छत्‍तीसगढि़या संगी मन संग जरूरी गुपचुप बात

हिन्‍दी ब्‍लॉग के जम्‍मो संगी मन ला जय जोहार. संगी हो आपमन अभी के ब्‍लाग जगत में होत धरी के धरा झूमा झटकी ला देखत होहू. हमर कई झिन भाई मन अपन-अपन गुट के नेता के संग देहे के खातिर पोस्‍ट और टिप्‍पणी ले ससन भर भर के बान मारत हें. राजकुमार सोनी भाई, ललित शर्मा भाई, पाबला भाई मन उडनतश्‍तरी वाले समीर लाल के तरफदारी बने फरियार के करत हे त संजीत त्रिपाठी भाई ह अनूप सुकूल कोती खडे टिपनी सिपनी करत दिखत हे.  बाकी छत्‍तीसगढि़या भाई मन ला…

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छत्‍तीसगढि़या संगी मन संग जरूरी गुपचुप बात

हिन्‍दी ब्‍लॉग के जम्‍मो संगी मन ला जय जोहार. संगी हो आपमन अभी के ब्‍लाग जगत में होत धरी के धरा झूमा झटकी ला देखत होहू. हमर कई झिन भाई मन अपन-अपन गुट के नेता के संग देहे के खातिर पोस्‍ट और टिप्‍पणी ले ससन भर भर के बान मारत हें. राजकुमार सोनी भाई, ललित शर्मा भाई, पाबला भाई मन उडनतश्‍तरी वाले समीर लाल के तरफदारी बने फरियार के करत हे त संजीत त्रिपाठी भाई ह अनूप सुकूल कोती खडे टिपनी सिपनी करत दिखत हे.  बाकी छत्‍तीसगढि़या भाई मन ला…

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खेती म हावय सब सुख – कहिनी

सीताराम हर एक दिन शहर गीस घूमे बर, शहर के हालचाल जाने बर सीताराम शहर पहुंचगे। बढ़िया-बढ़िया घर-कुरिया, पांच तल्ला छै तल्ला। सब ल देखिस घूमत-घूमत सीताराम ल भूख लागिस खोजत-खोजत एक ठन बढ़िया होटल म गिस पेट भर रोटी-भात खाइस। होटल वाला ल पूछथे, कस गा भइया, के रुपया होइस? होटल वाला सेठ कइथे, तोर एक सौ पचास रुपया होइस बबा। सीताराम अकबका गीस अउ कहीस कस मालिक मैं तो अतेक कन खाय नइयों, फेर अतका पइसा कइसे होइच। होटल मालिक कईथे- देख बबा, आजकल खाए-पीए के भाव नइए।…

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छत्तीसगढ़ी हायकू

बिन पानी के। सावन-भादो! जेठ। मन उदास। x ठग-ठग के। तैं बिलवा बादर। कांहां बुलबे? x बिगन पानी। कइसे होही खेती। संसो लागथे। x बिचारे हस? निरदई बादर। मन के पीरा। x पीरा ओनहा। पीरा दसना पी-ले। खा ले पीरा ल। विट्ठल राम साहू ‘निश्छल’ मौंवहारी भाठा महासमुन्द

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विचार ले भटकगे धारा : गुड़ी के गोठ

लोकतंत्र के नांव म जबले वोट के राजनीति शुरू होय हे, तबले कोनो भी नियम-कायदा या कहिन के विचारधारा ह जम्मो राजनीतिक पारटी मन ले तिरियावत जात हे। एकरे सेती अब कोनो भी पारटी ह अपन एजेण्डा ऊपर ईमानदार नइ दिखय। कहूं न कहूं वोमा लीपापोती या तिरिक-तीरा के चिनहा अवस कर के दिखथे। आम जनता के अधिकार अउ दु:ख पीरा के मापदण्ड म चालू होय नक्सल आंदोलन आज के समय म ए बात के सबले बड़े उदाहरण आय। ए बात सही हे के जब एकर शुरूआत होइस त हुदराय-चुहकाय…

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माटी माथा के चंदन

मोर गांव के करंव बंदन, माटी माथा के चंदन। सपना सुग्घर दूनो नयनन, आड़ी-पूंजी जिनगी धन॥ हरियर-हरियर खेती-खार लीपे-पोते घर-दुवार॥ गंगा कस नरवा के पानी, अन धन ले भरे कोठार॥ सेवा के सोंहारी बेलय, पिरित के धरे पईरथन। करमा, ददरिया, पंडवानी गली खोर म गीता बानी। घर-घर तुलसी रमायेन, राम सीता दूनो परानी॥ सुरूज संझा लाली लिए, बिहनिया बुके बंदन। जगमग सुरहुत्ती देवारी, फागुन के लाली-गुलाली। हरेली तीजा पोरा राखी मया बांटे माली-माली॥ उपजे-बाढ़े जेखर कोरा, तेखरे कोरा म मिले तन॥ डॉ. पीसीलाल यादव साहित्य कुटीर गंडई-पंडरिया राजनांदगांव

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मितानी के गांठ – कहिनी

दाई-दाई! मेंहा काली सलमा दीदी घर रहूं। दीदी ह मोला काली रूके खातिर बड़ किलोली करत रीहीस हे। बड़े बाबू ह घलोक रूके बर मनावत रीहीसे। ममता ह अपन दाई ल चिरौरी करत कहिथे। त दाई ह कथे- तेहां मोला झिन पूछ बेटी, तोर ददा ल जाके बता। ममता ह गांव के पंच कातिक के नोनी हरे अउ सलमा ह रमजान सेठ के नोनी हरे। दूनों ननपन के सहेली आयं। दूनों के जनम ह एके दिन के अरक-फरक म होय रीहीस। जब दूनों लइका के जनम होइस त दूनों घर…

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बसंत ‘नाचीज’ के छत्तीसगढी गजल

बिना, गत बानी के  घर, नाना नानी के डोकरी, डोकरा बिन, दवई पानी के आय डोली, काकर ढेला रानी के लगत कइसन हो होरा छानी के ऊंचा है दाम काहे कानी के बतावथस अइसन देबे लानी के दिखथे करेजा कस तरबुज चानी के बके आंय बांय बेइमानी करके कर दान, पुन ऊना नि कभू दानी के मरगे खा पुड़िया देव किसानी के। बसंत ‘नाचीज’ सौगात जोन-1 सड़क-2-ए न्यू आदर्श नगर, दुर्ग

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जब पवन दीवान दऊड़ म अव्वल अइस

सुरता राजिम तीर के कोमा गांव म साहित्य म रुचि रखइया के कमी नइ हे। इही गांव काबर आसपास के बहुत अकन गांव म घलो साहित्यकार अउ कवि मन के अइसे छाप पड़े हे के लोगन अपन लइका के नाव घलो कवि मन के नाव जइसे धराय-धराय हवे। वइसे तो राजिम क्षेत्र के जम्मो भुंइया साहित्यकार मन बर बड़ उर्वर हे। राजिम जिहां पवन दीवान, पुरुषोत्तम अनासक्त, कृष्ण रंजन, छबिलाल अशांत, विशाल राही जइसे साहित्यिक सपूत मन जनम लिस। वइसने मगरलोड, किरवई अउ कोमा में घलो बड़े-बड़े साहित्यकार मन पैदा…

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