नगरा लुच्चा बनना सरल हे, तंय मनखे बन के बता।मनखे-मनखे एक समान कोनहो गरीब ल झन सता॥धन अऊ बल रावन जइसे के घलो काम नई आइस,तंय अलोक्खन ले बहिर, अपन आप ल झन जता।भारत साधु, संत, रिसि, मुनि, संस्कार के देस आय,झन धर तंय अनियांव, अतियाचार के रसता।कखरो मन म भेदभाव, नफरत के जहर झन घोर,बना सकथस त बना परेम के नत्ता।चारों डहर हाहाकर हे मनखे, मनखे ल काटत-बोंगत हे,का भांटा-मुरई कस मनखे होगे हे ससता?धौंस झन दे चरदुनिया राजनीति अऊ सत्ता के,कतको आइन अऊ गेइन जेखर नई हे अता-पता।नगरा…
Read MoreMonth: August 2010
घासीदास जी के अमर संदेश-पंथी गीत
सत ल जाने बर घासीदास सन्यासी होगे। सत असन अनमोल जिनीस ल पाए बर वाजिब साधना के जरूरत परिस। बर-पीपर सांही पवित्र वृक्ष ल छोड़के ये औंरा-धौंरा असन साधारन पेड़ के खाल्हे तपस्या म लीन होगे। ये घासीदास के निम्न वर्ग लोगन के प्रति ओखर पिरीत अउ लगाव के प्रतीक आय। लगन अउ साधना ले घासीदास एक चमत्कारिक फल सत के प्राप्ति होइस। बाद म इही सत ल दुनिया म सतनाम के संग्या मिलीस। गुरु घासीदास हर छत्तीसगढ़ के पावन भूमि बिलासपुर के गिरौदपुरी गांव मं संवत 1756 सन् (1700)…
Read Moreगरजइया कभू बरसय नहीं
तइहा ले ये सुनत आए हवन के ‘गरजइया बादर कभू बरसय नहीं’। अब जब अइसनहा जिनिस ल रोजे अपन आंखी म देखत हवन, त लागथे के हमर पुरखा मन जेन गोठ ल कहि दिए हें, ते मन ओग्गर सोन कस टन्नक हे। ए बात अलग हे के वो मन अइसन हाना ला कोनो सेखिया मनखे के संदर्भ म कहि दिए रहे होहीं के ‘जेन टांय-टांय करथे, तेकर जांगर नइ चलय’ फेर ए बात ह अब बादर के घड़घड़-घड़घड़ गरजई अउ फुसफुसहा बरसई के रूप म घलोक दिखत हावय। जब ले…
Read Moreबरसा के बादर आ रे : कबिता
मयारू आंखी काजर कस छा रे।बरसा के बादर आ रे॥सुक्खा होगे तरिया, नरवा।बिन पानी के कुंआ, डबरा॥बियाकुल होगे जीव-परानी।सबो कहंय-कब बरसही पानी॥मोर मीत के केस छरिया रे।बरसा के बादर आ रे॥पंखा डोलावय हवा सरर-सरर।बरसे पानी झझर-झरर॥मेघ ह गरजय, घुमरय, बरसय।चिरई-चिरगुन, परानी मन हरसय॥मेघ-मल्हार तैं गा रे।बरसा के बादर आ रे॥सबके तन-मन ल जुड़ा दे।खेत-खार हरिया दे॥नदिया म धार बोहा दे।भुंइया ल हरियर रंग सजादे॥परब-तिहार ल ला रे।बरसा के बादर आ रे॥मयारू के गांव, अस्सी कोस नौ बासा।ऊंच-ऊंच डोंगरी, ऊंच अकासा॥सोर-संदेस के नइए ठिकाना।नइ होवय कभू आना-जाना॥घुमरत-घुमरत जाके तैं संदेसा ला…
Read More23 Aug
आरंभ मा पढव : – सृजनगाथा के चौथे आयोजन में ब्लॉगर संजीत त्रिपाठी सम्मानित पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’
Read Moreटेंकहा बेंगवा
लोक कथा दाई बपरी करम छड़ही कस औंट के रहिगे। सोचिस बेटा तो मोर केहे के उल्टा करथे, मोला डोंगरी ऊपर अपन माटी गती कराना हे, त नदिया मं पाटे बर केहे लागही। अइसे विचार के चेतईस देख बेटा मरहू ताहन नदिया मं पाटबे न। नान्हे बेंगचुल (मेंचला) मूंगा कस चििचिकी हरियर राहय। पिला बकेना, बछरू बेंदरा, अऊ सबे जीव परानी के लइकई रुवाप मन मोहना होथे। तसने बहू राहय। घात उदबिरीस अऊ टेंकहा। महतारी के बरजना ओकर बर अऊ टेचराही देखाय के ओखी राहय। दाई कहाय- देख बेटा, अभी…
Read Moreसतवाली सतवंतिन
लोककथा सतवंतिन ह, अउ मुड़ म बोहे लकड़ी के बोझा ल धिरलगहा अंगना म मढ़ाइस। एती लकड़ी ह माढ़िस अउ चार ठन बड़े-बड़े गंऊहा डोमी सांप ह मुड़ी उठा के खड़े होगे। डोकरी ह देखके डर्रागे अउ सांप-सांप कहिके गोहार पारिस। सांप के नाव ल सुनके वोकर चारों झन बेटा मन लउठी धर के आइन अउ सांप ल मारे बर दौड़िन। अतका म सतवंतिन कथे- एला झन मारो हो, इहि मन मोर लकड़ी ल बांध के लानिस हे। त डोरी धर के नि जाय रते वो वोकर ससुर किहिस। अतका…
Read Moreहरेली के गीत
हरेली निराली झूमत-नाचत आय हरियाली लाए संग म ये खुशहाली, आए हे गेड़ी म चढ़के दिखे देवी-देवता मन सरग के। धरे ठेठरी, खुरमी भरे थाली। झम-झम फूल बरसाए बादल संभर गे जम्मो मोटियारी, मुसकुरावय गरीब किसान नागर बैला के करत सम्मान रंधनी ले मुसकावय घरवाली। सब डाहर खुशी मस्ती छागे नदिया, नरवा घलो बौरागे कूके लगिस कोयलिया कारी। मन के बात मन म झन राखव दया-मया बांटव खुशी ल बांटव रोज बन जाही हरेली निराली। तेजनाथ पिपरिया, कवर्धा
Read Moreफिलिम बनाबो फिलीम बनाबो
ये फिलिम वाले मन के चरित्तर हा अब तो छत्तीसगढ़िया मन के समझ ले बाहिर हे। काबर कि जउन फिलिम उद्योग म तरी ऊपर फिलिम ह बनत हे तउन ला देखे के बाद आम दरसक माने छत्तीसगढ़िया मन ला छत्तीसगढ़ी के सुवाद हा नई मिल पवत हे। जम्मो फिलिम हा बालीवुड ला कापी ऊपर कापी करत हे। तइसे लागथे नहीं भलुक कापीच करते हावय। कथा पटकथा संवाद म नाममात्र के छत्तीसगढ़ी भासा के प्रयोग, गीत म नंगत के मार गारी के आखर, धुन अइसन कि लोकधुन हा कई कोस पाछू…
Read Moreबेलपत्ता
बेलपत्ता नई होवय सिरिफ तीन कोनिया पन्ना। बेलपत्ता- होथे भोले नाथ के, परम, दिव्य सिंगार व्यंजन अउ अलंकार सुहागिन के सेंदूर कस। बेलपत्ता- होथे भगवान शिव के, त्रिनेत्र के त्रिशूल के समान्तर चिन्हा। बेलपत्ता म, समाए हे, तीनों लोक, तीनों देव, तीनों गुन। बेलपत्ता- चढ़ाना होथे तीनों देव के प्रसन्नता खातिर, तीनों गुन सम्पन्न, तीनों ताप के नाश करइया, सुग्घर हरियर पत्ता, हरियाली खुशहाली के प्रतीक परेम के श्रध्दा रूप म, तीनों लोक चढ़ाना। तेजनाथ बरदुली, पिपरिया जिला कबीरधाम
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