लोक मंच के चितेरा

दाऊ रामचन्द्र देशमुख हर रामहृदय तिवारी जी के निर्देसन मा बनइस ‘कारी’ जगमग-जगमग बरत छत्तीसगढ़ मूल्य मन के लड़ी अउ सुख:दु:ख के झड़ी ‘कारी’। बिराट लोक नाटय ‘कारी’। ये नाटक हर छत्तीसगढ़ के जनता ला एक घांव फेर भाव के संसार मा चिभोर दिस।
ह मर छत्तीसगढ़िया के जग-परसिध ‘नाचा’ हर जन-जागरन अउ मन बहलाव के सबले जादा लोकप्रिय बिद्या अउ सबले पोठ माधियम आय। फेर आज ले पचास एक बछर पहिली ये ‘नाचा’ मा भारी खरापी आ गए रिहिस हे। कलाकार मन, लोक मरजाद ला तियाग के फूहरपाती, दूअरथी सम्वाद बोले लागीन। लोक गीत मन ला छोड़ के, सनीमा के आगू मा अनफभीत नकल करे लगीन। ये बात हर गुनइया मनखे मन बर, माटी ले जुरे मनखे मन बर, निचट संसो करे के रहीस हे। ऊंकर मरम हर बेघात रहीस हे।
असने संसा करइया, कला के बढ़ती ला देख के हंसइया, अउ गिरती ला देखके रोवैया एक झिक मनखे रहीस- गांव बघेरा, जिल्ला, दुरूग के दाऊ रामचन्द्र देशमुख। ये मनखे हर, नाचा के नठाय रूप ला देख के कलेचुप बईठ नई सकीस, छटपटाय लगीस। रतिहा कुन सूते ला छोड़ के ओला गुनान पेले रहय। आंखी मा नींद नहीं।
एक रात अइसने सोंचत-सोंचत ओ हर रटपटा के दसना मा उठ बईठीस। अउ संकलप करीस के ‘चाहे कुछ हो जाय, कुछु करे बर परय मैं हर ‘नाचा’ ला अउ बिगड़न नई दंव। ओला सुधार के रइहंव।’ लोक कला ला निरमल, सुग्घर मनभावन अउ नीति-रीति वाले बनाय के संकलप हर कोनो नानमुन बूता नई रहीस हे। ये बीड़ा हर अड़बड़ भारी, कठिन अउ जोखिम वाले रहीस हे। ये रद्दा हर दुखदाई, कांटा-खोभा वाले अउ गोंटी पथरा वाले रहीस हे।
फेर सुर लमा के बइहा-भुतहा कस रेंग दीस दाऊ रामचन्द्र देशमुख। छत्तीसगढ़ी लोक कला ला ओकर मूल रूप मा लान के, ओला ऊंच करे के, ओकर माधियम ले समाज मा जागरन-बगराय के बड़का बीड़ा ला मुड़ी मा ऊंचा के, अपन कठिन कलाजातरा मा निकल परीस दाऊ जी हर।
रस्ता मा बिगर बिल मे रेंगत गीस, रेंगत गीस, रेंगत गीस, छत्तीसगढ़ महतारी के सामरथ सपूत। जेला चाही, तेहर पाही। बइठोइया लुआठ ला खाही? दाऊ ल घलो मिलत गीन एक ले एक बड़का-बड़ा कलाकार। लालफूलचंद श्रीवास्तव, लक्ष्मण दास पइनका, ठाकुरराम भुलवा, मदन लालू जइसे जगमगावत हीरा-मोती ले भर गे दाऊ के गठरी। गियानी मारे गियान मा त अक्कल खुल जाय, मुरूख मारे टेनपा त मूंड-कान फूट जाय। जम्मो कलाकार दाऊ जी के गोठ ला, दु:ख-पीरा ला सुनीन अउ ओकर संग देहे बर कनिहा ला कस लीन।
आगू जाके खुमानलाल साव, भैयालाल हेड़ाऊ, लक्ष्मण मस्तुरिहा, संगीता चौबे, रविशंकर शुक्ला, नारायणलाल परमार, विमल पाठक जइसे नामी कलाकार अउ साहितकार संघरे लागीन। अउ दाऊ हर छत्तीसगढ़ी देहाती ‘कला मण्डल’, ‘सरग-नरक’, ‘जनम-मरन’, ‘काली माटी’, ‘देवार डेरा’ जइसे एक ले बढ़ के एक नाचा-गम्मत बनइस।
फेर दाऊ जी के जऊन रचना हर छत्तीसगढ़ के जम्मो किसिम के जनता के मन ला जादू मारे कस मोहित करके भाव विभोर कर दीस, वो रचना रहीस हे ‘चंदैनी गोंदा’। छत्तीसगढ़ी लोक-कला के सुगंध के बरसात करे लगीस ‘चंदैनी गोंदा’ अउ ओकर देखइया जनता मन अपन सुध-बुध भुला के ये बरसात मा सराबोर होगीन। एक अचरित करोइया, चकरा देवइया, अउ खुसी के अगास मा उड़ा देवइया धमाका रहीस ‘चंदैनी गोंदा’। ये धमाका के तरास मा, छत्तीसगढ़ी लोक कला के भीतर चोर कस बइसे, जम्मो बिकार मन चुंधिया के, पल्ला तान के भाग-परइन। दाऊ जी हर छत्तीसगढ़ी लोक-कला ला पबरित कर दीस। अउ हमर कला संस्कृति के दुन्दुभी हर चारों खूंट बाजे लागीस।
तहां ले दाऊ जी हर रामहृदय तिवारी जी के निर्देशन मा छेदहा बनइस ‘कारी’। जगमग-जगमग बरत, छत्तीसगढ़ी मूल्य-मन के लड़ी अऊ सुख-दु:ख के झड़ी ‘कारी’। बिराट लोकनाटय ‘कारी’। ये नाटक हर छत्तीसगढ़ के जनता ला एक घांव फेर भाव के संसार मा चिभोर दिस। दाऊ जी हर फेर एक घांव छत्तीसगढ़िया मन ऊपर लोक-कला के मंतर मार के ओ मन ला मोहित कर दीस। ये लेखक के भाग ठौका खुलीस अऊ ऊही कारी मा बिसेसर ‘नायक’ के पाठ करीस।
पहिली जमाना मा छत्तीसगढ़िया मन अपन ला छत्तीसगढ़िया कहे मा सरम अनभो करंय। उंखरों मन म अउ उंखर प्रति बाहिर वाले मन के मन म हीनता भराय रहय। फेर दाऊ जी के प्रस्तुति मन ला देख-देख के छत्तीसगढ़िया मन के सभिमान हर जागीस अउ उनला छत्तीसगढ़िया होय के गौरव-गियान होय लागीस। दाऊ जी लोक कला के जऊन रस्ता चतवारीन ओमा अनगिनती कलाकार अउ कला मण्डली रेंगे लागीन। हमर संस्कृति के पावन गंगा देस बिदेस मा बोहाय लागीस।
फेर, फेर एक दिन वो हो गीस जऊन सब के संग एक न एक दिन होना रथे। बिधि के बिधान। हमर दाऊ जी हमन ला रोवत-बिलखत छोड़ के सरग सिधार गिस। अब कोन हे बने-बने कलाकार अऊ लोककला के चेत करोइया, बड़का करेजा वाला बड़हर मानुख? आज दू पइसा क लोभ मा अपन संस्कृति मा कालिख पोतइया कतको कपूत जनम ले डारे हे। ‘जनता के मांग हे’ इसे कहिके कतको मुरूख, परबुधिया, पेजौली, छिछोड़ापन मा उतर गै हे। दूअरथ वाले गीद, संवाद और निरलज हाव-भाव देखावत हे। अइसे बैपारी मन ला हमर कला-संस्कृति ले कोई मतलब नई हे, पैसा कमाना हर ही ऊंखर संस्कृति आय, ऊंखर गोड़ तरी हमर कुछ उथलू कलाकार ढोंकरत हावयं।
फेर हे छत्तीसगढ़ महतारी! हे छत्तीसगढ़ी संस्कृति के धजा फहरइया दाऊ जी। तुमन दु:खी झन होवव। आज आदि हमर संस्कृति ल बिकृत करइया कपूत जनमें हे। त संस्कृति के मान रखइया, कला के झंडा उठइया, कतको सपूत अभी घलो संस्कृति के जुड़ा ला अपन खांध म बोहे हेें। खुमानलाल साव के चंदैनी गोंदा, दीपक चंद्राकर के ‘लोक रंग’, विवेक वासनिक के ‘अनुराग धारा’, नवलदास मानिकपुरी, रामकुमार साहू, डॉ. पीसी लाल यादव जइसे मण्डली अउ कलाकार मन, तन-मन-धन ले लोक कला के सेवा करत हे। ये मन मंच के पवित्रता ला आज घलो बना के राखे हें अउ आगू घलो येला चालू राखे बर संकलप लिये हावै। तीजन बाई, रितु वर्मा, स्व. देवदास बंजारे, सुरूज बाई खाण्डे, जइसे कलाकार हमर कला के सोर अउ जस ला देस-बिदेस म बगराय हे।
हमर असली लोक कला मा कईसन बसीकरन हावै, येकर परमान अउ पता तब मिलथे जब हजार-हजार देखइया भाई बहिनी मन रात-रात भर जाग-जाग के ईंखर आनन्द लेथें। छत्तीसगढ़ी लोककला के सेऊक लइका रामकुमार साहू कथे। हमर पराथना हे, हमर बिनती हे, के हमर कारियकरम ला सिरीफ मन बहलाव बर झन देखौ, भलुक हमर माध्यिम ले खुद ला अपन धरती ले, अपन माटी ले, अपनी संस्कृति ले जोड़ौ। जय जोहार ‘जय छत्ततीसगढ़!’
के.के. चौबे
गयानगर, दुर्ग

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