नानपन के संगवारी आय कुंवरसिंह अऊ नरोत्तम ।कुंवर सिह मन चार भाई होथे जेमा अपन तीसर नम्बर के आवय। ददा के किसानी जादा नई राहय जेकर सेती ओमन आघू पढ़े नई सकीन अऊ किसानी के बुता म धियान लगाईंन। ददा ह संग ल अबेरहा छोड़ दिस। चारो भाई मिलके महतारी संग रहीन।समे आवत गिस बड़ेभाई अऊ मंझला के बर बिहाव घलाव होगे , बहू के हाथ के पानी पीके असीस देवत दाई घलाव एक-दू बच्छर म संग ल छोड़ के चल दिस। दसकरम के दिन सबो नत्ता गोत्ता मन सकलाय रहीस। कारकरम बने बने निपटिस।दूसर दिन कुंवर के बड़े अऊ मंझला भाई मन परिवार कर बात राखिन कि अब हमन अलग खाबो हमर पुरखा के खेतखार ल बांट देवव। समझाय बुझाय म नई मानिन त सगा मन भाई बंटवारा कर दिन।फेर कुंवर अपन छोटे भाई संग रहे लागिस समिलहा खेती करे , बनीभूति जाय अऊ खाय कमाय।चार बच्छर पाछू कुंवरसिंह गबरु जवान होगे।गांव म खेती किसानी के सब मरम ल सीख गे अऊ बेरा बेरा म गांव के लोगन ल बतावय सिखावय लागिस।छोटे भाई ल गांव म पान दुकान धरवा दिस। ऐसो दूनो भाई के बिहाव करके दुनोझन घलाव सुम्मत ले अलग अलग रहे लागिन।
ओती नरोत्तम अपन ददा के एक बेटा ,पढ़े लिखे म हुसियार।आई टीआई कर लिस। गांव ले थोकिन दूरिहा सहर के कारखाना म नौकरी लग गे।ओकर बिहाव कुंवर के बिहाव के एक बच्छर आघू होय रहीस। नरोत्तम के ददा के खेतखार नई रहिस फेर नरोत्तम ल किसानी करे के अड़बड़ संऊख रहाय।ओहा सहर ले गांव आय त कुंवर के खेत म संगेसंग चल देवय।हरियर-हरियर धान,गहूं ल देख ओखर जी हरियाय जाय। चार बच्छर म कुंवर अऊ नरोत्तम के दू-दू झन लईका आगे। अब दूनो ल परिवार चलाय के चिंता होय बर लगिस। दूनो संगवारी बईठ के अपन अपन काम -बुता के उतार चढ़ाव ल गोठियाय। कुंवर कहाय अब किसानी म फायदा नई हे यार, आय दिन अंकाल दुकाल, रोग राई म धान नई ऊपजय।कमती किसानी म काला कमाबो, का ऊपजाबो अऊ काला बचाबो।परिवार बाढ़त हे लईका मन के भविस के का होही,नरोत्तम घलाव बताथे सहर म रहवई कतका दुभर हे तेला का बतावंव।लिखरी लिखरी म पईसा लागथे। दूसर महंगई ह दुब्बर बर दूअसाढ़ होथे। नून तेल से लेके चाऊंर दार सबो ल बिसा के खातन।साग भाजी के मंहगई ह कनिहा टोर देथे। कम तनखा म सहर म जीये ले मुस्कुल हो गेहे । कुंवर कहिथे हमरो चारो भाई बंटवारा नई होय रहितेन अऊ सगेरहा कमातेन खातेन त पुर जातिस।कोनो डोली म धान,कोनो म चना, तिवरा, उरीद, मूंग कोनो डोली म बरबटी, सेमी, गोभी,पताल,भांटा, मिरचा धनिया, बो देतेन। बेरा बेरा के साग भाजी ऊपजातेन। मेड़पार म बिही, आमा, चिरईजाम, केरा ,आंवरा के पेड़पऊधा लगा देतेन। फेर ये सब अब सपना होगे।
नरोत्तम कहिथे सहर म सबो जिनिस मिल जाथे फेर मंहगई के सेती सब पहुंच ले बाहिर। फेर ओमा सुवाद घलाव नई राहय, सब रसायनिक हो गेहे जौन ल खाय म फायदा कम नकसान जादा हे।नरोत्तम कहिथे,यार रेगहा लेके खेत कमा सकत हस।हव संगवारी, रेगहा मिलथे फेर ओकर बर पईसा चाही। बक्खर ,बियासी, खातू-कचरा ,दवई बुटई,से मींजई तक। मोर कर एकरेच कमती हे। जांगर अऊ किसानी करे के गियान हावय फेर ओखर उपयोग नई होवत हे। सही कहात हस, हमरो उही किस्सा हे पेट काट के अपतकाल बर पईसा बचाथन वहू ह बैंक म रहिथे । मंहगई के सेती खरचा करेबर जी नई खंधय।
कुंवर अपन दूनो लईका ल सहर के अंगरेजी इस्कूल म पढ़ेबर भेज दिस।नरोत्तम घर रहिके चारो ल ईका एके संग एके इस्कूल म पढ़े जाय। अब न कुंवर ल पईसा के चिंता होय न नरोत्तम ल महंगई के। दूनो एक दूसर ल पंदोली देवत सुख के जिनगी बितावत हे।
आज हमर समाजिक बेवस्था अतका बिगड़ गेहे तेकर बखान नई किये जा सकय।भाई भाई म बंटवारा होय के पाछू पूछय नहीं के का करत हस। नौकरी वाला टेस म मरत हे फेर रोना रोवत हे।तनखा के पईसा कमती हो जाथे। किसानी करईया के मरे बिहानी।आज एक दूसर ल पंदोली देय के आगू बढ़े अऊ बढ़ाय के जरुरत हावय।
हीरालाल गुरुजी” समय”
छुरा, जिला गरियाबंद
9575604169