नरेन्‍द्र वर्मा के हाईकू

टूटगे आजमरजादा के डोरीलाज के होरी । पईसा सारनता-गोता ह घलोहोगे बेपार । मन म मयासिरावत हे, पैसाहमावत हे । बढती देखऑंखी पँडरियागेमया उडा गे । करथे तेनमरथे, कोढियेचमन फरथे । पैसा के खेलईमानदार मनपेल-ढपेल । परबुधियाबनके झन ठगाठेंगवा चटा । परगे पेटम फोरा, मुसुवा हनिकालै कोरा । पेट के सेतीशहर जाथे, उहेंपेट कटाथे । मया के गीतमन गुदगुदाथेफागुन आथे । नरेन्‍द्र वर्मासुभाष वार्ड, भाटापारा07726 – 222461

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छत्तीसगढी साहित्य के सिरजन : लोकाक्षर 42

लोकाक्षर अंक 42 मिलीस । संपादकीय पढ के मन म भरोसा होइस कि छत्तीसगढी साहित्य के संरक्षण अउ संर्वधन बर लोकाक्षर परिवार के कतका सुघ्घर बिचार हे । पाछू कई बरिस ले ये पतरिका हा छत्तीसगढी साहित्य के चंदा सुरूज कस चमकत हे । छत्तीसगढी साहित्य के परिमार्जन बर सोंच मोला इही पतरिका म नजर आथे अउ वर्तमान लिखईया मन ला गुने-बिचारे के संदेसा घलव इंहें दिखथे । अभी के लिखई पढई छपई ला देख के संपादक महोदय के चिंता करई जायज नजर आथे, हम सब झन ला अपन भाखा…

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हाथी बुले गांव – गांव, जेखर हाथी तेखर नाव

नाव कमाय के मन, नाव चलाय के संऊख अउ नाव छपाय के भूख सबो झन ल रथे । ये भूख हर कउनो ल कम कउनो ल जादा हो सकथे, फेर रथे जरूर । एक ठन निरगुनिया गीत सुने बर मिलथे – नाम अमर कर ले न संगी का राखे हे तन मं । कतकोन झन नाम अमर करे के चक्कर मं नाम नहि ते बदनाम कहिके गलत-सलत काम घला कर डारथें । अइसन मन पटंतर घला दें डारथे कि राम के नाव हावय तब रावन के घला नाव हावय ।…

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नेता पुरान

कोकडा कस देह उज्‍जर, करिया हे मन ।आनी बानी के बाना, धरय छन-छन ।। घेरी बेरी बदलय, टेटका कस रंग ।कोनो नई जांनय इंखर ठंग ।। हाथ लमाए हस, छुए बर अकास ।अंतस म छल-कपट सुवारथ सत्‍यानास ।। जनता के सुख दुख ले इनला का लेना ।अपन मतलब के छापत हे छेना ।। मेंछा ल अंटियावत हे, बांधे हे फेंटा ।देस के बारी ल चरत हे नेता ।। आनंद तिवारी ‘पौराणिक’  महासमुंद

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घठौंदा के पथरा

सब झन कहिन्थे मैं पथरा के बने हौं-  करेज्जा घलाय पथरा साहीं हवय…..मैं का कहंव ? रानी के कुटकी मालिन कभू तलाव खनाय रहिस, नानचुक आमा के अमरईया, बर पीपर के रुख ले पार मा रसदा रेंगैया बर, असनांद बर आये मनखे बर-घन छईन्हा ! खेत ले लहुटत , कांदी के बोझा मूड मा धरे, खांध मा नांगर, कभू कोपर लेके आवत, छाँव मा सुरतावत जब कमिया, कमेलिन. किसान थिरान्थें, ता मोला थोरकुन बने लागथे. थोरकुन पसीना सुखा के पटकू पहिर के जब कमिया घठौंदा मा बैठ के तलाव के…

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मोर मातृभाषा छत्तीसगढी हे : पालेश्‍वर शर्मा

छत्तीगसगढी मोर मातृभाषा आय । मोला अपन मातृभाषा उपर गर्व हे । मैं ये भाषा ल अपन महतारी के दूध संग पिये अउ पचाय हौं । मोर कान म जउन पहली सब्द परिस वो छत्तीहसगढी भाषा के रहिस । जब ले मोर महतारी जीयत रहिस हे तब ले मैं वोखर मुंह ले येही भाषा ल सुनेंव अउ गुनेंव । ये भाषा ल मोर पुरखा मन सैकडन बरिस ले बोलत आवत रहिन हें । मोला अपन पुरखा मन उपर गर्व हे, काबर के वोहू मन छत्‍तीसगढी भाषा ल गर्व के साथ…

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मोर मातृभाषा छत्तीसगढी हे : पालेश्‍वर शर्मा

छत्तीगसगढी मोर मातृभाषा आय । मोला अपन मातृभाषा उपर गर्व हे । मैं ये भाषा ल अपन महतारी के दूध संग पिये अउ पचाय हौं । मोर कान म जउन पहली सब्द परिस वो छत्तीहसगढी भाषा के रहिस । जब ले मोर महतारी जीयत रहिस हे तब ले मैं वोखर मुंह ले येही भाषा ल सुनेंव अउ गुनेंव । ये भाषा ल मोर पुरखा मन सैकडन बरिस ले बोलत आवत रहिन हें । मोला अपन पुरखा मन उपर गर्व हे, काबर के वोहू मन छत्‍तीसगढी भाषा ल गर्व के साथ…

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हाईकू

मया के डारौथरहा, होही मानभरपूरहा । मया हावयउपरछवा, मनकरिया तवा । उँच नीच केडबरा सब पाटौमया ला बॉंटौ । कोलिहा तकोलहुट जाथे शेरबेरा के फेर । कोलिहा हुऑंकौंआ कॉंव, मनखेह, खॉंव-खॉंव । नरेन्‍द्र वर्मा सुभाष वार्ड, भाटापारा07726 – 222461

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दू आखर …..

……………………….ये दे दू नवम्बर २००८ के “गुरतुर गोठ” ला मेकराजाला में अरझे ठाउका एक महीना पूर गय. सत अउ अहिंसा के संसार मे आज अलख जगाये के जबर जरुरत हवय. काबर के चारो कती हलाहल होथे. कहे तुलसी के दोहा के ..” तुलसी मीठे वचन ते सुख उपजत चहुँ और ” .. गजब सारथक हवय. बैर भाव, इरसा, जलन, डाह जमो के अगिन जुडवाय बर जनव जुड पानी कस काम करथे मीठ बोली हा. “गुरतुर गोठ” के जनम अउ उदगार बस ये ही भाव ला हिरदे में धरके होये हवय…

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