Categories: गीत

मोर छत्तीसगढ़ के भुंइया

मोर छत्तीसगढ़ भुंइया के,कतका गुन ल मैं गांवव |
चन्दन कस जेकर माटी हाबे,मैं ओला माथ नवांवव ||
ये माटी म किसम किसम के, आनी बानी के चीज हाबे |
अइसने भरपूर अऊ रतन, कोनो जगा कहां पाबे ||
इही में गंगा इही में जमुना, इही में हे चारो धाम |
चारों कोती तेंहा किंचजरले, सबो जगा हाबे नाम ||
आनी बानी के फूल इंहा, महर महर ममहावत हे |
हरियर लुगरा धान के पाना, धरती ल पहिनावत हे ||
आनी बानी के रिती रिवाज, दुनिया ल लुभाथे |
गुरतुर बोली इंहा के संगी, सबला बने सुहाथे ||
कहां जाबे ते काशी मथुरा, कहां जाबे कुंभ के मेला |
सबो धाम तो इंहा हाबे, सबले बढ़िया राजिम मेला ||

महेन्द्र देवांगन “माटी”
पंडरिया (कवर्धा)
मो. 8602407353

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