धर ले कुदारी गा किसान : सोनहा बिहान के गीत

धर ले रे कुदारी गा किसान आज डिपरा ला रखन के डबरा पाट देबो रे । ऊंच–नीच के भेद ला मिटाएच्च बर परही चलौ चली बड़े बड़े ओदराबोन खरही झुरमिल गरीबहा मन, संगे मां हो के मगन करपा के भारा–भारा बाँट लेबो रे । चल गा पंड़ित, चल गा साहू, चल गा दिल्लीवार चल गा दाऊ, चलौ ठाकुर, चल न गा कुम्हार हरिजन मन घलो चलौ दाई – दीदी मन निकलौ भेदभाव गड़िया के पाट देबो रे । जाँगर पेरइया हम हवन गा किसान भोम्हरा अऊ भादों के हवन गा…

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छत्तीसगढ़ी साहित्य सम्मेलन 2009

पाछू 23 फरवरी 2009 महाशिवरात्रि के दिन कवर्धा (कबीरधाम) में प्रांतीय छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति रायपुर अउ जिला छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति कवर्धा डहर ले तेरहवां छत्तीसगढ़ी साहित्य सम्मेलन के आयोजन कन्या उमा शाला में करे गिस। ये सम्मेलन के माई पहुना छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के अध्यक्ष श्यामलाल चतुर्वेदी रहिन। सम्मेलन के सभापति के रूप मा नगर पालिका कवर्धा के अध्यक्ष संतोष गुप्ता जी पधारे रहिन। ”छत्तीसगढ़ी साहित्य सम्मेलन 2009” के उद्धाटन माई पहुना श्यामलाल चतुर्वेदी जी हा माता सरस्वती के चित्र मा पूजा, अरचना करके करिस। सम्मेलन के मुख्य विषय रहिस…

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पईसा म पहिचान हे

 रामदास ह समय के संगे संग रेंगे के सलाह सब झन ल देवत रथे। ”जइसे के रंग, तइसे के संगत” अभी के समय मं पईसा के बोलबाला हावय। एक समय रिहिस जब लाखों के काम एक भाखा मं हो जावय। एक जमाना येहू रिहिस कि गांव के नेता हर गली खोर मं परे डरे कागज, सिगरेट के खोखा मं लिख के देवय कि अमुख के मास्टरी बर आर्डर कर दो, अमुख ल पटवारी के नौकरी मं भरती कर दो तहां तुरूते आर्डर मिल जावय। काबर कि ओ बखत के नेता…

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लहरागे छत्तीसगढ़ी के परचम

आखिर लहरागे छत्तीसगढ़ी के परचम। छत्तीसगढ़ी भासा ल राजभासा के रूप म आखिरी मुहर लगाय बर बाकी हे। अऊ विदेस म परचम लहरागे। वाह! वाह! हमार भाग! छत्तीसगढ़ी भासा के भाग खुलगे अऊ एखर बढ़ती बेरा आगे। कोनों नइ रोक सकय एखर उन्नति के दुवार ल। हिन्दी के छोटे बहिनी, अऊ मगही मैथिली के सहोदरी छत्तीसगढ़ी ककरो ले कमती नइये। ए ह सबले जादा मुचमुचही हावय। अमेरिका म भारत के जनपदीय भासा के जानकार मन ल नौकरी म रखे जाही ये समाचार पढ़केसुनके छत्तीसगढ़िया मन फूले नइ समावत हे, काबर…

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आवव बियंग लिखन

छत्‍तीसगढी भाखा म आजकल अडबड काम होवत हे, खंती खनाए खेत म घुरवा के सुघ्‍घर खातू पाये ले धान ले जादा बन कचरा जइसे उबजथे तइसनेहे, लेखक-कबि अउ साहितकार पारा-मुहल्‍ला-गली-खोर म उबज गे हे । बिचारा मन छत्‍तीसगढी साहित्‍य ल सजोर करे के अपन-अपन डहर ले उदीम उजोग करत हें । कतकोन झिन अपन अंगरी कटा के सहीद म नाम लिखाये बर अपन चार-दस पाना के किताब तको छपवावत हें अउ आजोग के अधियकछ नई तो मंत्री-संत्री ला बला के किताब के उछाह-मंगल से बिमोचन करावत हें । कथे नहीं…

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गांव गंवई के चुनई

चुनई के समे आथे अउ चुनई परचार के संगे संग गांव-गांव, गली-गली, घर-घर म चारी-चुगली, इरषा, दोष, झगरा-लड़ई घला आ जथे। बाजा-गाजा, सभा, जुलुस, नाराबाजी के मारे गली-गली ह सइमो-सइमो करत रथे। जिहां चार झन मइनखे एक संग खडे क़भू देखउल नइ देय, उहां मोटर कार, फटफटी, सायकिल सब ओरी ओर लमिया जथे। देवाल-देवाल म उमेदवार मन के नाव लिखाय, जगा-जगा चुनाव चिनहा के छप्पा छपाय, झंडा, बेनर बंधाय, कोनो मेर पाल परदा तनाय, कोनो मेर सभा मंच बने का पूछत हस, अइसे सजे रथे जइसे बर-बिहाव के समें दुलहा-दुलहिन…

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नेताजी ल भकाड़ूराम के चिट्ठी

परम सकलकरमी नेता जी राम-राम अरे! मैं तो फोकटे-फोकट म आप मन ल राम-राम लिख पारेंव। आप मन तो राम ल मानबे नई करव। राम-रावन युद्ध ल घलो नई मानव। तेखरे सेथी येहू ल नई मानव के ‘रामसेतु’ ल राम हर बनवाय रहीस। तुमन तो ये मानथव के रमायेन हर सिरिफ एकठन ‘साहित्य’ आय। कोनों परलोखिया बिधर्मी मन तुम ल अइसने हे बोलीन अऊ तुमन मान गेव नेताजी? खुरसी खातिर न? परदेसिया मन ला खुस करे खातिर, पइसा बनाय खातिर, ये सब खातिर। तब फेर ये जनता के आस्था का…

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आतंकवादी खड़ुवा

पाकिस्तान मा चार झन आतंकवादी मन गोठियात रहंय। पहला- ‘अरे भोकवा गतर के। अभी हिन्दुस्तान म हमला करे बर अफगानिस्तान अऊ पाकिस्तान ले घलो जादा बढ़िया माहौल हावय।’ दूसरा- ‘कइसे?’ तीसरा- ‘हत रे बैजड़हा! तोला कोन हमर भीर मा भरती कर दीस रे? ओतको ला नई जानस? अरे! भारत के नेता मन मा अभी फकत बड़बोलापन हावय। हमर ले लड़े के कूबत नई हे। उन तो आपस मा लड़त हावयं। हम सब आतंकवादी एकजुट हावन, अऊ ओ मन? ओ मन जतेक पारटी, जतके नेता, ओतके गुट, ओतके विचार। हमन बारूद…

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झन-झपा

ओ दिन मैं हा अपन जम्मो देवता-धामी मन ला सुमरत-सुमरत, कांपत-कुपांत फटफटी ला चलात जात रहेंव। कइसे नई कांपिहौं? आजकाल सड़क म जऊन किसीम ले मोटर-गाड़ी चलत हावय, ओला देख-देख के पलई कांपे लागथे। आज कोन जनी, कोन दिन, कोन करा, कतका बेरा, रोडे ऊपर सरगबासी हो जाबो तेकर कोनो ठिकाना नई हे। आज लोगन मन करा, मोटर बिसाय के ताकत तो हो गे हे। फेर ओला ठाढ़ करे के ठऊर नई हे, ऊंखर मेर। त ओ मन सरकारी रोड अऊ गली मन ला अपन ‘बूढ़ी दाई’ के मिल्कियत समझ…

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नंदावत पुतरा-पुतरी – सुधा वर्मा

अक्ती (अक्षय तृतीया) बैसाख महिना के तीज ल कहिथें, तीज अंजोरी पाख के होथे। ये दिन ल अब्बड़ पवित्र माने गे हे। अक्षय तृतीय के कहानी सुनव: एक राजा के सन्तान नई रहिस हे। रानी बहुत उदास राहय। रानी ह कखरो घर भी बिहाव होवय त एक झांपी समान भेजय। एक दिन के भात रानी डाहर ले राहय। रानी ह रंग-रंग के पुतरा-पुतरी रखे राहय, अपन समय ल उही म बितावय। रंग-रंग के कपड़ा जेवर पहिरावय। एक दिन ओखर मन म विचार आथे के मैं ह अपन पुतरी के बिहाव…

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