हीरानंद सच्चिदानंद वात्सायन अज्ञेय के तीन कविता

सांप
सांप! तोला सऊर अभी ले नई आईस
सहर म बसे के तौर नई आईस
पूछत हंव एक ठन बात-जवाब देबे?
त कइसे सीखे डसे बर-जहर कहां पाये?

पुल
जोन मन पुल बनाहीं
वो मन सिरतौन पाछू रहिं जाहीं
नहक डारही सेना
रावन ह मरही
जीत जाही राम ह
जोन मन बनईया रहिन
वो मन बेन्दरा कहाहीं।

बिहनिया जागेंव त…
बिहनिया जागेंव त घाम बगर गे रिहिस
अऊ एक ठन चिरई ह अभीच्चे गीत गावत रिहिस।
मेंहा घाम ले कहेंव, मोला थोरिक गरमी देबे का उधार?
चिरई ले केहेंव तोर गुरतुर बानी थोरिक उधार देबे का?
कांदी के हरियर पाती ले पूछेंव- थोरिक हरियर सुघरई देबे?
तो पत्ती के नोंक भर?
संखपुस्पी ल पूछेंव- उजियार देबे
चिटुक किरन भर?
हवा करा मागेंव थोरिक खुले जगह सिरिफ सांस भर
लहर करा-रुंआ भर कांपत चिटक खुसी
अकास ले मांगेंव आंखी म थोरिक झपकी-उधार
सबो करा मागेंव उधार-सबो मन दिन
अइसने में अऊ जियत हंव
काबर इही त जिनगी ये
गरमी, मीठ बात, हरियरपन अंजोर
खुसबू भरे खुले वातावरन
लचक, खुसी, लहर के बहाव
अऊ ग्यान महान
चारों मुड़ा बगरे हे
अब्बड़ अकन-उधार मांगे जिनिस।

आनंद तिवारी पौराणिक
श्रीराम टाकीज मार्ग
महासमुन्द

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