गद्य साहित्य के कोठी म ‘बगरे गोठ’ के सकेला – पुस्तक समीछा

गढ़वाल के ऊंच-नीच धरती म जन्मे, प्रकृति के बीच म खेलत चन्द्रकला जी जब छत्तीसगढ़ के धरती म बहू बनके आइस। तब इंहा के प्रकृति म अपन मन ल बसा लीस। ‘मोर गोठ’ म लिखे हांवय के छत्तीसगढ़ के संस्कृति म कब घुल मिल गेंव पता नई चलिस। गांव-गांव घूमत ये कहिनी के जनम होवत गीस। ”बगरे गोठ” इही कहिनी के संकलन आय। एखर भूमिका लखनलाल गुप्त 1 जनवरी 1994 म लिखे हावंय। ये संकलन के पहिली कहिनी ह बता देथे के लेखिका ह दू संस्कृति के संगम आय। एक…

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पारसद ल प्रार्थना पत्र

विषय- गरीबी रेखा कारड बचाए बर। सेवा में, सिरीमान बोट-बटोरू पारसद जी! वार्ड-00 गरीब पालिका निगम झोलगापुर। प्रजापालक सादर सनम्र निवेदन हावै कि आपके आसीरवाद से बने फरत-फूलत हों। आशा हे आपो भोग-भोग ले फूल गै होहू। आगे समाचार जानौ के आप जऊन मोर बर गरीबी रेखा कारड बनवाय हावव ओला खतरा हो गेहे। अब तक बने मैं हर अपन उपजाय धान ला एक हजार एक सौ सत्तर रुपिया मा बेंच के, गरीबी रेखा वाले पैंतीस किलो महीना चाऊर, दू रुपिया के हिसाब से बने लेत रहेंव। अउ ओला खा-खा…

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मै मै के चारों डाहर घूमत साहित्यकार – सुधा वर्मा

एक कार्यकरम म कुछ साहित्यकार मन संग भेंट होईस। एक लेखक जेन कवि घलो आय आके पांव छुईस अउ बइठगे। थोरिक बेरा मा कुछु-कुछु गोठियाय के बाद म कहिथे, मैं ह छत्तीसगढ़ के टॉप के बाल साहित्यकार आंव। अभी-अभी थोरिक दिन पहिली एक महिला साहित्यकार फोन कर-कर के कई झन ल कहिस के मैं ह पहिली महिला साहित्यकार आंव जेखर तीन किताब छत्तीसगढ़ी म छपे हावय। मैं ह पहिली महिला उपन्यासकार आंव। एखर पहिली एक शिक्षक साहित्यकार एससीईआरटी म काहत रहय के हाना ऊपर कहिनी मैं ह पहिली लिखे हाववं।…

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गोठ बात : पानी बचावव तिहार मनावव

तैं माई लोगिन होतेस त जानतेस पानी-कांजी भरे म कतका दु:ख अउ सुख लागथे तोला काय लगे हे। भात ल खा के मुंह पोंछत निकल जाबे। मैं हर जानहा कतका दु:ख तेला सत्ररा घांव पानी भर छुही म पोत घर ल फेर रंग म पोत आजकल तो बोरिंग ले पानी घलो नई निकलत हावय। अभी म पानी नई निकलत हे त अभी तो जम्मो दिन बांचे हावय।’ देवरिहा समय एक दिन सोन साय हर बिहनिया हांसत- गोठियात रहीस। ओकर आगू-पाछू कोनो नई रहीस। मैं देवरहीया छुही रंग लाय बर दुकान…

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31 मार्च सुरता : शांति दाई

अपन दाई के सुमिरन कर अपन मन म कतको परसन मन ला सोचत हे। दाई के जाय के पाछू जम्मो परिवार का छितिर-बितर हो जाथे। ओला पोटारे बर अब कोन हे जेन हा ओ मन ला संभालत राहय, अपन मया के अंचरा मा गठिया के रखय, ते हा अब कहां है कोन कोती चले गे, काबर गिस, का फेर लहुट के आही। आज अशोक हा बिन दाई के लइका होगे हे। ओकर संगे संग ओकर जम्मो दू भाई अउ दू बहिनी मन हा घलो बिन दाई के होगे। बड़ दु:ख…

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चरगोड़िया

भूख नई देखय जूठा भात, प्यार (मया) नई देखय जात-कुजात॥ समय-समय के बात, समय हर देही वोला परही लेना कभू दोहनी भर घी मिलही, कभू नई मिलही चना-फुटेना। राजा अउ भिखारी सबला, इही समय हर नाच नचाथे, राजमहल के रानी तक ला, थोपे बर पर जाही छेना॥ बेटी के बर बिहाव, टीका सगाई मोलभाव, लेन-देन होवत हे भाई। कइसे बिहाव करय बेटी के बाप, येती बर कुंआ हे, वोती बर खाई॥ मां होगे मम्मी अउ बाप होगे डैड लइका अंगरेजी के पीछू हे मैड। भासा अउ संस्कृति के दुरगुन तो…

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सांस म जीव लेवा धुंगिया

आज मौसम परिवर्तन के मार झेलत मनखे अचरज खा गे जब बसंत रितु म जाड़ ह अपन डेरा जमाय हावय। बरसात म गर्मी झेलत मनखे मौसम के पीरा ल सहत हावय। मौसम खुदे अचरज म हावय के मोर दिसा कइसे बदल गे हावय। इही सुग्घर साफ पर्यावरन ल करिया करत हमर विकास के रद्दा मलेगइया ये कल कारखाना बर कुछु सोचना चाही। ये हमर आज विस्व ल सोचे बर मजबूत कर दे हावय। काय हमन ल अपन खूबसूरत प्रकृति ल नस्ट करके विकास चाही? राजधानी रायपुर के परछिन अगास म…

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रहचुली

मेला म लगे हे रहचुली तरी ऊपर घूमत सहेजे रहचुली चेंवचेंव चेंव नरियावत हे रहचुली बाबू, नोनी सबो ल बलावत हे रहचुली पईसा म झूले बर बइठाए म रहचुली आ रे टुरा झूल ले, कहिथे ये रहचुली मीत-मयारू के मया ठउर ये रहचुली आमा के ममहावत मऊर ये रहचुली जिनगी के संसो-पीरा मेटाथे ये रहचुली अंजरी भर खुसी बगराथे ये रहचुली जिनगी घलो हावय एक ठन हमर रहचुली मया, पीरा, लाली ओंठ देखाथे ये रहचुली बिछरे संगी जंहुरिया मिलाथे ये रहचुली गीत अऊ किलकारी सुनाथे ये रहचुली आंखी के भाखा…

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कहिनी : पिड़हा

न वा जमाना आय के बाद जुन्ना कतको चीज नंदावत जात हे। एमा सिल लोड़िहा, पिड़हा, जांता, झउंहा अउ कतको जिनिस सामिल हवय। जांता तो आज कल बिलकुले नंदा गे हे। गांव में घलो खोजबे तो मिलना मुसकिल हे। वइसने मिक्सी के आय ले पढ़े-लिखे माइ लोगन मन सिल लोड़िहा ल हिरक के नइ निहारय। पिलास्टिक के धमेला आय ले झउंहा नंदा गे अउ डाइनिंग टेबल अउ कुरसी आय के बाद पिड़हा घलो नंदाना सुरू हो गे हे। कभू सगा सोदर आय तो ऊंच आसन बर पिड़हा देना मुहावरा रिहिस।…

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बखत के घोड़ा

खावत हे, पियत हे रातदिन मारा-मारी जियत हे बिन लगाम दउड़त हे बखत के घोड़ा। रात हर दिन हो जाथे दिन हर रात हो जाथे बिन काम होय आराम लागथे मनखे ल हराम आज ये डहर काल ओ डहर ये शरीर बन जाथे कोदो कस गरू बोरा बखत के घोड़ा। चलगे जेकर पांव के टापू मुड़ के नई देखय पाछू येहर अपन मंजिल पा लेथे अपन जीवन म सुख के गीत गा लेथे ये समय के फेर ये ककरो बीच म कोई बनथे रोड़ा बखत के घोड़ा। मनखे हर मनखे…

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