घर म दुए झिन महतारी बेटा राहय। बेटा के नांव तो रिहिस बोधराम फेर जादा अक्कल-बुद्धि नइ फइलात रिहिस। पढ़ई-लिखई घलो ठिकाना नइ परिस। बर-बिहाव लगइया सगा मन पूछे, का करथे तोर बाबू ह तेखर जवाब देना मुसकुल हो जाय ओखर महतारी ल। भुंइया गरू रिहिस बोधराम ह। दिन भर लठंग-लठंग किजरय अउ खाय के बेरा घर म पइध जाय। ओखर दाई काहय-बेटा, कुछू काम बुता करे कर रे। बइठे-बइठे तरिया के पानी घलो नी पुरे गा। फेर बोधराम रिहिस चिक्कन हंड़िया। ओमा कहां पानी ठहरना हे। दाई के कहना ल एक कान ले सुनय अउ दूसर कान ले निकाल दय।
उही समै गांववाला मन एक झिन नामी भागवतकार के कार्यकरम करवात राहय। एक दिन दाई ह बोधराम ल कथे-’’दिन भर कहां-कहां fकंजरत रथस रे। गांव म भागवत पुरान होवत हे थोकन उहें बइठ जाते। महराज बड़ गियान के बात बताथे। कोन जाने ओखरे बानी तोर उपर असर कर देवय।’’ का गुनिस ते बोधराम सिरतोन भागवत पुरान सुने ल चल दिस। ओ दिन बड़े-बड़े नेता पंडित के भागवत सुने ल पहुंचत राहय। नेता मन आलीसान कार म आवय, पोथी पुरान अउ भगवान के फोटू म माथ नवाय, पंडित के पांव परय अउ गद्दीवाला खुरसी म बइठ के भागवत सुनय। नेता मन बर अलगे बेवस्था रिहिस जबकि बोधराम जइसे आम आदमी मन fभंया म दरी म बइठे राहय। थोकिन देर नेता मन बइठय तहान फेर कार म बइठ के फुर्र हो जाय। एक झन जाय तौ दुसरइया नेता फेर कार म पहुंच जाय। एक झन बड़का नेता अइस तौ पंडित घलो अपन बियास गद्दी ले उठ गे अउ ओखर सुवागत करे लगिस। बोधराम के धियान भागवत कथा डाहर कमती अउ नेता मन के ठाठ-बाट डाहर जादा राहय।
बोधराम सोंचे लगथे- अल्लू-खल्लू बन के जिये म कोई मजा नइ हे, जीना हे ते नेता बन के जीयो। ततके बेर पंडितजी ह भोलेनाथ के कथा सुनाना सुरू करथे। भगवान भोलेनाथ बड़ दयालू हे। बड़ जल्दी परसन्न होवइया देंवता आय। ओखर भक्ति करे म कांही फटफट करे ल नई लागय। तेखरे सेती जेला जल्दी बरदान मांगना राहय तेन भोलेनाथ ल परसन्न करे बर तपसिया करय। एक झन राच्छस रिहिस, वो सोंचिस मोर हांथ म भसम करे के ताकत आ जाय तौ मैं पूरा दुनिया ज डेरवा के अपन बस म कर लीहूं अउ पूरा दुनिया म मोर राज हो जाही। बस इही बरदान मांगे बर वो ह भोलेनाथ ल परसन्न करे बर तपसिया सुरू कर दिस। भोलेनाथ परसन्न होके परगट होगे। बोलिस- मांग बेटा बरदान। राच्छस किहिस- मैं भस्मासुर बनना चाहत हौं। मोला अइसे बरदान दौ के जेखर मुड़ उपर हांथ करंव वो भसम हो जाय। भोले भंडारी किहिस- ‘तथास्तु’। भस्मासुर किहिस- तोर बरदान सच्चा हे के झूठा एला मैं कइसे जानहंू? मै ये बरदान के परीच्छा करहूं। चला तोरे मूड़ उपर रख के देखहूं कहि के भोलेनाथ कोती आय लगिस। भोलेनाथ डेरा के भागे लगिस। ले-दे के भगवान बिसनू के टिरिक ले भोलेनाथ बांचे रिहिस।
फेर एती बोधराम पुरा किस्सा ल नइ सुने पाइस। ओला उंघासी आ गे। ओ ह नेता बने ल भगवान के तपसिया करे ल धर लिस। भोले बाबा परगट होके बरदान मांगे ल किहिस। बोधराम किहिस- ‘‘मोला नेता बना देते भोले बाबा।’’ भोले बाबा किहिस- ‘‘ना बाबा ना।’’
‘‘काबर भोलेनाथ, बरदान मांगे बर तो fतंही केहे हस।’’ बोधराम फेर कथे। ‘‘बेटा, दूध के जरे ह मही ल घलो फूंक-फूंक के पीथे। एक पइत तोरे कस एक झन निकम्मा ल भस्मासुर होय के बरदान देय रेहेंव। वो ह परीक्छा लेय बर मोही ल भसम करना चाहत रिहिस लट्टे-पट्टे बांचे रेहेंव। ये नेता मन घलो भस्मासुर के अंस आय। एखरे मन ले बांचे के उपाय नइ दिखत हे। अउ एकझन उपराहा नई करंव बेटा।’’
कथा उसल गे रिहिस। दरी उसरइया ह कोचकथे तौ बोधराम ल चेत आथे। अब बोधराम ल सिरतोन बोध हो गे रिहिस के निकम्मा मनखे के भगवानो सहायता नइ करय। मोर दाई सिरतोन कथे, मोला काम बुता करे ल परही।
दिनेस चौहान
छत्तीसगढ़ी ठिहा, नवापारा-राजिम,
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