अपन गियान के गुन ले हमर भारत भुँइयाँ के गियानी धियानी संत मा संत रविदास के नाँव अमर हावय। मनखे के पूजा ओखर नाँव, गाँव, घर-घराना,रंग-रुप अउ धन-दोगानी ला देख के कभू नइ होवय। सिरिफ अउ सिरिफ गियान के पूजा होथे। ए बात ला सिद्ध हमर संत रविदास हा अपन गियान ले करे रहीन। अमर संत रविदास जेला रैदास कवि के नाँव ले घलाव जानथन, वो हा अपन गीत अउ कविता ले ए समाज मा छाये सरी बुरई के मेकराजाला ला सफ्फा करे के सरी उदिम करीन। संत कुलभूसन कवि रैदास के जनम हा माघी पुन्नी के इतवार के दिन कांसी नगरी मा चरमकार (चमार) कुल मा हो रहीन। इंखर ददा के नाँव संतोख दास (रग्घु) अउ महतारी के नाँव कलसा देवी बताय जाथे। कवि रैदास हा महान संत कबीरदास के गुरुभाई रहिन,काबर के इन दुनो संत के गुरु सवामी रामानंद जी हा रहीन। पनही-भंदई बनाय के इंखर पुरखौती धंधा रहिस। संत रविदास जी हा अपन मन ले खुसी-खुसी ए धंधा ला अपनाइस। अपन बुता ला बङ लगन, अनुसासन अउ महिनत ले सहीं समे मा पूरा करँय। एखर इही बेवहार ले इंखर तीर अवइया मनखे मन हा अब्बङ खुस होवँय।
संत रविदास हा साधु-संत मन के संगति मा अब्बङ गियान पाइन। नान्हेंपन ले रैदास हा बङ उपकारी अउ दयालु रहीन। साधु-महात्मा मन के साधु-महात्मा मन के सेवा, सतकार अउ सहायता मा रैदास ला बिक्कट खुसी अउ आनंद मिलय। एखर सेती संत रविदास हा बिन पइसा ले पनही-भंदई ला बना के दे देवय। साधु महात्मा मन के अइसन सेवा-सतकार ला इंखर दाई-ददा मन हा थोरको नइ भावँय। इही उदिम ला देख के इंखर बाप-महतारी मन एक दिन इंखर सुवारी सुद्धा अपने घर ले बाहिर निकाल दीन। रैदास हा परोस मा एकठन कुंदरा बना के रहे ला धर लीन अउ मन लगा के अपन काम-बुता ला करे ला धर लीन। समे बचय ता भगवान के भक्ति-भजन ला करँय। साधु-संत मन संग सतसंग करँय। गियान के मरम ला जानिन। धरम मा लबारी, पाखंड, मुरतीपूजा अउ तिरथ यात्रा के बिरोध करँय। इंखर मानना रहीन के सबले सार जीनिस हे भन के भाव हा। जात-पात, छुआछूत हा समाज के सबले घोर बुराई हरय। एमा कखरो कलयान नइ हे।
मन चंगा ता कठौती मा गंगा ला संत रविदास जी हा चरितार्थ करँय। उंखर कहना रहय के मन के मइल ला धो के,टार के फरी करे ले कठवा के पानी घलाव गंगा नहाय के पुन दे सकथे। सबले जरुरी गोठ हे मन के दसा हा। अपन इही बिचार अउ बेवहार ले संत रविदास हा समाज मा छाय अगियान के अंधियार ला भगाय के जिंयत भर सरी उदिम करते रहीन। रैदास जी के भक्ति अउ भाव हा समाज बर आज घलाव अनुकरनीय हावय। इंकर भक्ति रचना ले ए बात हा परमानित होथे।
“प्रभु तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग वास समानी”।
का मथुरा, का कासी-हरिद्वार, रैदास खोजा दिल आपना, ता मिलिया दिलदार।
तीज अभियान मेटिआपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै, कह रैदास तेरी भगति दूर हे, भाग बङे सो पावै।
जाति-जाति के जाति हैं,जो के तन के के पात, रैदास मनुस ना जुङ सके,जब तक जाति न जात।
संत रविदास के कहना रहीन के मन से बङके कोनो नइ होवय। मन के भाव सबले सार भाव हरय। मन ला सफ्फा अउ पबरित राखव, बाहिरी देखावा मा झन परव।सबला एकमई अउ बरोबर के दरजा समाज मा देवाय के सरलग प्रयास जिंयत भर ए मन हा करते रहीन। एक संत , कवि, समाज सुधारक के रुप मा रैदास के योगदान ला समाज हा कभू झन बिसरावय। सिरतोन मा आज घलाव इंखर खच्चित जरुरत हावय हमर सभ्य समाज ला।
–कन्हैया साहू “अमित”
परशुराम वार्ड-भाटापारा (छ.ग)
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