चंदन हे मोर देस के माटी

चंदन हे मोर देस के माटी, पावन मोर गांव हे ।बाजय जिंहा धरम के घंटी, तेखर छत्‍तीसगढ नाव हे ।। होत बिहिनिया खेत जाये, नागर घर के नगरिहा ।भूमर-भूमर बनिहारिन गावैं, करमा सुआ ददरिया ।परत जिंहा हे सुरूज देव के, चकमिक पहिली पांव हे ।। राम असन मर्यादा वाले, कृष्‍णा करम कबीर हे ।गांधी सुभास आजाद भगतसिंग, आजादी के रनधीर हे ।गंगा जमुना के निरमल पानी में, ममता मया के छांव हे ।। अनधन-गियान गीत उपजइया, माटी कोयला पथरा ।साधु संत मपसी के धरती, सुख शांति अंचरा ।प्रेम सांति भाईचारा,…

Read More

मंगत रविन्‍द्र के कहिनी ‘दुनो फारी घुनहा’

।। जीवन के सफर में जरूरत होती है एक साथी की।। ।।जैसे जलने के लिये दीप को जरूरत होती है एक बाती की।। भीख देवा ओ दाई मन…………। ओरख डारिस टेही ल सूरदास के…… जा बेटी एक मूठा चाउर दे दे, अंधवा-कनवा आय। महिना पुरे ए….. गांव म सूरदास, मांगे ल आथे। सियान ले नानकन लइका तलक सूरदास ल जानथे। अब्बड़ सीधवा ए… मन लागती तेकर इंहा मांग के खा लेय। मांगे म का के लाज? चोरी करे म डर हे…। कभू-कभू तो मुंहटा म लाठी ल भूंइया म ठेंसत…

Read More

मंगत रविन्‍द्र के कहिनी ‘दुनो फारी घुनहा’

।। जीवन के सफर में जरूरत होती है एक साथी की।। ।।जैसे जलने के लिये दीप को जरूरत होती है एक बाती की।। भीख देवा ओ दाई मन…………। ओरख डारिस टेही ल सूरदास के…… जा बेटी एक मूठा चाउर दे दे, अंधवा-कनवा आय। महिना पुरे ए….. गांव म सूरदास, मांगे ल आथे। सियान ले नानकन लइका तलक सूरदास ल जानथे। अब्बड़ सीधवा ए… मन लागती तेकर इंहा मांग के खा लेय। मांगे म का के लाज? चोरी करे म डर हे…। कभू-कभू तो मुंहटा म लाठी ल भूंइया म ठेंसत…

Read More

किसान

धन धन रे मोर किसान, धन धन रे मोर किसान ।मैं तो तोला जांनेव तैं अस, भुंइया के भगवान ।। तीन हाथ के पटकू पहिरे, मूड म बांधे फरियाठंड गरम चउमास कटिस तोर, काया परगे करियाअन्‍न कमाये बर नई चीन्‍हस, मंझन, सांझ, बिहान । तरिया तिर तोर गांव बसे हे, बुडती बाजू बंजरचारो खूंट मां खेत खार तोर, रहिथस ओखर अंदररहे गुजारा तोर पसू के खिरका अउ दइहान । बडे बिहनिया बासी खाथस, फेर उचाथस नांगरठाढ बेरा ले खेत जोतथस, मर मर टोरथस जांगरतब रिगबिग ले अन्‍न उपजाथस, कहॉं ले…

Read More

मंगत रविन्‍द्र के कहिनी ‘अगोरा’

बोर्रा….. अपन पुरता पोट्ठ हे। कई बच्छर के जून्ना खावत हे। थुहा अउ पपरेल के बारी भीतर चर-चर ठन बिही के पेड़…..गेदुर तलक ल चाटन नई देय। नन्दू के दाई मदनिया हर खाये- पीये के सुध नई राखय… उवत ले बुड़त कमावत रथे। नन्दू हर दाई ल डराय नहीं…। ददा बोर्रा हर आंखी गुड़ेरथे तभे नन्दू हर थोरथर भय खाथे। लइका के मया…सात धर के गोरस पियाये हे। दाई ए हर जानही मया पीरा ल, के कतका दु:ख-सुख म लइका ल अवतारे रथें। ढपकत बेरा ले कमा के फिरत मदनिया…

Read More

मंगत रविन्‍द्र के कहिनी ‘अगोरा’

बोर्रा….. अपन पुरता पोट्ठ हे। कई बच्छर के जून्ना खावत हे। थुहा अउ पपरेल के बारी भीतर चर-चर ठन बिही के पेड़…..गेदुर तलक ल चाटन नई देय। नन्दू के दाई मदनिया हर खाये- पीये के सुध नई राखय… उवत ले बुड़त कमावत रथे। नन्दू हर दाई ल डराय नहीं…। ददा बोर्रा हर आंखी गुड़ेरथे तभे नन्दू हर थोरथर भय खाथे। लइका के मया…सात धर के गोरस पियाये हे। दाई ए हर जानही मया पीरा ल, के कतका दु:ख-सुख म लइका ल अवतारे रथें। ढपकत बेरा ले कमा के फिरत मदनिया…

Read More

हायकू

कुकुर कोरा म घूमत हे, टूरा ह रोवत हे । किरकेट के चढे हसवै बुखार ददा बेहाल । दोरदीर ले भेंड कस झपाथे बफे म खाथे । ‘कालोनी’ रोग गॉंव म हबरागे जी दरर गे । माई-मूडी ह बनगे कहूं आन मरे बिहान । मनगरजी, सियानी, नई बॉंचै खपरा छान्‍ही । गोटियाय ल जेन हर जानथे तेने हर जानथे तेने तानथे । हक के गोठ जेनेच गोठियाथे बनेच खाथे । सही बोलबे तब परही डंडा मार लबारी । पाछू रहे के टकर, अगुवाथे तेला पकड । नरेन्‍द्र वर्मासुभाष वार्ड, भाटापारा07726…

Read More

छत्तीसगढ़ी कहिनी किताब : गुलाब लच्‍छी

संगी हम आपके खातिर ‘गुरतुर गोठ’ म छत्तीसगढ के ख्यात साहित्यकार, कहानीकार श्री मंगत रविन्द्र जी के अवईया दिनन म प्रकासित होवईया कहानी संग्रह ‘गुलाब लच्छी’ के सरलग प्रकाशन करे के सोंचत हावन । इही उदीम म आज ये कहानी संग्रह के पहिली प्रस्तावना ‘दू आखर’ प्रकाशित करत हन तेखर बाद ले सरलग कुछ दिन के आड देवत ये संग्रह म प्रकाशित 18 कहनी ला प्रकासित करबोन । कहानीकार- मंगत रवीन्द्र ।। दु आखर ।। खेती पांती म मेड़पार, कोला बारी म बिंयारा, नाचा कुदा म तान तपट्टा, घर दुवार…

Read More

छत्तीसगढ़ी कहिनी किताब : गुलाब लच्‍छी

संगी हम आपके खातिर ‘गुरतुर गोठ’ म छत्तीसगढ के ख्यात साहित्यकार, कहानीकार श्री मंगत रविन्द्र जी के अवईया दिनन म प्रकासित होवईया कहानी संग्रह ‘गुलाब लच्छी’ के सरलग प्रकाशन करे के सोंचत हावन । इही उदीम म आज ये कहानी संग्रह के पहिली प्रस्तावना ‘दू आखर’ प्रकाशित करत हन तेखर बाद ले सरलग कुछ दिन के आड देवत ये संग्रह म प्रकाशित 18 कहनी ला प्रकासित करबोन । कहानीकार- मंगत रवीन्द्र ।। दु आखर ।। खेती पांती म मेड़पार, कोला बारी म बिंयारा, नाचा कुदा म तान तपट्टा, घर दुवार…

Read More

फुगडी गीत

गोबर दे बछरू गोबर दे  चारो खुंट ला लीपन दे  चारो देरनिया ल बइठन दे  अपन खाथे गूदा गूदा  मोला देथे बीजा बीजा  ए बीजा ला का करहूं  रहि जांहूं तीजा  तीजा के बिहान भाय  सरी सरी लुगरा  हेर दे भउजी कपाट के खीला  केंव केंव करय मंजूर के पीला एक गोड म लाल भाजी  एक गोड म खजूर  कतेक ला मांनव मैं  देवर ससुर  आले आले डलिया  राजा घर के पुतरो  खेलन दे फुगडी  फुगडी रे फुआ फू … । भरवा काडी के पटा बना ले  सिकुन काडी के…

Read More