सरपंच कका

सांझ के बेरा रिहिस। बरदी आवत रहय। गरमी के दिन म संझा बेरा तरिया के पार ह बड़ सुहावन लगथे। किसुन अउ जगत, दुनों मितान टुरा घठौंदा के पथरा मन म बइठ के गपसप करत रहंय। थोरिक पाछू लखन, ओमप्रकाश , फकीर अउ चंदू घला आगें। बैठक जम गे। नवयुवक दल के अइसनेच रोज बैठक होथे। गपसप के बहाना तरह तरह के चर्चा होवत रहिथे। सहर के टाकीज मन म कोन कोन नवा फिलिम लगिस। गांव म काकर घर का होवत हे। कोन कोन टुरा-टुरी के बिहाव माड़ गे, काकर काकर माड़ने वाला हे। परीक्षा म कोन पास होइस, कोन फेल। कोन ह नौकरी के दरखास्त देवत हे, काकर इंटरव्यू होने वाला हे। काकर घर भाई-भाई के झगरा माते हे अउ बटवारा होने वाला हे, आदि, आदि…।
गांव के जवान मन के घला विचित्र हाल हे। पढ़ लिख के सब निठल्ला हो गे हें। खेती कोई करना नहीं चाहे। हजार बारा सौ के पीछू सब सहर कोती भागथें। सेठ मन के अरे तरे भले सुन लेहीं फेर दाइ-ददा के बरजना ल नइ सुनंय।
बात के छोर बदलत किसुन ह कहिथे – ‘‘भइया, मंय सुने हंव कि रघ्घू ह आय हे।’’
चंदू ह घला समर्थन कर दिस – ‘‘हव, मंय वोला बिहने खेत डहर जावत देखे रेहेंरव।’’
रघ्घू के अवइ ल सुन के जगत गदगद हो गे। खुसी के झक म पूछथे – ‘‘चंदू, कब? आजे देखे हस न?’’
चंदू – ‘‘हव भइया आजे के बात आय।’’
जगत के मन उचट गे। कहिथे – ‘‘तब चलव भाई हो, मिले बर।’’
सब के सब उठ के रेंगे लगिन।
रघ्घू अउ जगत बचपन के संगवारी आवंय। संगे खेलिन-कूदिन, पढ़िन-लिखिन। बारहवीं के बाद जगत ह नइ पढ़ सकिस। रघ्घू ह कालेज पढ़े बर रायपुर चल दिस। संग ह छूट गे। महीना दू महीना म रघ्घू ह गांव आथे। तब तक जगत ह रद्दा देखत रहिथे।
स्कूल तीर पहुंचिन। देखथें कि स्कूल के आगू म लइका मन रघ्घू ल घेर के खड़े हें। दुनों मितान एक दूसर ल दूरिहच ले देख डरिन। दंउड़ के लिपट गें।
इही स्कूल म सब संगवारी मन पढ़े रहंय। सांझ के अंधियारी म घला रघ्घू के धियान ह स्कूल के दुर्दसा कोती रहय। दीवाल ह जगा जगा ले चटक गे रहय। बेंदरा कुदइ के मारे छानी के सती गती हो गे रहय। छेल्ला गरवा के गोबर-मूत के कारण परछी ह गरवा कोठा सरीख दिखत रहय। दू चार दिन के बाद स्कूल खुलने वाला रहय।
जगत ह मितान के मन के बात ल ताड़ गे, फेर का कहय।
रघ्धू – ‘‘भाई हो आज कल म स्कूल ह खुलने वाला हे, गांव के सियान मन ल स्कूल के ये हालत ह नइ दिखय का?’’
फकीर ठहरिस जनम के टेचरहा। कहिथे – ‘‘दिखथे, फेर केवल पइसा ह।’’
रघ्धू ल उदास देख के लखन ह गप्प सप के बात निकाल दिस।
सबे झन रघ्धू घर कोती जाय लगिन। गली म घुप्प अंधियार हो गे रहय। रघ्धू ह एक ठन पथरा म हपट गे। गिरत गिरत बचिस। बदबू के मारे नाक नइ दे जात रहय। रघ्घू ह काली घला इही बेरा बस ले उतर के घर जावत समय लकड़ी के गोला म झपाय रिहिस।
आज बिहिनिया के बात आय। रघ्धू ह नहाय बर तरिया जाय के तइयारी करत रहय। बाबू जी ह कहिथे – ‘‘घरे म नहा ले। तरिया म लद्दी के सिवा कुछू नइ हे।’’
बोfरंग मन घला बिगड़े परे रहय। इही सब बात मन आज दिन भर रघ्धू के दिमाग म घूमत रहय।
दुनों मितान संगे जेवन करिन अउ तरिया पार कोती फेर निकल गें। घठौंदा म फेर सब संगवारी जुरिया गें।
रघ्घू ह संगवारी मन ल कहिथे – ‘‘भाई हो, आज सब जगा विकास के बात होवत हे। सरकार ह गांव के विकास खातिर भरपूर मदद करत हे। सब गांव म विकास होवत घला हे, फेर हमर गांव ह उल्टा दिसा म जावत हे।’’
जगत – ‘‘एक अकेला मंय का कर सकहूं भइया। कुछू कहि देबे, ते मुंह दोखनहा बन जाबे। तरिया बर डेढ़ लाख रूपिया आय रिहिस। पचास टेक्टर लद्दी घला नइ निकलिस होही, पइसा ह पच गे। गांव समिति के पइसा कहां जाथे, कोई ल गम नइ मिलय।’’
रघ्घू – ‘‘भाई हो, अत्याचार ल सहना घला अत्याचार करे के बराबर होथे। एक झन के बोले म कुछू नइ होवय। हम सब झन ल मिल के आवाज उठाय बर पड़ही।’’ घंटा भर ले मिटिंग चलिस। रघ्घू के बात सुन सुन के सब जोसिया गें। का करना हे, कइसे करना हे, सब तय हो गे। तय होइस कि सबले पहिली गांव भर के सियान मन ल बैठक म बला के गांव के समस्या मन ल सुलझाय के सलाह मांगे जाय।
बिहिनिया बात ह गांव भर म फैल गे। सब के मुंह म एकेच बात। मुसवा राम ह कहत रहय – ‘‘सुनेस जी मरहा राम, काली के डिंगहा टुरा मन आज बैठक सकेल के सरपंच से हिसाब मांगहीं। हें हंे …।’’
सबर दिन के घुचपुचहा अउ डरपोक मरहा राम। वहू ह दांत ल निपोर दिस।
वोती ले संपत आ गे। कहिथे – ‘‘बड़े बड़े आदमी मन जेकर कुछ बिगाड़ नइ सकिन, वो सरपंच के ये मन का उखाड़ लेहीं रे मुसवा। साले मन ल जूंता पड़ही, तहां ले सब सोझिया जाहीं।’’
सांझ होइस। हांका पड़ गे। कोटवार ह घूम घूम के हांका पारत रहय।
सरपंच के बाड़ा म आज वोकर जम्मों चेला चपाटी मन सकलाय रहंय। संपत, मुसवा, धुरवा, नानुक…..। सरपंच आरामी कुरसी म अनमनहा कस बइठे रहय। गंजेड़ी मन गांजा के धुंगिया उड़ात रहंय त मंदहा मन चेपटी ढरकात रहंय। कोटवार ह बांड़ा तीर आइस। सरपंच ह वोला बला के कहिथे – ‘‘का हांका पारथस रे कोतवार?’’
– ‘‘बैठका के मालिक।’’
– ‘‘का बात के बैठका होवत हे?’’
– ‘‘पता नहीं।’’
– ‘‘कोन आडर दिस?’’
– ‘‘नवयुवक दल वाले मन।’’
– ‘‘ये कब ले पैदा हो गे रे। बने हे। जा हांका पार। टिटर्री के थामे ले अगास नइ थमे।’’
एके हांका म गांव खलक उजर गे। पंचायत घर के आगू म चमचमउवा बैठक बइठ गे।
मुसवा ह कहिथे – ‘‘कइसे कलेचुप बइठे हो जी। बैठक बलइया कोन हरे, काबर नइ गोठियाय?’’
कोनो अउ कुछ कहय वोकर पहिली रघ्घू ह कहिथे – ‘‘सबो सियान मन ल प्रणाम। आज के बैठक ल हम सब नवयुवक संगवारी मन बुलाय हन।’’
संपत – ‘‘का पहाड़ टूट गे हे तुंहर ऊपर कि सियान मन के बिना सलाह के बैठक बला डारेव।’’
जगत – ‘‘पहाड़ेच टूटे हे, फेर ककरो एक झन के ऊपर नहीं, सबके ऊपर। समस्या व्यक्तिगत नो हे, सार्वजनिक आय, गांव भर के आय।’’
संपत – ‘‘गांव म काली तक तो कुछू समस्या नइ रिहिस, आजे कहां ले आ गे?’’
मुसवा – ‘‘अरे भइ, बतावन तो दे एकात ठन ल।’’
नानुक – ‘‘अरे कुछू समस्या नइ हे जी। समस्या के नाम म ये मन गांव म फूट पैदा करना चाहत हें।’’
जगत – ‘‘फूट के बात तंय झन कर कका। पहिली स्कूल ल जा के देख, वोकर का हाल हो गे हे। चार-छै दिन बाद स्कूल खुलने वाला हे। वो ह गांव के समस्या नो हे का? उहां ककरो एक झन के लइका नइ पढ़य, गांव भर के लइका पढ़थे।’’
फकीर ह मौका देखत रहय। कहिथे – ‘‘जेकर आंखी म पट्टी बंधाय हे, वो अउ सुने। गांव के दाई बहिनी मन एक लोटा पानी खातिर रात भर पहरा देथें। आधा बोfरंग मन बिगड़े पड़े हंे। गली लाइट बंद होय छै महीना हो गे हे। होइस कि अउ गिनांव।’’
संपत अउ मुसवा के बोलती बंद हो गे।
गावं के सबो आदमी जानत रहंय कि नवयुवक दल वाले मन के कहना वाजिब हे। फेर कोनों ऊंखर पाट दाबे बर खड़े नइ होइन।
सरपंच अउ वोकर मुंहलग्गू मन से कोन दुस्मनी मोल लेय। रघ्घू – ‘‘आप सब जानथव कि हमर गांव के अतका आमदनी जरूर हे, जेकर से ये सब समस्या ल हल करे जा सकत हे।’’
सरपंच ठहरिस पक्का घाघ आदमी। राजनीतिक परपंच म वोकर संग कोन सकय। वो तो हर बात के तोड़ धर के, पूरा सोंच-विचार के आय रहय। जगा खोजत रहय। जगा मिल गे। कहिथे – ‘‘भाई हो ! दसों साल हो गे मोला सरपंची करत। ककरो अहित करे होहूं ते बतावव। रहि गे बात समस्या के, जेकर कोनो अंत नइ हे। घर के कहस कि गांव के। एक ठन समस्या ल सुलझाबे, दूसर आ के खड़ा हो जाथे। हमर लइका मन जउन समस्या के बात करत हें, वो वाजिब हे। वोकरो निदान होही। फेर ये तो एक ठन अटघा आय। अभी रघ्घू किहिस, विही असली बात आय। गांव के समस्या के आड़ म ये मन मोर से हिसाब मांगना चाहत हें। आप मन विसवास करके मोला सरपंच बनायेव, महूं विसवासघात नइ करंव। आप मन ल एक-एक ठन चीज के हिसाब देहूं। फेर हिसाब मांगे के भी तरीका होना चाही। बीच सभा म अइसन अपमानित हो के कोन ल अच्छा लगही? विसवास अउ इज्जत सबले बड़े चीज होथे। हमर तो दुनों लुट गे। हिसाब भी मिल जाही अउ इस्तीफा भी। दू दिन के समय मांगत हंव।’’
सरपंच के गांजा पारटी अउ मंद पारटी वाले मन इही मौका के ताक म रिहिन। मुसवा रोसियागे – ‘‘ये मन हमर गांव के सियान आवंय कि इंकर दाई-ददा मन अपन घर के सियानी ल इही मन ल सौंप देय हे? जउन सियान होही , विही मन ल हिसाब मांगे के अधिकार हे। अइसन हगरू-पदरू मन हिसाब मांगही तब सियान के का मरजाद रहि जाही? या फेर करंय इंहीं मन गांव के सियानी ल।’’
नानुक घला चेपटी के असर देखाइस – ‘‘जाओ रे बाबू हो, अपन दाई-ददा ले अपन घर के हिसाब मांग के आहू पहिली,।’’
संपत ह अपन फैसला सुनाइस -’’लइका मन के बात ल धर के रेंगहू, ते गांव दुफुटिया हो जाही। हिसाबेच लेना हे ते सियान मन के मुंहू म लाड़ू गोंजा गे हे का? इंकर तरफ अउ कोन कोन हेा? काबर नइ बोलव।’’
अतका म गंजहा पारटी वाले मन हो हल्ला सुरू कर दिन। सब उठ उठ के जाय लगिन।
सरपंच ह गदगद हो गे। मने मन सोंचिस – ‘‘मोर दारू अउ गांजा के कीमत आज वसूल हो गे।’’
थेरिक देर म रघ्घू अउ वोकर संगवारिच मन बांच गे।
रघ्घू ह अपन संगवारी मन ल सकेल के कहिथे – ‘‘भाई हो, जउन बात के आसंका रिहिस, विहिच होइस। फेर निरास नइ होना हे। हमन म सच्चाई होही ते हमर जीत हो के रही।’’
सब झन काली के योजना बनाय म लग गें।
मंुधेरहच बोfरंग मन म ठकर-ठकर सुरू हो गे। पनिहारिन मन के मुंहूं म एकेच गोठ – ‘‘अइ सुनथस या जेंवारा, बइसका म लइका मन बने बात ल उठाय रिहिन कहिथें। फेर ये गंजहा-मंदहा मन के रहत ले ककरो चलय तब?’’
नंदगहिन कहिथे – ‘‘पागा बंधइया मन सब चुरी पहिर के बइठे रिहिन होहीं। फेर हमन चुप नइ बइठन। हमर महिला समूह ह लइका मन के पाट जरूर दाबही।’’
बेर उवत उवत अचंभा हो गे। नवयुवक दल वाले अउ जम्मों पढ़इया लइका मन बहरी, झंउंहा अउ रापा धर धर के स्कूल मैदान म सकलाय लगिन। पांच-पांच झन के दल बन गे। देखते देखत स्कूल के साफ-सफाई हो गे। फेर एक-एक ठन दल ह एक-एक ठन गली म बगर गें। तब महिला समूह वाले दीदी मन पीछू थोड़े रहितिन, लइका मन के पीछू वहू मन निकल गें। नौ बजत ले गांव चकाचक हो गे।
बारा बजत ले जगत अउ किसुन नांदगांव ले बोfरंग वाले सरकारी मिस्त्री मन ल धर के आ गें। सांझ होत ले आधा बिगड़हा बोfरंग मन बन के तइयार हो गे।
दूसर दिन बानर सेना फेर तइयार हो गे। स्कूल बर पांच-पांच ठन खपरा मांगे बर घरो घर घूमे लगिन। देखते देखत गाड़ी भर ले जादा खपरा सकला गे। अब तो सियान मन घला उfमंहा गें। जेखर जइसे बनिस, काड़-कोरइ, आरी-बसला धर के स्कूल म सकला गें। सांझ के होत ले स्कूल घला चकाचक हो गे।
नवयुवक दल के जय जयकार हो गे। कल तक जिंखर मुंह म ताला लगे रहय, अब वहू मन गोठियाय लगिन।
गंजहा-मंदहा पारटी वाले मन के मुंहू ओरम गे।
सरपंच ह दू दिन ले मुंह नइ देखाइस।
दू दिन बाद फेर बैठका सकला गे। आज तो गली लाइट मन घला जलत रहंय।
सरपंच ह बीच सभा म खड़े हो के कहिथे – ‘‘भाई हो आज के बैठका ल मंय सकेले हंव। मोर समझ गलत रिहिस। अपन करनी ऊपर मोला पछतावा हे। मंय आप सब से, अउ, रघ्घू अउ वोकर संगवारी मन से झमा मांगत हंव।’’
बैठक म छिन भर बर सन्नाटा छा गे।
संपत, मुसवा अउ नानुक कते जगा लुकाय रहंय, आरो नइ मिलिस।
रघ्घू ह किहिस – ‘‘सरपंच कका, आप मन ल क्षमा नइ मिल सकय…।
चकित खा के सब कोई एक दूसर के मुंहूं देखे लगिन कि रघ्घू अब का बोलही।
रघ्घू ह फेर किहिस – ‘‘आप मन ल क्षमा नइ मिल सकय। काबर कि हम तो आप ल कभू गलत बनाएच नइ हन।’’
छिन भर फेर सन्नाटा छा गे। तभे जगत ह ताली बजा दिस। किसुन अउ फकीर ह घला ताल म ताल मिला दिस। फेर तो चारों खूंट ले तड़-तड़ तालिच ताली बजे लगिस।

कुबेर
(कहानी संग्रह भोलापुर के कहानी से)

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