मोर लइका ल कोन दुलारही

पूनाराम के बड़े बेटी सुनीता के बिहाव होय छै बच्छर ले जादा बीत गे।एक झन साढ़े चार बच्छर के बेटी अउ दू बच्छर के बेटा हवय। सुनीता अपन ग्यारा बच्छर के भाँची ल पहली कक्षा ले अपने कर राख के पढ़ात हवय। सुनीता के गोसइया कुलेस सहर के अस्पताल के गाड़ी चलाथे।ठेकादारी हरय पक्की नी होय हे।सुनीता घर मा पीको फाल अउ बुलाउस सिलके दू चार पइसा कमा लेथे।
सुनीता मन तीन देरान जेठान होथय। वो हा छोटकी बहू आय।जादा नइ पढ़े हवय ।गांव मा 12 वी तक इस्कूल हवय तब 12 वीं तक पढ़े हवय ।बिहाव के पाछू आठ महिना ससुरार मा रहिके सहर किराया के घर मा आगे। जचकी बर दुनो बेर मइके गय रहिस। बाबू आय के पाछू परिवार नियोजन करा डरिस।अब दूनो लइका हा ओकर संसार बनगे।
सुनीता के बड़े जेठानी के दू झन बेटा ,मंझली के एक बेटी एक बेटा हे।ओकर डेढ़सास के दू बेटी एक बेटा अउ ननंद के दू बेटा हवय। सियान मन घलो जीयत हे।मइके मा दाई ददा अउ दू झन बड़े भाई हे मंझला भाई के संग जोरंधा बिहाव होय रहिस।दूनो भाई के एक एक बेटा अउ बेटी हवय।फूफू सास, कका ससुर, ममा ससुर, मोसी सास, बड़ी सास सबोच नत्ता हवय।ओमन अपन अपन परिवार मा रहिथे।छट्ठी बरही, बर बिहाव, मरनी हरनी मा भेंट होथय।



सुनीता जब पहली घांव सहर आइस तब कोनों चिन पहिचान के नइ रहिस। भाँची ल संग मा राख के पढ़ाबो कहिके लाइस अउ इस्कूल मा भरती करा दिस।कुलेस अपन गाड़ी मा जाय , भांची इस्कूल जाय तहान सुनीता ठेलहा हो जाय। कुछ दिन मा अरोसी परोसी मन ले बने चिन पहिचान बना डरिस।जचकी के बेरा मइके मा चल देत रहिस।परिवार बाढ़त देख के दूसर पारा मा नवा किराया घर राखिन।अब सुनीता ल नान्हे लइका ल नवा जगा मा फेर अनचिनहार जगा कइसे रखंव कहिके फिकर होगे। जुन्ना पारा के मन आय तब थोकिन बने लगय। समय बीतत गिस।यहू पारा मा चिन पहिचान बनगे। बिहाव के पहिली ,12 वी पढ़े के पाछू सिलई सिखे रहिस।कुलेस ल कहिके किस्त मा एक ठन सिलाई मसीन बिसा के अरोसी परोसी के पीको फाल,बुलाउस ल सिलेबर धरिस।समय बिताय बर बने बुता मिले रहय।अब इहाँ रहत छै बच्छर पूरगे।
सुनीता ल सहर मा कोनों बात के संसो नइ रहय।फेर एक ठन दुख हा ओकर अंतस ले बहिर नइ होत रहय।ओहा मनेमन गुनय कि मोर लइका मन ल कोन दुलारही, मया करही।मोर लइका मन के बबा, ककादाई, आजी आजा, ममा,फूफू, सब हवय फेर उँखर मया दुलार ले बिछुरत जात हे।सहर मा सास ससुर , सगा सोदर एक दू दिन बर आथे अउ चल देथे।मोर लइका मन अपन अउ भाई बहिनी ल चिन्हत नइ हे।वइसने ओकरो लइका मन ल जेठ बेटी बेटा मन अपन भाई बहिनी नी मानय।सुनीता के बड़े बेटी ह कका अउ फूफा कोन ल कथे तेला नी जानय।एक दिन अपन दाई ल पूछत रहय- मोसा कोन ला कहिथे।
एक बखत सुनीता के बड़ा ससुर के नान्हे बेटा अउ बेटी मन परीछा देवाय बर सहर आइस।भइया भउजी रहिथे कहिके सुनीता घर आइस।पांव पलगी होय के पाछू सुनीता अपन बेटी ल घलाव कका अउ फूफू दीदी के पांव परेबल कहिस।बेटी हा अड़ दिस नइ परंव कहिके।सुनीता सर्मिंदा होगे।मने मन गुने लगिस कि मोर लइका ल नत्ता गोत्ता ल कोन बताही सिखाही।पाछू मोर थुवा थुवा हो जाही,सब झन कही अपन लाइका मन ल कहीं संस्कार नी सिखाय हे।




सहर मा रिस्ता नत्ता के तो दही के मही हे।दीदी के घरवाला ल भइया कहि लेथे।कभू कभू तो गोसइया गोसानिन दूनो झन मन परोसी ला भइया भउजी कहिथे।सब अरोस परोस के लइका मन अपन संगवारी के दाई ददा ल एक दुसर अंकल आंटी कहिथे।दू ठन नत्ता ले जादा नइ जानय।
सुनीता के आतमा ओ दिन कलप गे, जब टीबी मा समाचार सुनिस,कि सात बच्छर के बेटी जौन अपन परोसी ल अंकल कहात रहिस।उही हा ओकर संग गलत काम करके मार दिस। संझौती फेर टीबी समाचार मा बताइस कि एक ठन सहर मा इस्कूल बस मा डरावल ल आठ बच्छर के लाइका संग गलत काम करत पाय गिस।लइका अस्पताल मा भर्ती हवय।अइसने परोसी मन बताइस कि ओकरे सहर मा सोला बच्छर के लइका ल ओकर टिवसन मास्टर हा हरन करके ले गे हवय,जेकर छै महिना होगे पता नइ चलत हे।
अपन गोसइया करा मन के फिकर के बिषय मा बात राखिस कि हमर लइका मन ककादाई ,बबा, आजा आजी,ममा मामी, कका काकी,भाई बहिनी , फूफू, मोसी के मया दुलार नइ पात हे। लइका मन बड़े बाढ़त जाही अउ सज्ञान होही तब ये सब नत्ता के मया दुलार के मतलब नी समझ पाही।अब ओला घर परिवार के संग गांव मा रहे के चिंता होय लगिस।ओकर गोसइया हा समझावत कहिस- गांव जादा दुरिहा नइ हे 50-60 किमी हावय। उहाँ सहर असन इस्कूल, अस्पताल, रोजगार ,दुकान, सुविधा नइ हे। पेट रोजी चलाय बर सहर आय हन।लइका मन के भविष्य बर घलो सोचेबर लगही।एक उदिम कर सकत हवन, कि इस्कूल के छुट्टी के दिन,हर तिहार बार मा गांव जा सकत हन।एकर से सबोझन से भेंट हो जाही अउ लइका मन ला मया दुलार मिल जाही।सुनीता के मन थोकिन थिरइस।

आज अड़बड़ झन के इहीच समस्या हे।नउकरी चाकरी वाले मन पइसा पावत हे फेर उँकर लइका मया दुलार ले बिसरत हे।जिंकर घर दुनो झन अलग अलग गांव मा नउकरी करत हे,उँकर घर के तो हाल बेहाल हे। दाई कर रहइया लइका ददा के मया बर तरसत हे अउ ददा कर रहइया दाई के मया बर।कतको झन अपन लइका मन ला पइसा देके बड़े बड़े इस्कूल मा छोड़ देथे।वहू लइकामन अपन नत्ता मनके मया दुलार नी पाय। पाछू कहिथे हमर लइका संस्कारी नइ हे।सगा सोदर ल चिनहे जाने नहीं।
आज अपन नत्ता रिस्ता के हियाव करे के जरुरत हे एकर से देस मा बेटी मन उपर होत अइताचार ल रोके मा मदद मिल सकत हे।

हीरालाल गुरुजी “समय”
छुरा, जिला-गरियाबंद



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