सावन बइरी (सार छंद)

चमक चमक के गरज गरज के, बरस बरस के आथे।
बादर बइरी सावन महिना, मोला बड़ बिजराथे।

काटे नहीं कटे दिन रतिहा, छिन छिन लगथे भारी।
सुरुर सुरुर चलके पुरवइया, देथे मोला गारी।

रहि रहि के रोवावत रहिथे, बइरी सावन आके।
हाँस हाँस के नाचत रहिथे, डार पान बिजराके।

पूरा छंद ये कड़ी म पढ़व..

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