गरिबहा मन ला रोजे रोज अपन करम उठाना हे
संहीच मा भइया बडहरे मन के ये जमाना हे।
का कोनो ला दीही ओ बपुरा भिखमंगा हा
जुच्छा-जुच्छा गाना हे, जुच्छा अउ बजाना हे।
बाप के कमई मा भला बेटा ला का लागही
फोकट के खाना हे अउ गुलछर्रा उड़ाना हे।
जेखर उठना, बइठना हे मंतरी, संतरी संग
जेखर गोठ हा भईया इंहा सोला आना हे।
बने के संगति बने अउ गिनहा के गिनहा
गहूं के संग किरवा ला घलो पिसाना हे।
चलव सब्बो जुर मिल के करन हमन परन
छत्तीसगढि़या भाखा ला चारो मुड़ा फईलाना हे।
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जीव ला कखरो कलपा के तंय दुन्नो खीसा भरबे का।
घूस घलव हे चोरी डाका ले नरक म परबे का।।
बने असन फोरिया ले तै हा का सच हे का झूठ हवय।
सक सुबहा म बिन फोकट के घर मा झगरा करबे का।
ये नसा नास के जर होथे तेला तहूं तो जानथस।
मरे जिये ले दारू पीके जियत जियत मरबे का।।
येती वोती चारो कोती देख ताक के रेंगें कर।
कहूं हपटबे पथरा म तब पथरा संग तै लड़बे का।।
जतका आमद तोर हवय तेखर ले जादा ,खरचा हे।
घर परिवार चलाए बर अब करजा बोड़ी करबे का।।
पारा परोसी के बढ़ती ला फूटे आंखीं नई देखे।
ईरखा डाह जलन के मारे लकड़ी कर तैं बरबे का।
खेत खार के जोखा करले बेरा आगे पानी के।
नहीं त खेती परिया परही गांव गवतरी गिंजरबे का।
ये दुनिया के सागर मा तो दया मया हा डोंगा हे।
बिना डोंगा के सावन भईया बीच भंवर मा बुड़बे का।।
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पहिली अपन रद्दी आदत ला सुधार ले
तेखर पाछू कागज के रावन ला मार ले।
अभी का बिगड़े हे तंय जीयत ले बना,
पाप के रद्दा ला पुन मा चतवार ले।
राम के कथा हवय तियाग के कथा,
इरखा ला तियाग के चोला ला उबार ले।
पढ़ के अउ सुन के रमायन ला गुन,
गियान के उजियार मा आजा अंधियार ले।
छोड़ के मारामारी, लबारी अउ चारी,
सत ला बिसा ले तंय इमान के बजार ले।
कहां जाबे राम ला तैं खोजे बर भाई,
मन के मंदिर मा आरती ला उतार ले।
रावन कस झन हो बइमान अउ घमंडी,
इही सीख ले ले अब दसरहा तिहार ले।
पाछू पछताबे तब का होही ‘सावन’
चार दिन के जिनगानी हे सोंच ले विचार ले।
सी.पी.तिवारी ‘सावन’
नीक लागिस आप मन के कविता ला पढ के।
सुघ्घर गज़ल । छत्तीसगढी ल दुनियॉ म बगराना हे । बधाई ।