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सुधा वर्मा के गोठ बात : नवरात म सक्ति के संचार

नवरात्र के शुरूवात घट इसथापना ले होथे घट म पानी भर के आमा पत्ता ले सजा के ऊपर म अनाज रखे जाथे। प्रकृति ले जुरे तिहार प्रकृति के पूजा करथे। पानी घट म रखना ‘जल ह जीवन आय’ के बोध कराथे। जेन कलस के हम पूजा करथन तेन म जल हावय। आज ये जल के काय हालत होगे हावय सोचे के विसय आय। आमापान, केलापान प्रकृति के हरियाली जेन हमन ल जीवन देथे तेखर पूजा करना। पूजा के संग-संग पूजा स्थान म जगह देना। जीवनदायनी ऑक्सीजन हमला इही पत्तामन ले मिलथे। दूर्वा या दूबी के स्थान तो अतेक ऊंचा हावय के ओखर बिना पूजा सम्पन्न नई होवय। जब सृष्टि म कुछु नई रहिस हे तब दूबी रहिस हे।
दूबी अइसना पौधा या घास आय जेन कभू नष्ट नई होवय। दूबी सूखा जथे, सुखाय के बाद ओला जला दे जाय। तभो ले ओखर गठान म जीवन बांचे रहिथे। कई साल के बाद जब पानी परथे तब इही जले गांठ ले नवा पौधा के जनम होथे।
ये नवरात्र अइसने सक्ति के संचार करथे। चइत के नवरात्र सक्ति जागरन के नवरात आय। येमा उपवास, तप जप के बहुत महत्त होथे। ये सब विधि विधान जर्जर सरीर म सक्ति पैदा करथे। दूबी के जेन बीज आगी म जले के बाद भी मर नहीं सकय वइसने ये सात्विक सोच उपवास जब तब के आगी ले निकल के सुग्घर नवा जीवन पाथे। आज नस्ट होवत प्रकृति ल बचाए बर सोचना चाही। सियान मन के बनाए तिहार के पाछू कुछु न कुछु वैज्ञानिक कारन हावय जेन ल आज समझे के जरूरत हे। हर घटना पूजा-पाठ, नियम-धरम अंधविश्वास नोहय। येखर कारण सोचना हे। घट के पानी, दूबी अउ जंवारा, आमा, केला के पाना हमला बहुत कुछ बताथे। ऐखर बिना पूजा नई हो सकय ये कहना गलत हावय फेर येखर सुरक्छा बर सोचना चाही। नवरात के जंवारा आज जीवन रस बनगे हावय। नौ दिन के बाद गेहूं वार, बाजरा के पाना के रस सरीर के मरत कोसिका म जीवन भर देथे। नवरात्र के अरथ समझे के जरूरत हे अउ ओखर सम्मान करे के जरूरत हे।

सुधा वर्मा
संपादक – मड़ई (देशबंधु)
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