Categories: कविता

महेन्द्र देवांगन माटी के कविता : बसंत बहार

सुघ्घर ममहावत हे आमा के मऊर,
जेमे बोले कोयलिया कुहुर कुहुर।
गावत हे कोयली अऊ नाचत हे मोर,
सुघ्घर बगीचा के फूल देख के ओरे ओर।
झूम झूम के गावत हे टूरी मन गाना,
गाना के राग में टूरा ल देवत ताना।
बच्छर भर होगे देखे नइहों तोला,
कहां आथस जाथस बतावस नहीं मोला।
कुहू कुहू बोले कोयलिया ह राग में,
बइठे हों पिया आही कहिके आस में।
बाजत हे नंगाड़ा अऊ गावत हे फाग,
आज काकरो मन ह नइहे उदास।
बसंती के रंग में रंगे हे सबोझन,
गावत हे बबा राग झोकत हे टूरा मन।
आगे बसंत संगी आगे अब होली,
मारत हे पिचकारी भीगोवत हे चोली।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कवर्धा)
[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]


Share
Published by
admin