कहिनी म नारी पात्र के सीमा रेखा – सुधा वर्मा

छत्तीसगढ़ी कहानी म नारी के रूप काय होना चाही। कहानी के नायिका, छत्तीसगढ़ के नारी के आदर्श होना चाही या प्रतिनिधि होना चाही? ऐखर मतलब होईस के घर, परिवार बर बलि चढ़गे या फेर शराबबंदी करवा के एक नेता के रूप म नाव कमा लीस। जेन नारी ह अपन गांव म सबके मदद करीस, शराबी पति के धोय-धोय मार खईस, बेटा के गारी खईस अउ दुनिया के आगू म एक आदर्श पत्नी या नारी बनके नाव कमइस। ये ह तो पहिली प्रश्न के उत्तर होगे। दूसर बात हे यथार्थ होना…

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वर्तमान ह सच आय – सुधा वर्मा

आज के समय म वर्तमान म जियइया मनखे कमती देखे बर मिलथे, सब बड़े-बड़े सपना ले के चलत हावंय अउ वो सपना म अपन वर्तमान ल खतम करत हावंय। कई झन लइका मन डॉक्टर इन्जिनियर बने के चक्कर म बारवीं के रिजल्ट ल खराब कर देथें अउ ड्राप ले के दू-तीन साल तक परीक्छा देतेच्च रहिथें, कखरो चयन हो जथे, कतको झन रुक जथें। सपना ह सपनाच्च रहि जथे। बहुत दूरिहा के सोचबेत अइसने होथे। मनखे ल अपन वर्तमान ल देखना चाही, उही म जीना चाही। कहिथे न ”सरग देख…

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गुरतुर गोठ

आज येदे चार महीना पुर गे हमर गुरतुर गोठ म गोठियावत । हम हर हाल म येला सरलग राखे के कोसिस करबोन । संगी हमर सबले बढे समस्‍या हे रचना मन ला टाईप करे के, हमन अपन काम धाम म अतका बिपतियाये रहिथन कि येखर बर टेम नई निकाल पावन । गुरतुर गोठ के कोनों पाठक यदि हमला रचना मन के टाईपिंग म बिलकुल निस्‍वार्थ सहायता कर सकत होवंय त हमला मेल करंय । थोरे थोर सहजोग ले हमर भाखा के उपस्थिति इंटरनेट म बने रहिही । रचना भेजईया रचनाकार…

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हाय रे मोर मंगरोहन कहिनी – डॉ. सत्यभामा आड़िल

बीस बछर होगे ये बड़े सहर मं रहत, फेर नौकर-चाकर मिले के अतेक परेसानी कभु नई होईस। रईपुर ह रजधानी का बनिस, काम-बूता के कमती नई। भाव बढ़गे काम करईया मन के। घर के काम बर घलो कोनो नई मिलय। कहूं मिलगे एकाध झन, त सिर ऊपर करके, जबान लड़ाके बराबरी मं बात करथें। उड़िया बस्ती अब्बड़ होगे। रईपुर सहर ह उड़ीसा राज ले सीधा-साधा जुड़े हे। सड़क, रेल, जंगल सबो डहार ले उड़िया मनखे मन आथे अऊ जाथें। सीधा जगन्नाथ भगवान करा पहुंच जथें। उड़ीसा ले बेपारी मन अऊ…

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अंधरी के बेटा – विट्ठलराम साहू ‘निश्छल’

एक झन राजा रिहिस। ओ हा अपन राज म बजार लगवाय। ओखर फरमान रिहिस कि जऊन जिनिस हा सांझ के होवत ले नई बेचाही तौन जिनिस ला राजा के खजाना ले पइसा दे राख लेय जाय। एक झन मूरति बनईया करा राक्छसिन के मूरति बांचगे ओला कोन्हों नई लीन। जान-बूझ के माछी कौन खाय? पइसा दे के राक्छसिन ला कोन ले ही? सांझ किन ओ मूरति ल राजा ल लेय बर परगे। राक्छसिन तो राक्छसिन ये। राक्छसिन हा राजा ला कहिथे, ‘मोला पइसा डार के लेय हस, बने बात ए।…

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नान्हें कहिनी गुरुजी के सीख – राघवेन्द्र अग्रवाल

”बेटा तें ह किसानी म झिन पर गा, ऐमा गुजारा नि होवय, कछेरी म बाबू बन जा त रटाटोर पइसा पाबे अउ हमर हालत सुधर जाही। ओकर बाबू कथे-ददा! ते किसानी ल अपन ढंग ले करत रहे, में ह तो किसानीच्च करिहा। ते देखबे तो कइसे हमर दसा ह नि सुधरही तेला। ए क दिन गुरूजी ह अपन कक्षा के लइकामन सोज पूछिस-”तुमन पढ़ के काय बनना चाहत हो? लइकामन कथें- गुरूजी में डाक्टर बनिहां। गुरूजी में मिस्त्री बनिहां। एक झिन लइका कथे-”गुरूजी मोर घर म किसानी हे मे ह…

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गुरुबाचा कहिनी – किसान दीवान

एक दिन अपन ल संवासे नी सकिस सुखरू। घातेच किलोली करके भतीजा के बिहा में संघरना जरूरी हे, ओखर दई-बाप नइए, अइसे ओखी करके, छुट्टी मा गिस। कन्हैयालाल मानेजर नंगत सुलहारिस, सेधे के लईक उल्था देईस। जल्दी तरक्की देय के वादा करिस। फेर सुखऊ मानबे नी करिस अउ आज दू हफ्ता होगे। नउकरी खोजत किंजरत हे। नउकरी मिले त झन मिले, बीए डिग्री तो पूरा करनाच हे। दही बरा सपेट के पइसा पटईस अऊ चलिस संगी मन सन मिले बर। रसता म एक झन गुरुजी मिलिस बिसनाथ पटेल। देखतेच बलईस,…

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जोड़ी! नवलखा हार बनवा दे

”मोर चेहरा के उदासी ह परोसी मेंर घलो नइ दोबईस। मोला अतक पन उदास कभू नई देखे रिहीस होही। परोसी ल मैं अपन समसिया ल गोहरायेंव त कहिथे ”अरे, ओखर बर तैं संसो करत हस जी?” पहिली ले काबर नई बतायेस, चल आजे चल न मैं तोला हजार पांच सौ म बढ़िया हार देवा देथंव। देवत रहिबे पईसा ल आगू-पाछू ले। फेर तोर गोसईन मेंर तोला नाटक करे बर परही।” हासिय बियंग बाल हठ तो जगत परसिध हई हे, फेर तिरिया हठ के आगू बड़े-बड़े तीसमारखां मनखे मन पानी भरथें।…

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हमन कहां जात हन – सुधा वर्मा

रामकुमार साहू के कविता संग्रह के भूमिका लिखत रहेंव त ओमा एक लेख ”तईहा के ला बइहा लेगे” ल पढ़त-पढ़त सोचेंव के ये लेख के जम्मों बात ल मैं ह अपन मड़ई म अलग-अलग रूप मा दे डरे हवं। फेर पढे क़े बाद उही सब बात ह दिल दिमाक मा आए ले धर लीस। गर्मी के मजा अउ अवइया बरसात के जोखा एके रहिस हे। अमली के बीजा हेरन, बोईर के मुठिया बनावन। मखना के खोइला करन। अम्मारी, पटवा, चना भाजी के सुक्सा ल बने सुखो के धरन। अब ये…

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पढ़व, समझव अउ करव गियान के गोठ -राघवेन्द्र अग्रवाल

एक बखत के बात ये, संतखय्याम ह अपन एक झन चेला संग घनघोर जंगल के रद्दा ले जात रहिस हे। नमाज पढे क़े बेरा म दूनू गुरू-चेला नमाज पढ़े बर बइठिन तइसने उनला बघवा के गरजना सुने बर मिलिस अउ थोरेकच्च म देखिन के बघवा ह उंकरे डहर आवत हे। चेला ह डर के बारे एकठन रुख म चढ़गे जबके वोकर गुरू खय्याम ह धियान लगा के नमाज ल पढ़त रहय। बघवा वो करा आइस अउ चुपचाप चल दिस। बघवा के जाय बाद चेला ह रुख ले उतरिस अउ नमाज…

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