दाँव गवाँ गे
गाँव-गाँव म गाँव गवाँ गे
खोजत-खोजत पाँव गवाँ गे।
अइसन लहँकिस घाम भितरहा
छाँव-छाँव म छाँव गवाँ गे।
अइसन चाल चलिस सकुनी हर
धरमराज के दाँव गवाँ गे।
झोप-झोप म झोप बाढ़ गे
कुरिया-कुरिया ठाँव गवाँ गे।
जब ले मूड़ चढ़े अगास हे
माँ भुइयाँ के नाँव गवाँ गे।
जहर नइये
कहूँ सिरतोन के कदर नइये
लबरा ला कखरो डर नइये।
कुआँ बने हे जब ले जिनगी
पानी तो हवे, लहर नइये।
एमा का कसूर दरपन के
देखइया जब सुघ्घर नइये।
बिहान मड़ियावत काहाँ चलिस
बूता ला कुछू फिकर नइये।
देंवता मन अमरित पी डारिन
हमर पिये बर जहर नइये।
लाला जगदलपुरी
श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गज़ल ला हल्बी-भथरी भाखा अउ संपूर्ण बस्तर के लोक संसार के बिद्वान बड़े भाई हरिहर वैष्णव जी ह हमला गुरतुर गोठ खातिर टाईप करके पठोये हावय. उंखर असीस अउ परेम हमला अइनेहे मिलत रहय. बड़े भाई हरिहर वैष्णव जी ल पइलगी – संजीव तिवारी