राजा – नान्हे कहिनी

देवकी अपन बैसाखी ल देख के सोचे का होगे ए टूरा मन ल घेरी-बेरी आ-आ के बिहाव के विचार रखंय। आज सब्बो झन मन मुंहु फेर के भागत हाबे। ओतकी बेर अरविंद अइस, जेन ल देख के देवकी ह थर्रागे, काबर कि करिया कुकुर संग कोन बिहाव करही कहिके वोखर खूब हंसी उड़ाय रीहिस।
अरविंद कीहिस- मेहा बैसाखी के सहारा ले चलत देखे बर आय हंव। अऊ चलत देख के बड़ खुस हांवव, अब कोनों फिकर नई हे। आराम से चलत फिरत अपन नौकरी कर सकत हव, कोनों सहारा के जरूरत नई हे आपला।
अरविंद चले बर धरीस त देवकी ओखर हाथ ल धर के कीहिस- ‘अरविंद, मोला माफी देबे, तोर अब्बड़ हांसी उड़ा के छोटे बताय रेहेंव, आज मोला मालूम परगे हे के, तें कतका बड़े हस।’ अरविंद अपन बड़ाई ले सरमागे अउ जाय बर धरीस तहां ले देवकी कथे- ‘अरविंद आज तो सब्बो टुरा मन मोर संग बिहाव करे बर इंकार करत हे, सब्बो झन भागे-भागे फिरत हे, वोमन आज मोला बोझा समझ के दूर भागत हे।’
अरविंद कथे- ‘देवकी फिकर मत कर, मेहा तोला अपन बनाहूं अउ बिहाव करहूं, फेर का करबे मोर रंग कुकुर सही करिया हे। देवकी हर अरविंद के ओठ म अंगरी रख के चुप करा दीस अउ कीहिस- ‘ते दिल के गोरिया हस ये जान डरे हंव राजा कहिस अउ हांस दीस।’
मोहन लाल घिवरिया
सिर्री कुरूद

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One Thought to “राजा – नान्हे कहिनी”

  1. नन्हे कहिनी मा अच्छा संदेस हे.

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