लिखे-पढ़े के सुख
“सोनाखान के आगी” के पहली प्रकासन 1983 म, स्व. स्वरूप सिंह पोर्ते (तात्कालिक जिलाध्यक्ष दुर्ग) के प्रेरणा प्रोत्साहन ले होय रिहिस। समे के संगे संग रचना के महत्व घलो बाढ़थे। जब राज नइ बने रहिस तब छत्तीसगढ़ी नौजवान मन के मन म स्वाभिमान जाए के भाव लेके, अमर शहीद वीरनारायण सिह के वीरगाथा के रचना 1972-73 म होय रहिस, वो समें याद रखे के सुबिधा ल धियान म रखके अउ कतको पद ल छांट के अलग करना पहिस। वो गलती होगे। जगह जगह भटके के कारन कतको रचना के संग वोहू गंवागे। छपे रहिस तब ए बांचगे। कतको नौजवान संगी मन एकर मांग करथे, श्री मधुकर कदम जी हर एकरे अधार म एक उन सिनेमा घलो वना डारे हे। कतको जगह वोला देखाए जाथे।
अपन पूर्वज पुरखा मन के जयकार करे म मन म स्वाभिमान के भाव जागथे। इही विचार ले एकर नवा संस्करण नौजवान मन बर प्रकाशित करे के मन होइस। पढ़ के कहूं तुंहर मन म अपन शहीद बीरनारायन सिह के त्याग बलिदान के किस्सा के झलक जागही तब मोर ए बड़ भाग होही, ए रचना सार्थक होही। लिखे पढे के सुख इही हे, के पढ़इया सुनइया मन ल मंजा आय, आनंद आय, अउ हिरदे म ऊंचा उठे के भाव जागे।
लक्ष्मण मस्तुरिया
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