संपादकीय : का तैं मोला मोहनी डार दिये

संगी हो देखते देखत हमर साहित्य के भण्डार बाढ़त जावत हे। हमर सियान अउ हमर भाखा के परेमी गुनीक मन छत्तीसगढ़ी भाखा ल संविधान के आठवीं अनुसूची म लाए खातिर अपन-अपन डहर ले उदीम म लगे हन। सांसा ले आसा हवय, आज नहीं त काली हमर गोहार ल संसद ह सुनही अउ हमर भाखा संविधान के आठवीं अनुसुची म दरज होही।

छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य म छंद बंधना म कसे रचना बीच के समे म कमती हो गए रहिसे। ये कमी ल जन कवि कोदूराम दलित जी के बेटा अरूण कुमार निगम अउ युवा भाई रमेश कुमार सिंह चौहान जइसे मन पूरा करत हें।छत्तीसगढ़ी पद्य म उंखर योगदान आघू के समें म एक मील के पथरा बनही। भाई रमेश ह हिन्दी के छंद अनुसारसन म कसे सुघ्घर गीत लिखत हंवय, बेरा बेरा म उंखर छंद हम इंहा प्रस्तुत करथन। ये हप्ता हम उंखर रोला छंद के गीत ‘कहां मनखे गंवागे’ देवत हन। अभी के जमाना म नंदावत मानवता ल देख के कवि अदभुत कल्पना करे हवंय। प्रतीक अउ बिम्ब के सहारे कवि मनखे ल जंगल झाड़ी म खोजत हे तभो मनखे नइ मिलते हे।

पाछू कुछ हप्ता ले हमला वरिष्ठ साहित्यकार गजानन प्रसाद देवांगन के साहित्य सरलग मिलते हे अउ हम ओला बड़ आदर ले गुरतुर गोठ म छापत हावन, ये हप्ता उंखर कविता छत्तीसगढ़ी ल लगावत हवन जेमा मया पलपलाए हमर दाई भाखा के महिमा के सुघ्घर गुनगान हवय। ये हप्ता के पद्य म भाई महेन्द्र देवांगन ‘माटी’ के गीत भुंइया के भगवान, छत्तीसगढ़ के किसान अउ श्रीमती प्रिया देवांगन के कविता अक्षर दीप जलाबो संग हेमलाल साहू अउ विजेन्द्र कुमार वर्मा के रचना घलो गुरतुर गोठ के सोभा बढ़ावत हे। ये हप्ता छुरा के भाई हरिशंकर गजानन्द प्रसाद देवांगन ह 10 मई के बट सावित्री के उपास के अवसर म समाज के बिदरूपता अउ बिसंगति उपर चोट करत एक व्यंग्य कथा तको लगे हे, जेमा नारी ह अब के सत्यवान ल खोजत हे।

ये हप्ता हम आप मन बर पाछू हप्ता ले सरलग चलत भाई भुवन लाल कोसरिया के बाबा धासीदास जी के जीवन वृत्तांत के तीन कड़ी देवत हन. भाई भुवन लाल जी ह बहुत सुघ्घर अउ रोचक ढ़ग ले बाबा के जीवनी ल ये वृत्तांत मन म लिखे हवय। छत्तीसगढ़ी साहित्य के सोरियईया गुनी मन ल ये वृत्तांत ल पढ़ के ओखर उपर अपन विचार खच्चित देना चाही। जेखर ले नवा रचनाकार मन ल पंदोली मिलही अउ उंखर लेखनी ल सियान मन के राय ले सुधरही।

पाछू इतवार के दिन बड़का लोक कलाकार अउ प्रसिद्ध कबीर भजन गायक भाई नवलदास मानिकपुरी जी के संस्था मोर गवंई गांव ह एक आयोजन भिलाई म करिस। आयोजन के पहिली सत्र म ‘छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि धनी धरमदास’ के व्यक्तित्व अउ कृतित्व उपर परिचर्चा रहिस जेमा सांस्कृतिक एवं साहित्यिक मंच मुजगहन के अध्यक्ष डूमन लाल ध्रुव, लोककला अउ साहित्यिक संस्था चिन्हारी के अध्यक्ष अउ हरिभूमि चौपाल के संपादक दीनदयाल साहू, वरिष्ठ साहित्यकार फुलचंद साहू जी मन अपन बिचार रखिन। कार्यक्रम म महू ल गोठियाये के अवसर मिलिस। धनी धरमदास के बारे म किताब पोथी ल टमडेंव अउ अपन कमती गियान के अधार म दू सबद मैं गोठियायेंव अउ सियान मन के ये बिसय म गोठ ल सुन के गठियायेंव। ये बिसय म येखर पाछू अउ सियान मन मेर मोर गोठ बात होईय त मोर भरम अउ बाढ़ गए। कोनो सियान गुनी मन कहिथें के धनी धरमदास के साहित्य म छत्तीसगढ़ी के पुट मिलथे, ओखर रचना ल छत्तीसगढ़ी के पहिली कविता माने जा सकथे। कोनो सियान गुनी मन कहिथें के धनी धरमदास छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि नो हय, उंखर कविता म जउन छत्तीसगढ़ी सबद मिलथे तउन पाछू समें म जोड़ देहे गए हे।मने ये बिसे म गुनी मन एक मत नइ हें।

अइसन लिख के मैं हमर माई सियान मन के महत्व अउ ज्ञान ल कम आंकत नइ हंव। उंखर बगराए अंजोरे ले आज हमर भाखा के साहित्य के अखण्ड जोत परखर अंजोर करत हे। फेर मोर इहू कहना हे के छत्तीसगढ़ी साहित्य के तथ्य अउ मानक के संबंध म छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयीन सोध अउ सियान मन के लेखनी ल अंतिम साक्छ अउ प्रमाण माने के बजाए उंखर खोज बीन जरूर करव।खोज बीन ले जइसे जइसे हमला तथ्य अउ जानकारी मिलही हम अपन बिचार घलव बदलबोन।लोगन ल कहन दे, अभी तो हम सीखत हन, येमा हम जकहा नइ हो जान। ये हमर ज्ञान अउ विवेक के विकास के सिढिया होही।संदर्भ किताब मन के सहारे ज्ञान बघारे के पहिली हमला अपन ज्ञान ल भूंजना चाही, अच्छा मद्धिम आंच म तभे साहित्य के गोंदा फूल के मोहनी असर करही।

संजीव तिवारी
संपादक

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