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छंद सार

सार छंद

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, आये हवै हरेली।
खुशी छाय हे सबो मुड़ा मा, बढ़े मया बरपेली।

रिचरिच रिचरिच बाजे गेंड़ी, फुगड़ी खो खो माते।
खुडुवा खेले फेंके नरियर, होय मया के बाते।
भिरभिर भिरभिर भागत हावय, बैंहा जोर सहेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, आये हवै हरेली—-।

सावन मास अमावस के दिन,बइगा मंतर मारे।
नीम डार मुँहटा मा खोंचे, दया मया मिल गारे।
घंटी बाजै शंख सुनावय, कुटिया लगे हवेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, आये हवै हरेली-।

चन्दन बन्दन पान सुपारी, धरके माई पीला।
टँगिया बसुला नाँगर पूजय, भोग लगाके चीला।
हवै थाल मा खीर कलेवा, दूध म भरे कसेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, आये हवै हरेली-।

गहूँ पिसान ल सान मिलाये, नून अरंडी पाना।
लोंदी खाये बइला बछरू, राउत पाये दाना।
लाल चिरैंया सेत मोंगरा, महकै फूल चमेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, आये हवै हरेली।

बेर बियासी के फदके हे, रंग म हवै किसानी।
भोले बाबा आस पुरावय, बरसै बढ़िया पानी।
धान पान सब नाँचे मनभर, पवन करे अटखेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, आये हवै हरेली—।

जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया”
बाल्को (कोरबा)
9981441795



One reply on “सार छंद”

Bahut badiya verma ji

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