बरसा के बादर आ रे : कबिता

मयारू आंखी काजर कस छा रे।बरसा के बादर आ रे॥सुक्खा होगे तरिया, नरवा।बिन पानी के कुंआ, डबरा॥बियाकुल होगे जीव-परानी।सबो कहंय-कब बरसही पानी॥मोर मीत के केस छरिया रे।बरसा के बादर आ रे॥पंखा डोलावय हवा सरर-सरर।बरसे पानी झझर-झरर॥मेघ ह गरजय, घुमरय, बरसय।चिरई-चिरगुन, परानी मन हरसय॥मेघ-मल्हार तैं गा रे।बरसा के बादर आ रे॥सबके तन-मन ल जुड़ा दे।खेत-खार हरिया दे॥नदिया म धार बोहा दे।भुंइया ल हरियर रंग सजादे॥परब-तिहार ल ला रे।बरसा के बादर आ रे॥मयारू के गांव, अस्सी कोस नौ बासा।ऊंच-ऊंच डोंगरी, ऊंच अकासा॥सोर-संदेस के नइए ठिकाना।नइ होवय कभू आना-जाना॥घुमरत-घुमरत जाके तैं संदेसा ला…

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23 Aug

आरंभ मा पढव : – सृजनगाथा के चौथे आयोजन में ब्‍लॉगर संजीत त्रिपाठी सम्मानित पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’

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टेंकहा बेंगवा

लोक कथा दाई बपरी करम छड़ही कस औंट के रहिगे। सोचिस बेटा तो मोर केहे के उल्टा करथे, मोला डोंगरी ऊपर अपन माटी गती कराना हे, त नदिया मं पाटे बर केहे लागही। अइसे विचार के चेतईस देख बेटा मरहू ताहन नदिया मं पाटबे न। नान्हे बेंगचुल (मेंचला) मूंगा कस चििचिकी हरियर राहय। पिला बकेना, बछरू बेंदरा, अऊ सबे जीव परानी के लइकई रुवाप मन मोहना होथे। तसने बहू राहय। घात उदबिरीस अऊ टेंकहा। महतारी के बरजना ओकर बर अऊ टेचराही देखाय के ओखी राहय। दाई कहाय- देख बेटा, अभी…

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सतवाली सतवंतिन

लोककथा सतवंतिन ह, अउ मुड़ म बोहे लकड़ी के बोझा ल धिरलगहा अंगना म मढ़ाइस। एती लकड़ी ह माढ़िस अउ चार ठन बड़े-बड़े गंऊहा डोमी सांप ह मुड़ी उठा के खड़े होगे। डोकरी ह देखके डर्रागे अउ सांप-सांप कहिके गोहार पारिस। सांप के नाव ल सुनके वोकर चारों झन बेटा मन लउठी धर के आइन अउ सांप ल मारे बर दौड़िन। अतका म सतवंतिन कथे- एला झन मारो हो, इहि मन मोर लकड़ी ल बांध के लानिस हे। त डोरी धर के नि जाय रते वो वोकर ससुर किहिस। अतका…

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हरेली के गीत

हरेली निराली झूमत-नाचत आय हरियाली लाए संग म ये खुशहाली, आए हे गेड़ी म चढ़के दिखे देवी-देवता मन सरग के। धरे ठेठरी, खुरमी भरे थाली। झम-झम फूल बरसाए बादल संभर गे जम्मो मोटियारी, मुसकुरावय गरीब किसान नागर बैला के करत सम्मान रंधनी ले मुसकावय घरवाली। सब डाहर खुशी मस्ती छागे नदिया, नरवा घलो बौरागे कूके लगिस कोयलिया कारी। मन के बात मन म झन राखव दया-मया बांटव खुशी ल बांटव रोज बन जाही हरेली निराली। तेजनाथ पिपरिया, कवर्धा

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फिलिम बनाबो फिलीम बनाबो

ये फिलिम वाले मन के चरित्तर हा अब तो छत्तीसगढ़िया मन के समझ ले बाहिर हे। काबर कि जउन फिलिम उद्योग म तरी ऊपर फिलिम ह बनत हे तउन ला देखे के बाद आम दरसक माने छत्तीसगढ़िया मन ला छत्तीसगढ़ी के सुवाद हा नई मिल पवत हे। जम्मो फिलिम हा बालीवुड ला कापी ऊपर कापी करत हे। तइसे लागथे नहीं भलुक कापीच करते हावय। कथा पटकथा संवाद म नाममात्र के छत्तीसगढ़ी भासा के प्रयोग, गीत म नंगत के मार गारी के आखर, धुन अइसन कि लोकधुन हा कई कोस पाछू…

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बेलपत्ता

बेलपत्ता नई होवय सिरिफ तीन कोनिया पन्ना। बेलपत्ता- होथे भोले नाथ के, परम, दिव्य सिंगार व्यंजन अउ अलंकार सुहागिन के सेंदूर कस। बेलपत्ता- होथे भगवान शिव के, त्रिनेत्र के त्रिशूल के समान्तर चिन्हा। बेलपत्ता म, समाए हे, तीनों लोक, तीनों देव, तीनों गुन। बेलपत्ता- चढ़ाना होथे तीनों देव के प्रसन्नता खातिर, तीनों गुन सम्पन्न, तीनों ताप के नाश करइया, सुग्घर हरियर पत्ता, हरियाली खुशहाली के प्रतीक परेम के श्रध्दा रूप म, तीनों लोक चढ़ाना। तेजनाथ बरदुली, पिपरिया जिला कबीरधाम

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छत्तीसगढ़ फिलिम के दर्सक ग्रामीण

छत्तीसगढ़ी फिलिम पीटावत काबर हे? ये सवाल खड़े हावय- काय निर्माता निर्देशक मन स्तर के फिलिम नई बनावत हे? हमर निर्माता निर्देशक मन बहुत बढ़िया गीत, संगीत, कथा, पटकथा, हास्य, रचनावत हे। उच्च तकनिक के उपयोग होवत हे। कोरी-कोरी कलाकार अभिनय म सर्व सम्पन्न हे। सोचे के विषय आय। छत्तीसगढ़ी भासा ल राजभासा के दरजा पाय के बाद घलो आज साहर के लोगन मन हा छत्तीसगढ़ी म नइ बोलत हे एखर कई कारण हो सकत हे जइसे ओमन ला छत्तीसगढ़ी बोले म सरम आवत होही या हो सकथे ओमन हा…

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मया के तिहार

टीप-टीप तरिया डबरी नरवा नदिया कछार। आगे हरेली, राखी तीजा-पोरा मया के तिहार॥ माते हे रोपा-बियासी खेती-किसानी, जिनगी हमार। हरियर दाई के कोरा धरती माई करत हे सिंगार॥ टीप-टीप… कमरा-खुमरी ओढ़े नगरिहा धरे तुतारी बईला नागर। जबर छाती हावय रे भईया तोर कमईया जांगर॥ टीप-टीप… रच-रच, मच-मच गेड़ी बाजे जाता-पोरा नांदिया बईला साजे भोजली, जेवारा, दौनापान रे मयारू तोर मया चिन्हार॥ टीप-टीप… भोले बबा ल मनाबो रे- चढ़ाबो बेलपाती अउ नरियर। अवङड़ दानी ओ तो अविनासी हे अजर अमर॥ टीप-टीप… रामकुमार साहू ‘मयारू’ गिर्रा पलारी

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लिंग परिक्छन के परिनाम

”आज जम्मो समाज म लड़की मन पढ़ लिख गिन अऊ लड़का मन ले दूचार करे बर तियान हे। आज हम दूतीन बछर थे देखत आत हम। जेखर घर लड़की हे ओ बाप ह छाती फुलाय अऊ मेछा अटियाय घुमत हे। अऊ लड़का वाला ह कुकुर को कोलिहा बरोबर घिरलत हे। लड़का ल बने पढा लिखा दरे हर अऊ लड़की ल पढ़ाय बर भेद करेस त तोर लड़का बर बहु कहां ले मिलही।” आज के जुग ह बिज्ञान के जुग आय। आज बिज्ञान के सहारा ले मनखे के कहां ले कहां…

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