाएगा। तुम्हारी जमीन भी बच जाएगी। अभी क्रिया करम के लिए रखो ये पचास हजार रूपय। हमारे सेठ बड़े दयालु हैं। मिल के रहोगे तो और मिल जाएगा।’’
डोकरी दाई के जग अंधियार हो गे रहय। लास ले लिपट के दुनों झन कलप कलप के रोय लगिन। डोकरी रोवत रहय – ‘‘मंय का करो बेटा…… एक कप चहा घला तोला नइ मिलिस रे। अंहा…….।
सत्तू मौका के ताक म रहय। सीन माफिक लगिस। झट वीडियो कैमरा निकालिस अउ सूट कर लिस। काम के चीज हाथ लग गे। रुके ले अब का फायदा? पहिली वाले मुस्टंडा संग वहू चंपत हो गे।
थोरिक देर बाद इही सीन ह टी. वी. मन म आय लगिस।
भगवान घर के टाइम मसीन म मरहा राम ह सब ल देखिस। अपन निर्बलता अउ कायरता ल देखिस। अपन दाई अउ घरवाली के लचारी ल देखिस। परदेसिया मन के चोरी अउ सीनाजोरी ल देखिस। पइसा म लोगन कइसे बेंचा जाथे तउनों ल देखिस। लस खा के कहिथे – ‘‘हे जगत पिता, अब बस करव प्रभु ! सच म मोर जइसन नरकी ये दुनिया म अउ कोनों नइ हे।’’
भगवान – ‘‘मरहा राम ! तोर बर एके ठन नरक हे। जिंहा ले आय हस, विहिंचे फेर जा। जउन दिन तंय अपन दिमाग ले सोंचे लागबे, अपन हक बर लड़े लागबे, शोषण , अउ अन्याय के विरोध करे लागबे तउन दिन मंय तोला अपन तीर बला लेहूं। इंटा मारइया बर जउन दिन तंय पथरा उठा लेबे, हाथ उठइया हे बंहा ल मुरकेट सकबे, आंखी देखइया के आंखी ल निकाल सकबे तउन दिन तोर बर सरग के मुहाटी ल मंय खोल देहूं।’’
– ‘‘हिंसा करे बर कहिथव प्रभु !’’
– ‘‘तुंहर दुनिया म हिंसा-अहिंसा के बड़ा गुलाझांझरी होवत हे रे। अपन धरम करम ल निभाय म का के हिंसा?’’
– ‘‘थोरिक फरिहा के बतातेव प्रभु।’’
– ‘‘गीता म सब बता डरे हंव मूरख। दुनिया म कहां संघर्ष नइ हे? अहिंसा के मार्ग म चले बर हे त पहिली निडर अउ बलवान बनो। सत्य, न्याय अउ आत्मरक्षा खातिर संघर्ष करना ही अहिंसा आय। असत्य, अन्याय ल सहना, निर्बल अउ कायर बनना ही सबले बड़े हिंसा आय, सबले बड़े पाप आय।’’
– ‘‘तब हिंसा अउ पाप ले छुटकारा कइसे मिलही प्रभु।’’
– ‘‘दुसर जोनी ले आदमी ल मंय एक चीज उपरहा देय हंव। विवेक। जिंहा विवेक होही, विंहिचेच ज्ञान रहिही। अपन विवेक ल कभू मत छोंड़ो। इही ह आदमी ल इन्सान बनाथे। हिंसा अउ पाप ले बचाथे।’’ अतका कहिके भगवान ह मरहा राम के जीव ल वापिस धरती म ढकेल दिस।
एती पुलिस ह वोकर लास ल डग्गा म जोरे के तइयारी करत रहय। वइसने म वोकर सांस चले के सुरू हो गे। मरहा हड़बड़ा के खड़ा हो गे।
भीड़ म चिहुर उड़ गे – ‘‘मरहा राम जी गे। मरहा राम…….।’’
मरहा राम ह भीड़ म चारों मुड़ा नजर फेर के देखिस। सेठ अउ वोकर मुस्टंडा मन उहां कहां दिखतिन? रामप्यारे अउ अवध बिहारी दिख गे। ललकारिस अउ जा के उंखर घेंच ल धर लिस।
किहिस – ‘‘भाई हो ! वोतका दिन तक सचमुच मंय मरे समान रेहेंव, फेर अब मंय जी गे हंव।’’
भगवान ह आज घला मरहा राम छत्तीसगढ़िया मन बर सरग के मुंहाटी खोल के अगोरा म बइठे हे।

कुबेर
(कहानी संग्रह भोलापुर के कहानी से)

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