छत्तीसगढ मा लोकगाथा के परमपरा गजब जुन्नां आय, अहीर के बेटा अउ राजा के कइना चंदा के मया-पिरीत ह घलो, तइहा जमाना के बिदरोह त आय । कथे निही –
भूख न देखय जूठा भात
मया न देखय जात कुजात
छत्तीसगढ के धीर–बीर यदुबंसी मन के लक्छ ला पाये के हठ, घीउ पियाये तेंदूसार के लउठी अउ ओखर फटकार, नेम-धरम अउ रहन-सहन ला लोकगाथा मा मिंझार के ‘लोरिकायन’ के रूप म परसतुत करे गे रहिस । ये कहिनी म जहां जीउ-परान दे के अपन मया के पत राखे के बात हे, उंहचे येमा बोली बचन
निर्देसक गोपाल शर्मा के बात येला देख के सिरतोन लागथे कि ‘ कहिनी के कांदा ह कल्पाना के फोरन बिन नई मिठावय ।‘ छत्तीसगढ के लोक संस्कृति के गियानी प्रेम साईमन के कहिनी मा क्षितिज रंग शिविर के फोरन अउ संगीतकार उत्तम तिवारी के संगीत संग परसतुत ये साग ह अतका मिठाइस कि देखइया मन नांच-नाच के अंगरी चांट-चांट के अघावत ले खाईन फेर नइ अघाइन ।
ये सुघ्घर परिकल्पलना ला साकार करइया क्षितिज रंग शिविर दुर्ग हा सन् 1977 ले अपन पहरो म कतकोन खंचवा-डिपरा, खोल्दावन अउ चिखला मा रेंगे हे । ये 31 बछर मा ये संस्था- कतकोन स्टेज नाटक अउ नुक्कड नाटक के मंचन, सेमिनार संग प्रसिक्छन सिबिर घलो आयोजित करे हे । राष्ट्रीय स्तर के मुकाबला मन मा घलो हाजिरी लगा के अडबड अकन इनाम मन ला अपन झांपी मा सकेले हावय ।
क्षितिज रंग शिविर के अंवतरिया, माई मुखिया अउ समरपित कलाकार मन के लगन
छत्ती