बने रहै मोर बनी भूती ह, बनै रहै मोर गाँव,
बने रहै मोर खपरा छानही,बर पीपर के छाँव।
बड़े बिहनिहा बासत कुकरा, आथे मोला जगाये,
करके मुखारी चटनी बासी,खाये के सुरता देवाये।
चाहे टिकोरे घाम रहै या बरसत पानी असाढ़,
चाहे कपावै पू ा मांघ, महिना के ठूठरत जाड.।
ओढ़ ले कमरा खूमरी, तैहा बढाना हे पांव,
बने रहै मोर खपरा छानही, बर पीपर के छाँव।
गैंती, कुदरा, रापा, झउहा, नागर,जुवाड़ी तूतारी,
गाड़ी बइला,कोपर दतारी,जनम के मोर संगवारी।
सोझे जाथौं खेत तभो, लाढी डोरी धरे हंसिया,
मेहनत के पुजारी मैं, किसानी मोर तपस्या।
आंव बेटा मैं किसनहा के, कमिया हे मोर नाव,
बने रहै मोर खपरा छानही, बर पीपर के छाँव।
चिहूं चिहूं चहकत चिराई, सुआ मैना के बोली,
मन मोह लेथे अमरइया,के कुहकत कारी कोयली।
माता चौरा, ठाकुर देव, ठांव ठांव बिराजे देवता,
तीरथ बरथकस लागे देखेलाआबे देवत हौं नेवता।
छत्तीसगढ़ी केकोरा कथें ऐला,अऊ का तोला बतांव,
बने रहै मोर खपरा छानही, बर पीपर के छाँव।