अपन हाथ अउ जगन्नाथ

मुंड़ मे छैइहा तन भर बस्तर भूखन करंय बियारी उजियारी के समुन्हें भागे घपटे सब अंधियारी सबके होवय देवारी अइसन सबके होवय देवारी …. **************************** अपन हाथ अउ जगन्नाथ काबर तभो ले रोथन अपने घर मे हमन जवंरिहा बाराबाट के होथन ***** सगरी घर के मालिक हो गयं परछी के रहवइया जोतनहा बैला कस हो गयं गोल्लर कस दहकइया ओतिहा होके फुरसतहा कस फुंसर फुंसर के सोथन.. अपने घर मे आज जवंरिहा बाराघाट के होथन हमर ओरिया घाम घलईया महल सरग में तानय हमर देहे पेज पियईया हलवा पूडी छानय…

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गोठ गुने के गोठियांथव

गोठ गुने के गोठियांथव थोरुक सुन लव संगवारी न कउनो निंदा फजीहत न कउनो के चारी निरबंसी के धन मत लेवव सतबंसीन के लाज गरीब दूबर के आह लेवव झन कुल मे गिरथे गाज सोरह आना सच जानव ये नोहय निचट लबारी न कउनो निंदा फजीहत न……… माया पिरीत में सबला बान्धय पाबन जमो तिहार नता गोता में भेद करांवय लंदर फंदर बेवहार समुनहे गुरतुर पीठ पाछू में मारे जबर कटारी न कउनो निंदा फजीहत न……… गरज परे के गुरान्वट अउ गिरे परे घरजाइन दुखला दोहरा करथे जइसे बिदा बेरा…

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दौना (कहिनी) : मंगत रविन्‍द्र

मन ले नहीं दौना, पाँव ले खोरी हे |मया के बाँधे, बज्जर डोरी हे || अंधवा ला आंखी नहीं ता लाठी दिये जा सकथे. भैरा ला चिल्ला के त कोंदा ल इसारा म कहे जाथे. खोरवा लंगड़ा ल हिम्मत ले बल दिये जाथे . दौना बिचारी जनमती खोरी ये. आंखी कान तो सुरुजमुखी ये. आंखी के ओरमे करिया घटा कस चुंदी, रिगबिग ले चाँदी कस उज्जर उज्जर दाँत , सुकवा कस नाकबेंसरी, ढैंस कांदा कस कोंवर ठाठ म पिंयर सारी अरझे रहै पर बपुरी दौना एक गोड़ ले लचारी हे…

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दौना (कहिनी) : मंगत रविन्‍द्र

मन ले नहीं दौना, पाँव ले खोरी हे |मया के बाँधे, बज्जर डोरी हे || अंधवा ला आंखी नहीं ता लाठी दिये जा सकथे. भैरा ला चिल्ला के त कोंदा ल इसारा म कहे जाथे. खोरवा लंगड़ा ल हिम्मत ले बल दिये जाथे . दौना बिचारी जनमती खोरी ये. आंखी कान तो सुरुजमुखी ये. आंखी के ओरमे करिया घटा कस चुंदी, रिगबिग ले चाँदी कस उज्जर उज्जर दाँत , सुकवा कस नाकबेंसरी, ढैंस कांदा कस कोंवर ठाठ म पिंयर सारी अरझे रहै पर बपुरी दौना एक गोड़ ले लचारी हे…

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अब बिहाव कथे, लगा के देख

केहे जाथे कि जन्म बिबाह मरन गति सोई, जो विधि-लिखि तहां तस होई । जनम अउ मरन कब, कहां अउ कइसे होही ? भगवान हर पहिली ले तय कर दे रथे । वइसने ढ़ंग के बिहाव कब, कहां अउ काखर संग होही ए बात के संजोग भगवान हर पहिली ले मढ़ा दे रथे । फेर अइसन सोच के घर मं बइठे रेहे ले काम नइ चलय । दाने – दाने पे लिखा है खाने वाले का नाम कहिके चुप बइठे रहिबे तब दाना तोर पेट मं नइ जावय । नसीब…

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इही त आये गा छ्त्तीसगढ सरकार

लबरा होगे राजा अ‍उ खबडा होगे हे मंत्रीददा मन ले बाच पायेन त टीप देथे संतरी पांव के पथरा ल आ मूड मे कचारइही त आये गा छ्त्तीसगढ सरकार ॥ बनीहारी छोड अ‍उ नेता के भाषण सुनबिना जीव के गोठ ला दिनभर गुन गुडी मे बईठ अ‍उ रोज माखुर फ़ांकचुनई के दारू पी,गोल्लर कस मात चरन्नी बुता अ‍उ बरन्नी परचारइही त आये गा छ्त्तीसगढ सरकार ॥ घीसलत जिंनगी अ‍उ मुँह भर खासीबटकी मा न‍इ हे खाये बर बासी लबरा हे सबो झन, झन हो बिसवाशीपंजा हो कमल हो या हो…

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बारहमासी तिहार

आज मोर अंगना म छागे उजियारी चमकत जगमगावत आगे देवारी। चैत मानेन रामनवमी, बैसाख अक्ती ल। पुतरा-पुतरी बिहा करेन, चढ़ायेन तेल हरदी ल। बिहा गाये बर आगिन संगवारी। आज मोर अंगना म छागे उजियारी ………… जेठ रहेन भीमसेनी निर्जला के उपास ल। का बताओं भैया मैं हर तिखुर के मिठास ल। लगिगे अशाढ़ रे भाई बादर गरजगे न। मोतिन कस बूँद भैया पानी हर बरसगे न। लगिस सावन धरती म छागे हरियाली।  आज मोर अंगना म छागे उजियारी ………… राखी पुन्नी आईस भाई बहिनी के पावन गा। भादो आईस तीजा लेके…

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बरसै अंगरा जरै भोंभरा

चढ़के सरग निसेनी सुरूज के मति छरियागे हाय रे रद्दा रेंगोइया के पांव घलो ललियागे। बढ़े हावे मंझनिया संकलाए हे गरूआ अमरैया तरी हर-हर डोलत हे पीयर धुंकतहे रे बैहर घेरी-बेरी बुढ़गा ठाड़े हे बमरी पाना मन सबो मुरझागे हाय रे रद्दा रेंगोइया के पांव घलो ललियागे। भरे तरिया अंटागे रे कइसे थिरागे बोहत नरवा बिन पानी के चटका बरत हे मनखे मन के तरूआ चटका बरगे मनखे मन के तरूआ। नदिया घाट घलो जाके मंझधार म संकलागे। हाय रे रद्दा रेंगोइया के पांव घलो ललियागे। घर के रांपा कुदारी…

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जरत रइथौं (गजल)

रइहीं तरिया म मनखे, पानी आबे,अमुआ डारी म बइठे जोहत रइहौं। घर म सुरता भुलाये, बइठे रहिबे,कोला बारी म मैंहा, ताकत रइहौं। बिना चिंता फिकर तैं, सोये रहिबे,बनके पहरी मैं, पहरा देवत रइहौं। तैंहा बनके बदरिया, बरसत रहिबे,मैं पियासे,पानी बर, तरसत रइहौं। मोर आघू म दूसर लंग हंसत रहिबे,घूंट पी पी के मैंहा रोवत रइहौं। दिया बाती बन तैंहा बरत रहिबे,मैंहा बन के पतंगा जरत रइहौं। मनोहर दास मानिकपुरी

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गंवइहा

मैं रइथौं गंवई गांव मं मोर नाव हे गंवइहा, बासी बोरे नून चटनी पसिया के पियइया। जोरे बइला हाथ तुतारी खांध म धरे नागर, मुंड़ म बोहे बिजहा चलै हमर दौना मांजर। पानी कस पसीना चूहै जूझै संग म जांगर, पूंजी आय कमाई हमर नौ मन के आगर। चार तेदूँ मउहा कोदइ दर्रा के खवइया, मैं रइथौं गंवई गांव मं मोर नाव हे गंवइहा। सावन भादो महिना संगी चले ल पुरवाई, मगन होके धान झूमैं झूला के झूलाई । झिमिर झिमिर पानी के संग निंदाई लगाई, मन ल मोहे खेती…

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