दुखिया बनगे सुखिया – राघवेन्द्र अग्रवाल

तइहा-तइहा के बात ये एक ठन गांव म एक झन माई लोगिन रहय। भगवान ह वोकर सुख-सोहाग ल नंगा ले रहय। वो ह अकेल्ला अपन जिनगी ल जियत रहय। वोकर एक झन बेटा रहय, नाव रहिस लेड़गा। ‘जइसना नाव तइसना गुन’ तभो ले वोकर दाई ह वोला अड़बड़ मया करय। दिन जात बेर नि लागय। नानकन ले बड़े होगे। महतारी ह वोकर लेड़गई ले संसो म परगे । कमाय-धमाय बर जांगर ह नइ चलय। ढिल्ला गोल्लर कस गिंदरत रहय। वोकर दाई सुकवारो ह मन म भंजाइस के अब ये टूरा…

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सीला बरहिन नान्हें कहिनी – सत्यभामा आड़िल

सीला गांव ले आय रिहिस, त सब ओला सीला बरहिन कहांय। अपन बूढ़त काल के एक बेटा ल घी-गुड़ खवावय, त देवर बेटा मन ल, चाऊर पिसान ल सक्कर म ए कहिके पानी मं घोर देवंय। देवरानी जल्दी खतम होगे देवर तो पहिलिच खतम होगे रिहिस। नान-नान लईका देवर के फेर सीला बरहिन के बेटा ह सबले छोटे रिहिस। देवर के बड़े दूनों बेटा मास्टर होगें मेट्रिक पढ़े के बाद। सीला बरिहन अपन बेटा ल देवर बेटा घर पहुंचईस पढ़े बर। हर आठ दिन मं घी, चाऊंर ले के आवय।…

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हरमुनिया – मंगत रविन्‍द्र के कहिनी

रमाएन तो कतको झन गाथें पर जेठू के रमाएन गवई हर सब ले आन रकम के होथे। फाफी राग…. रकम-रकम के गीद ल हरमुनिया म उतारे हे। जब पेटी ल धरथे ता सब सुनईया मन कान ल टेंड़ देथे। ओकर बिना तो रमाएन होबे नई करै। सरसती मंइया तैंहर बीना के बजईया…. उसाले पांव बाजे घुंघरू ओ मइया छनानना, उसाले पांव…..। नानपन ले जिंहा रमाएन होवै तिहां सुने ल चल देवै एक कोन्टा म बइठ के चित्त लगा के सुनै। कोन रात कोन बिकाल ले घर म फिरै। रमाएन सुनत-सुनत…

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हरमुनिया – मंगत रविन्‍द्र के कहिनी

रमाएन तो कतको झन गाथें पर जेठू के रमाएन गवई हर सब ले आन रकम के होथे। फाफी राग…. रकम-रकम के गीद ल हरमुनिया म उतारे हे। जब पेटी ल धरथे ता सब सुनईया मन कान ल टेंड़ देथे। ओकर बिना तो रमाएन होबे नई करै। सरसती मंइया तैंहर बीना के बजईया…. उसाले पांव बाजे घुंघरू ओ मइया छनानना, उसाले पांव…..। नानपन ले जिंहा रमाएन होवै तिहां सुने ल चल देवै एक कोन्टा म बइठ के चित्त लगा के सुनै। कोन रात कोन बिकाल ले घर म फिरै। रमाएन सुनत-सुनत…

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दिसाहीनता – सुधा वर्मा

एक समय रहिस हे जब हर पढ़इया अपन गुरू के सम्मान करंय। रद्दा म रेंगत गुरूजी ह हर राहगीर सम्मान के नजर ले देखय। गांव के इसकूल म जब नवा गुरूजी जाथे। त गांव के खाली घर ओखर बर जोहथे। किराया के बात रहिबे नइ करय। गांव के हर मनखे ओला सहयोग देथे, ओखर सम्मान करथे। जुन्ना समय म गुरूकुल राहय। जिंहा बडे-बडे राजा -महाराजा के लइका मन राहंय अउ अपन गुरू के सेवा करंय। धीरे-धीरे समय बदलत गिस। सम्मान के भावना कम होवत गिस आज तो स्थिति मारपीट तक…

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मंगत रविन्‍द्र के कहिनी ‘सोनहा दीया’

चारों मुड़ा लेन्टर के घर…पिछोत म नीलगिरी के ऊँचपुर रूख, दिनरात फुरहुर बइहर परोसत रहै। अंगना कती के कंगुरा म परेवा के मरकी बंधाए रहै जेमा धंवरा-धंवरा परेंवा मन ए मरकी ले ओ मरकी दउंड़-दउंड़ के घुटुर-घुटुर बोलत रहैं। बारी म पड़ोरा के पार लम्बा-लम्बा फर चुपचाप बोरमे हे। अंगना म बोरिंग के मुठिया सुरतावत अद्धर म टंगाए हे। सांझ कन अंधियारी के समाती म अघनिया के खोली म धीमिक-धीमिक दीया बरत रहै। अघनिया के तीर ओकर औतारे दु ठो बाबू… दाई के जांघ ल पोटारे चटके रहैं। अघनिया… पलंग…

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मंगत रविन्‍द्र के कहिनी ‘सोनहा दीया’

चारों मुड़ा लेन्टर के घर…पिछोत म नीलगिरी के ऊँचपुर रूख, दिनरात फुरहुर बइहर परोसत रहै। अंगना कती के कंगुरा म परेवा के मरकी बंधाए रहै जेमा धंवरा-धंवरा परेंवा मन ए मरकी ले ओ मरकी दउंड़-दउंड़ के घुटुर-घुटुर बोलत रहैं। बारी म पड़ोरा के पार लम्बा-लम्बा फर चुपचाप बोरमे हे। अंगना म बोरिंग के मुठिया सुरतावत अद्धर म टंगाए हे। सांझ कन अंधियारी के समाती म अघनिया के खोली म धीमिक-धीमिक दीया बरत रहै। अघनिया के तीर ओकर औतारे दु ठो बाबू… दाई के जांघ ल पोटारे चटके रहैं। अघनिया… पलंग…

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हाईकू

परसा फूल लगा देथे गा आगी लईका बागी । भाई-भाई के लईका, आन बर होथे मडई । स्‍टोव ह तभे फटथे, जब वोला बहू धरथे । गद्दा ह आगे कथरी नँदागे पीठ पीरागे । चँदा म जाके झन इतरा, तोर हाल ल बता । एती गोदाम भरे, वोती हँडिया उपास परे । भूख लागथे सब खाथे, भूख ह काला बचाथे ? चील ताकथे मरे ला, मइनखे ताकै मारे ला । गुडी के गोठ अब कहॉं ले पाबे टी वी झपागे । जाज ह घलो देख आज लजाथे टी वी देखाथे…

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सरग ह जेखर एड़ी के धोवन – डॉ. पीसी लाल यादव

सरग ह जेखर एड़ी के धोवन, जग-जाहरा जेखर सोर। अइसन धरती हवय मोर, अइसन भुईयां हवय मोर॥ कौसिल्या जिहां के बेटी, कौसल छत्तीसगढ़ कहाइस, सऊंहे राम आके इहां, सबरी के जूठा बोइर खाइस। मोरध्वज दानी ह अपन, बेटा के गर म आरा चलाइस, बाल्मिकी के आसरम म, लवकुस मन ह शिक्षा पाइन। चारों मुड़ा बगरे हे जिहां, सुख-सुम्मत के अंजोर। अइसन धरती हवय मोर, अइसन भुंईयां हवय मोर॥ बीर नारायन बांका बेटा, आादी के अलख जगाए, पंडित सुन्दरलाल शर्मा, समता के दिया जलाए। तियाग-तपस्या देस प्रेम के, कण-कण ह गीत…

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दू आखर

बेरा हा कईसे ढरकत जाथे पता नई चलय, देखते देखते हमर ये गुरतुर गोठ के दू महीना पुर गे । ये बीच म हम आपमन बर हमर भाखा के कबिता, कहनी अउ साहित्‍य के थोकुन सुवाद आपमन बर परसेन । आपो मन अपन टिप्‍पणी ले हमला बल देहेव आपके ये मया हा हमला सरलग रहे बर पंदोली के काम करिस । आपमन के परेम बने रहिही त हम आप मन बर अइसनेहे धीरे बांधे रचना परसतुत करत रहिबोन । हमर प्रदेस म पाछू महीना चुनाव तिहार के बडा जोर रहिस…

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