सुरता हर आथे तोर

सपना सही तैं आये चल देहे मोला छोड़,सुरता हर आथे तोर,सुरता हर आथे तोर। आके तीर म पूछे तैंहा, सीट हावै खाली,कहाँ जाबे तैहा ग, मैं हा जाहूं पाली।छुटटा मागें सौ के,मया ल डारे घोर,सुरता हर आथे तोर,सुरता हर आथे तोर। रंग बिरंग के चूरी पहिरे छेव छेव म सोनहा,फूल्ली पहिरे नाक म,नग वाले तिनकोनहा।कोहनिया के कहे उठ,खुंदागे लुगरा छोर,सुरता हर आथे तोर,सुरता हर आथे तोर। सकुचावत अनगहीन,कहे जावत हावंव,छिन भर म का खोयेंव,पायेंव का बतावंव।हिरदे के पूंजी जमों,ले गये बटोर,सुरता हर आथे तोर,सुरता हर आथे तोर। नाव पता नई…

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छत्तीसगढ़ महतारी

अंचरा म फूले हे गोंदा माथा म चमकथे चंदा बगरे चंदैनी हे लुगरा म तोर तहीं हर छत्तीसगढ़ महतारी अस मोर भारत मां के दुलौरिन बेटी तोर सीतल छांव तोर सरन म परे हावैं सहर नगर गांव कोनो आईन हाथ पसारे सरबस ल दे डारे बांधे सब संग तैं मया के डोर तोर नांव ल सुनिन सबो परदेसिहा भाई करम ल गंठिया के झांकिन तोर दुवारी ल दाई कोनो ल नई दुतकारे सबके करम ल संवारे कर देहे सबके मुंह ल अंजोर मंझ म सहर जगर-मगर छें-छें म गांव बगरे…

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चेरिया का रानी बन जाहय

आदरणीय सुकवि बुधराम यादव संपादक “गुरतुर गोठ”, वरिष्ठ साहित्कार बिलासपुर छत्तीसगढ़ के प्रकाशनाधीन छत्तीसगढ़ कबिता संग्रह ” मोर गाँव कहाँ सोरियावत हंव “ ले एक-एक ठन कबिता रूपी फूल चुन के “सरलग” हम आपमन के सेवा म परसतुत करत हन. गत अंक में आपमन पढेव …. “तोला राज मकुट पहिराबो ओ मोर छत्तीसगढ़ के भाषा, तोला महरानी कहवाबो ओ मोर छत्तीसगढ़ के भाषा…”आज के अंक म अनंद लेवव एक ठन अउ सुघ्घर रचना के अउ अपन असीरवाद देवव हमला. ” चेरिया का रानी बन जाहय………” काबर कुलकत हवस भुलउ राज…

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मोर गाँव

बने रहै मोर बनी भूती ह, बनै रहै मोर गाँव,बने रहै मोर खपरा छानही,बर पीपर के छाँव। बड़े बिहनिहा बासत कुकरा, आथे मोला जगाये,करके मुखारी चटनी बासी,खाये के सुरता देवाये।चाहे टिकोरे घाम रहै या बरसत पानी असाढ़,चाहे कपावै पू ा मांघ, महिना के ठूठरत जाड.।ओढ़ ले कमरा खूमरी, तैहा बढाना हे पांव,बने रहै मोर खपरा छानही, बर पीपर के छाँव। गैंती, कुदरा, रापा, झउहा, नागर,जुवाड़ी तूतारी,गाड़ी बइला,कोपर दतारी,जनम के मोर संगवारी।सोझे जाथौं खेत तभो, लाढी डोरी धरे हंसिया,मेहनत के पुजारी मैं, किसानी मोर तपस्या।आंव बेटा मैं किसनहा के, कमिया हे…

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मधुमास

मन धरती के झुमरत हे आज रे  चंदा चंदैनी के मड़वा छवाय  बांधे मउर खड़े मधुमास रे  मन धरती के झुमरत हे आज रे कुहकत हे कोइली हर डारा-डारा म  नेवता देवत हावै पारा-पारा म  नहावै धरती चंदैनी धारा म  धीरे धीरे मुसकावै अकास रे  मन धरती के झुमरत हे आज रे सरसों फूल लुगरा म हरियर हे अंचरा  जूरा गुंथाये हे मोंगरा के गजरा  लाली सेंदूर असन परसा के फूल  जगमगावत हे दुलहिन के मांग रे  मन धरती के झुमरत हे आज रे हांसत हे खोखमा करनफूल बनके  पंखुरी…

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तोर दुआरी

सुरता के दियना, बारेच रहिबे,रस्ता जोहत तैं ढाढेंच रहिबे।रइही घपटे अंधियारी के रात,निरखत आहूं तभो तोर दुआरी। मैं बनके हिमगिरी,तैं पर्वत रानी,मौसम मंसूरी बिताबो जिनगानी।कुलकत करबो अतंस के हम बात,निरखत आहूं तभो तोर दुआरी। मैं करिया लोहा कसमुरचावत हावौं,तैं पारस आके तोर लंग मैं छुआजाहौं।सोनहा बनते मोर,बदल जाही जात,निरखत आहूं तभो तोर दुआरी। आये मया बादर छाये घटा घन घोर हें,जुड़हा पुरवइया संग नाचत मन मोर हे।सावन भादो कस हिरदे हरियात,निरखत आहूं तभो तोर दुआरी। मनोहर दास मानिकपुरी

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बिहान होगे रे

बैरी-बैरी मन मितान होगे रे हमर देश म बिहान होगे रे तीन रंग के धजा तिरंगा धरे हे भारत मइया केसरिया हर त्याग सिखोथे सादासत्य बोलइया हरियर खेत के निसान होगे रे। हमर देश म बिहान होगे रे बीच म चरखा गांधी बबा के गोठ ल सुरता करथे सत्य अहिंसा के रद्दा छोड़े ले गोड़ म कांटा गड़थे इही बात के गियान होगे रे। हमर देश म बिहान होगे रे भूमिहीन भाई मन बन गिन अब भुइंया के स्वामी कांध म कांध ल जोर के भैया करथे खेती किसानी अब…

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छत्तीसगढ़िया

छत्तीसगढ के रहइया,कहिथें छत्तीसगढ़िया, मोर नीक मीठ बोली, जनम के मैं सिधवा। छत्तीसगढ के रहइया,कहिथें छत्तीसगढ़िया।  कोर कपट ह का चीज ये,नइ जानौ संगी, चाहे मिलै धोखाबाज, चाहे लंद फंदी। गंगा कस पबरित हे, मन ह मोर भइया, पीठ पीछू गारी देवैं,या कोनो लड़वइया। एक बचन, एक बोली बात के रखइया, छत्तीसगढ़ के रहइया, कहिथें छत्तीसगढ़िया।  देख के आने के पीरा, सोग लगथे मोला, जना जाथे ये हर जइसे झांझ झोला। फूल ले कोवर संगी, मोर करेजा हावै, मुरझाथे जल्दी, अति ह न सहावै। जहर महुरा कस एला, हंस हंस…

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लोरिकायन – लाईट एण्ड साउंड (जुगुर-जागर रपट) : संजीव तिवारी

27 सितम्बसर के दिन छत्तीसगढ के लोक दरसन ला जगर-मगर चमकावत क्षितिज रंग सिबिर के लाईट एण्ड साउंड के जोरदरहा परसतुती ‘लोरिकायन’ हा दुरूग मा जब होईस त बईगा पारा के मिनी स्टेडियम म छत्तीसगढ के मनखे मन के खलक उजर गे, घमघम ले माई पिल्ला सकला गे अउ हमर लोक गाथा – लोरिक चंदा के मंच परसतुति ‘लोरिकायन’ मा अपन तइहा, गांव-गंवई, अपन महर-महर करत लोकगीत के परमपरा ला भव्य रूप मा आखीं के आघू पा के गदगद होगे । छत्तीसगढ मा लोकगाथा के परमपरा गजब जुन्नां आय, अहीर…

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छत्‍तीसगढी कुण्‍डली (कबिता) : कोदूराम दलित

छत्‍तीसगढ पैदा करय, अडबड चांउर दारहवय लोग मन इंहा के, सिधवा अउ उदारसिशवा अउ उदार, हवैं दिन रात कमाथेंदे दूसर ला भात, अपन मन बासी खाथेंठगथैं ये बपुरा मन ला, बंचकमन अडबडपिछडे हावय हमर, इही कारन छत्‍तीसगढ । ढोंगी मन माला जपैं, लम्‍मा तिलक लगायहरिजन ला छूवै नहीं, चिंगरी मछरी खायचिंगरी मछरी खाय, दलित मन ला दुतकारैकुकुर बिलई ला चूमय, पावै पुचकारैंछोंड छांड के गांधी के, सुघर रस्‍ता लाभेदभाव पनपाय, जपै ढोंगी मन माला । कोदूराम दलित

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