गनपत अउ धनपत दुनो झन रेडियो सुनत बइठे राहंय । रेडियो हर नीक-नीक देसभक्ति के गीत गावत राहय अउ बोलत राहय कि हमर आजादी साठ बरीस के होगे । तब गनपत हर धनपत ल पूछथे कि- रेडिया हर अजादी ल साठ बरीस के होगे कथे फेर हम तो आज ले ओखर दरसन नइ करे हावन । कइसना होथे ये आजादी हर ? ये अजादी के बिसय मं तैं का जानथस कुछु बतातेस ? तब धनपत बोलथे- पहिली हम अंगरेज के गुलाम रेहेन । आज अंगरेज मन ल हमर देश ले…
Read MoreMonth: October 2008
भूख (कबिता) : डॉ. राजेन्द्र सोनी
बुधारूकठल कठल के रोथेमनटोरा ओखरचूमा लेथेचूमा ह रोटी नोहेमनटोरा हा सोंचथेमयबुधारू खातिररोटी बन जातेंव । डॉ.राजेन्द्र सोनी चित्र http://feedingavillage.org से साभार
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बुधारूकठल कठल के रोथेमनटोरा ओखरचूमा लेथेचूमा ह रोटी नोहेमनटोरा हा सोंचथेमयबुधारू खातिररोटी बन जातेंव । डॉ.राजेन्द्र सोनी चित्र http://feedingavillage.org से साभार
Read Moreदू आखर…. : (सम्पादकीय) बुधराम यादव जी
साहित्य कउनो भाखा , कउनो बोली अउ कउनो आखर मा लिखे जाये . जब ओला समाज के “दरपन” कहे जाथे तब सिरिफ ओकर चेहरा देखाए भर बर नोहय , समाज के रंग रूप ल सँवारे के, कुछ सुधारें के, सोर अउ संदेस घलव साहित्य ले मिले चाही . साहित्य ला अबड़ जतन ले सकेले अउ सहेजे गियान के खजाना घलव कथें . समे के पारखी छलनी मा एकर छनावब हा तभो जरुरी च हो जाथे . छनाये के बाद बांचे-खोंचे सार जिनिस हा देस अउ दुनिया के आगू मा समे…
Read Moreकल 2 अक्टूबर अहिंसा के पुजारी के पुण्यस्मरण के साथ ‘गुरतुर गोठ’ का प्रवेशांक
मेकराजाला म छत्तीसगढी भाखा के हमर ये पतरा म कुंआर महीना के अंक म हम आपमन बर लाए हन छंटुआ, कबिता, कहिनी, बियंग अउ बेरा-बेरा के बात । हम काली बडे फजर ले हमर संपादक सुकवि बुधराम यादव जी के दू आखर ला परसतुत करबो तेखर बाद ले सरलग येमा एक दिन म दू ठन रचना दस दिन ले परकासित होवत रहिही । आघू धरम के महीना, कातिक महीना म हम थोरकिन अउ जादा रचना के संग आपमन के आघू आबोन । हमर गुरतुर गोठ बर अब धीरे धीरे रचना…
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मेकराजाला म छत्तीसगढी भाखा के हमर ये पतरा म कुंआर महीना के अंक म हम आपमन बर लाए हन छंटुआ, कबिता, कहिनी, बियंग अउ बेरा-बेरा के बात । हम काली बडे फजर ले हमर संपादक सुकवि बुधराम यादव जी के दू आखर ला परसतुत करबो तेखर बाद ले सरलग येमा एक दिन म दू ठन रचना दस दिन ले परकासित होवत रहिही । आघू धरम के महीना, कातिक महीना म हम थोरकिन अउ जादा रचना के संग आपमन के आघू आबोन । हमर गुरतुर गोठ बर अब धीरे धीरे रचना…
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