घासी ह जइसे ही बइला के कांसडा ल, थोर कुन ढील देथे । सांयह ल ,बइला ह आगे दउडथे ।अउ अइसे भागथे कि ओकर खूर ह, धरती म नइ पडत ये ,अधरे अधर उडत हे । उडन पखेरू हो गे हे ।इंकर कांसडा ल कोनो नइ थाम सकय । घासी के ही बात मानथे ।गाडी के भगई ल डहरचला मन देखय तो दूरिहा ल ही भागय ।
आज सोनाखान के राजा रामराय घलो अपन ससुरार पिथउरा जावत हे ।इहू ह ,अपन घोडागाडी ल गजब के सजवाय हे ।दूनो राजा रानी गाडी म बइठे हे ।भाला पकडे दू झन अंगरक्षक घलो हे ।सारथी बिसनू ह , गाडी हांकत हे ।चाबुक म सडाक ले घोडा ल मारत हे ।दोनों घोडा पूंछ उठा के भागत हे ।गांव से बाहिर अभी निकले हे । खूब दउडावत हे ।पाछू बहुत दुरिहा ल खन खन खन खन के आवाज आवत हे ।पाछु म अब गाडी ह झके लग गे ।अउ देखते देखत घासी के बइला गाडी ह रामराय के घोडागाडी के पाछूच म आगे अउ बाजू से काट के सांयह ल आगू होगे ।अउ अइसे भगाइस कि गाडी ह नजर म नइ झकाइस ,हवा होगे, क्षिण म क्षार होगे ।अउ ओकर उडे धूर्रा म राजा के गाडी ह तोपा गे ।अंधाउर ,गरेर आगे , बवंडर उडगे ।गाडी ल रोक …रोक ….रोक काहत,आंखी कान रमजत राजा ह बिसनू ल कहिथे ….कस रे बिसनू ! ये ह कहाँ के गाडी ये रे ?अउ काकर ये रे ? हाँ !राजा महाराज काहत बिसनू ह कहिथे……..ये ह गिरौद के गाडी ये राजा महराज अउ ये ह घासी के गाडी आय ।
देखत हस रे बिसनू ! येकर हिम्मत तो देख ,एक राजा के गाडी ल काट के आघू बढगे ।बिसनू ह कहिथे …….हाँ राजा महराज सारंगढ के बइला दौड म पांच साल होगे पहिला इनाम पावत हे त आगू होबेच करही महराज ।आइसे !त ठीक हे रे बिसनू जब ये वापिस लहुटही त इंहेच छेक लेबे अउ मोर जगा लाबे , बइला गाडी सुद्धा ,। जतना कीमत मांगही ,मुंह मांगे दाम देहूं ।अउ ये बइला गाडी ल महीच ह रखहूं । तबहे मोर मन ह माढ ही ।अब का ससुरार जाहूं ?ओकर गाडी के पाछू पाछू ?चल चल वापिस चल ।अब नही जाना हे ससुरार । अउ जाना हे ,ते उहीच गाडी म जाना हे ।बिसनू ह घोडा गाडी ल लहुटा के वापस राजमहल आ जथे
घासी के बइलागाडी ह कुर्रू पाट के पहाडी ल पार होगे हे । सोनाखनिहा जंगल म समा गे हे । कटाकट जंगल हे ,सराई साल साजा बीजा के असासुन ऊंचा ऊंचा पेड हे । आय जाय बर बीचो बीच गाडा रवान हे ।बघुवा भालू के माडा हे ।बनभैसा, नीलगाय ,हिरण चीतल सांभर मिरगा ह तो खइरखा के खइरखा हे । तितर बटेर तो एति ओती तुरतुर भागत हे । मंजूर पांखी फैला के झूम झूम के नाचत हे । कोयल के कुहू कुहू बोली अब्बड सुहावनी लागत हे । पडकी मैना मनखे सहीन ठोल ठोलके गुठियावत हे ।घांघडा बइला के खनखनाहट ह पूरा जंगल म घन घनावत हे गुंजावत हे ।
पेड म अचानक बेंदरा के उछल कूद शुरू होगे ,हूप हूप के आवाज आय लग गे ।चिराई चिरगुन चिंव चांव ,चिंव चांव करे लग गे । घासी ह समझ गे । बइला के कांसडा ल थोरहे खींच लिस ।धीरे धीरे चलत हे ।घासी ह देखथे आघू म कोस भर दूरिहा ले , अंधउर गरेर के आवाज आवत हे । सरसर ,सरसर हिरण मिरगा भागत हे ।फडफड, फडफड पाना पताउवा उडियावत हे ।आंही बांही दू बघुवा ,हिरण ल गाडा रवाने रवान दौडावत हे ।सब हिरण मिरगा अंधाधुंध भागत आवत हे ।ये तरफ ल बइला गाडी जावत हे .,अभरेट्टा होगे । सब हिरण छिदिर बिदिर होगे । आखिर म ,एक ठो हिरण बघुवा के पंजा म पकडा जथे ।दूसरा बघुवा ह, ओकर घेंच ल हबक देथे ।हिरण झटकारत हे ,बचे बर हुमहेलत हे । हीरा मोती बइला ह हिरण ल फड फडावत देख के अगिया जथे ।आंखी से गुरेरथे अउ जोर से फुसरथे ।रख मखा के दोनो पैर म खुरचथे ।सिंग ल हिलावत ,हुंकरत,गाडी सुद्धा बघुवा ल हुबेडे बर दउडथे । बघुवा मन जान बचा के भागथे । फेर खडा होके देखथे ।बइला मन एक बार फेर हुंकरत दउडथे ।बघुवा मन अउ दूरिहा भागथे ।
एक बघुवा हिरण के पखुरा ल ,पंजा मार दे र हिस अउ दूसरा ह ओकर घेंच ल ,अपन जबडा म दबोच दे रहिस ।हिरण लहुलुहान होगे रहिस ।बेहोस पडे रहिस।घासी अउ सफुरा गाडी ल उतर जथे।दूनो दउड के हिरण ल उठाथे । सीधा करथे ,पैर पीठ ल मालिस करथे। सिर ल सहलाथे ।घासी तीर तखार म झाडी से पाना पतउवा तोडथे ।हथेरी म रमंजथे अउ रस ल हिरण के मुंह म टपकाथे ।कुछ अउ पत्ती लानथे जे ला रमंज के जिंहा जिंहा खून निकलत हे ओला पोछ के लगाथे ।अउ अपन अलगी ल पट्टी बना के बांध देथे ।
दवाई के असर पडथे हिरण के होस आ जथे ,हिले डुले लगथे। सफुरा खुश हो जथे ।हिरण उठे के कोशिश करथे ।पखुरा के चोट गहरा हे ,उठ नइ पावत ये ।टुकुर टुकुर दूनो बघुवा ,दूरिहा ल देखत हे ।अउ सोचत हे ,कब तक खैर मनाही । सब हिरण पास म आवत हे ,कोई सूंघत हे ,कोई चाटत हे ,कोई उठावत हे ,कोई रेंगाय के उदिम करत हे ।लेकिन ओ, न उठ पावत ये ,न चल पावत ये ।सब हिरण थक हार जथे ।सामने येकर जमराज बइठे हे ।अब काइसे येकर जीव ल बचावन ।”मनखे होतिच त कलहर डरतिच ,बचा ले ददा मोर लाइका ल कहिके पांव तरि लोटतिच ,बिनय करतिच अउ ओकर जान बचाय के भीख मांगतिच “। लेकिन ये तो बेजुबान जीव ये ।बस धर धरधर धर आंसू ढरत हे । सफुरा के आंखी घलो तर बतर हे ।अचरा म कभु ये हिरण के, तो कभु ओ हिरण के, आंसू पोछत हे ।कभु दुलारत हे,कभु पुचकारत हे , कभु धीरज बंधावत हे ।हीरा मोती के आंसू घलो टपाटप गिरत हे ,अउ बघुवा ल देख देख के इंकर जीव रख मखियावत हे ।
* जय सतनाम *
भुवनदास कोशरिया
कैलाशनगर भिलाई
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