कहिनी – खिरकी के संध

भागो लाड़-दुलार म बाढ़े रहिस हे। ओखर दू झन भाई रहिस हे। ददा किसानी करय अउ दाई ह धूम-धूम के गांव के हर घर म कुछु न कुछु काम करय। अपन घर के कुआं, बारी म बहुत साग-भाजी लगाय रहिस हे। कांदा भाजी, कोचई पान, अम्मारी, पटवा, चेंच, खेड़हा, खीरा, चिरपोटी पताल अउ अंग्रेजी मिर्चा। छै एकड़ खेत रहिस हे तेला भागो के ददा गनपत ह कमावय। एक दिन बारी के बोहार के रुख म चघ के बोहार भाजी तोड़त-तोड़त भगवंतिन ह गिरगे। उही बेरा म ओखर परान छूटगे। बारह…

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नान्हे कहिनी : सिसटाचार

गियारह बजे के बेरा आय। मिथलेस अपन संगवारी मनसन गोठियात जात राहे, त परकास कथे-कइसे रे मिथलेस ! तेंहा अड़बड़ दिन बाद कॉलेज आय हाबस। आजकल तोर दरसन दुरलभ होगे हाबे। कहां जाथस दिखस निही। त मिथलेस कथे- बहुत बियस्त होगे हाबों यार, सबो डाहर ल देखे ल पड़थे घर डाहर घलो अड़बड़ बूता रथे। सबो झन पढ़इया लइका मन अपन-अपन किलास म जात रथे। ओतकीच बेर कॉलेज के प्रिंसपल ह आ जथे, अउ मिथलेस ल देखके कथे- ‘आप मेरे आफिस में आइए।’ मिथलेस ह कोन ल काहत हे कहिके…

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‘तुंहर जाय ले गीयां’

कामेश्वर पाण्डेय के छत्तीसगढ़ी उपन्यास ‘तुंहर जाए ले गीयां’ 270 पृष्ठ म लिखाय हावय। येखर कहिनी ह छोटे-छोटे 42 खण्ड म बंटाय हावय। हर कहिनी जीवंत आंखी के आगू म घटत दिखथे। बड़े कका मुख्य पात्र ह बहुत संवेदनसील हावय। हरेक के दु:ख-पीरा के एहसास ल करथे। आज के बेरा म जानवर के प्रति परेम ह पाठक ल सोचे बर विवश करही के पसु घलो मनखे सरीख हे। ओला दाना-पानी देना, ओखर जोखा करना अउ माछी झूमत घाव म नीम तेल ल लगाय बर कहना। एक सियान के पीरा के…

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नान्हे कहिनी : लबारी

‘रामलाल कथे भाई मेहा दसमी पास होगेंव, ये ले मोर अंकसूची कहिके देखाय बर धरथे त देखथे पेपर ह ओकर ले गायब हो जाय रथे। वोला पेपर पढ़इया मन धरके लेग जाय रथे। रामलाल ल अड़बड़ दु:ख होथे। बिचारा के पीरा पहाड़ कस हो जथे।’ रामलाल बहुत खुश रिहिस अपन अंकसूची ल देखके वोला जतन के पेपर म तोप के अपन दुकान म लइस अपन बड़े भाई ल देखाये बर, भाई दुकान म नई राहे। अपन भाई के रद्दा जोहत-जोहत अंकसूची ल टेबुल म मड़ा दिस। ओखर भाई ह आ…

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एकलव्य

हर जुग म होवत हे जनम एकलव्य के। होवत हे परछो गउ सुभाव के कटावत हे अंगठा एकलव्य के। हर जुग म हर जुग म रूढ़ीवादी जात-पात छुआछूत भारत माता के हीरा अस पूत कहावत हे जनम-जनम अछूत। हर जुग म आज इतिहास गवाह हे एकलव्य बर द्रोनाचार के मन म का बर दुराव हे? का हे दोस? नान्हे फूल के काबर ये दुसार? दलित माता के कोख ले जनमे हे न! अतकेच के गुनाहगार का इहि ये गुनाह? होवत हे हीनमान, अइताचार संत गुनी के भारत म बरन बेवस्था…

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पातर पान बंभुर के, केरा पान दलगीर

‘राऊत नाचा ह महाभारत काल के संस्कृति, कृसि, संस्कृति अउ भारत के लोक संस्कृति ले जुरे हावय। राऊत नाच राऊत मन के संस्कृति आय फेर ये ह भारतीय संस्कृति के पोषक घलो हे। भारत के संस्कृति कृसि प्रधान हे। ये कारन गाय-बइला, खेत-खार, गोबर-माटी अउ पेड़-पौधा, नदिया-नरवा ले सबो ल मया हावय। येला राऊत नाचा अउ ओखर दोहा के माध्यम ले समझे अउ देखे जा सकथे।’ जगमग-जगमग करत दीया के अंजोर ले देवारी के अंधियारी रात घला पुन्नी रात कस लागथे। लोगन के हृदय के अंगना म हर्स अउ उमंग…

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कहिनी : चटकन

‘ओ खाली परिया जमीन म न मंदिर बनाए जाय न मस्जिद बनाए जाय। ओमा एक अइसे आसरम बनाए जाए जेमा बेसहारा डोकरा, डोकरी, बइहा कस किंजरइया मनखे, अनाथ लोग लइका राहय। संग म गांव के अइसे मनखे जेखर गुंजाइस के लइक ठउर-ठिकाना नइ हे तउने मन ए आसरम म रहि सकंय। हिन्दू भाई अउ मुसलमान भाई आप मन मंदिर अउ मस्जिद बनवाए बर जउन चंदा सकेले हव तेला आसरम बनवाए बर लगा दव।’ सड़क तीर मा पीपर खाल्हे खाली परिया में जब बनही ते बजरंग बलीच के मंदिर बनही। ए…

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मन के दीया ल बार

कटय नहीं अंधियार चाहे लाख दीया ल बार होही जगजग ले अंजोर मन के एक दीया ल बार। जाति-धरम भाषा के झगरा बंद होक जाही मया पिरीत के रूंधना चौबंद हो जाही सावन कीरा कस गंजा जाही संसार… सुने म न तो कान पिरावय न देखे म आंखी देख सुन के कर नियाव, निकले मुख अमरित बानी कबीर कहे हे उड़ जय थोथा राहय सुपा में सार… तैंतीस कोटी देवी-देवता अउ कतको धरम-करम खड़-खड़ के भगवान चुनेन नई जानेन हम मरम हर मनखे भगवान के अंशी करले चिटिक सोच विचार……

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मया के दीया

घर कुरिया, चारों मुड़ा होही अंजोर फुलवारी कस दिखही महाटी अऊ खोर जुर मिलके पिरित के रंग सजाबो रे आगे देवारी मया के दीया जलाबो रे बैरी भाव छोड़ के जम्मो बनव मितान जइसे माटी के रखवारी करथे किसान बो बोन जइसे बीजा ओइसने पाबो रे आगे देवारी मया के दीया जलाबो रे मने मन मुस्कुराये खेत म धान के बाली भुइयां करे सिंगार, लुगरा पहिरे हरियर लाली गांव के जम्मो देवी-देवता ल नेवता दे आबो रे आगे देवारी मया के दीया जलाबो रे असीस दिही लक्ष्मीदाई होही उपकार लइका…

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नान्हे कहिनी : जिनगी के मजा

पुजारी जी अउ समझाईस बेटा दाई के मालिक के दया तो पहिली ले हे, तभे तो ये मनखे जोनी पाये हन, अतेक सुग्घर संसार म आय हन। अब ओखर संसार म आके, अपन घर-परिवार, अपन जिम्मेदारी ले भागना, बल्कि ओ मालिक के अपमान होथे, अउ फेर तें का समझथस। नवरात्रि के परब चल राहय। चहुं ओर जगमगावत राहय माता के जोत ले घोर निरासा म अपार आसा भरइया, दुख-दरद ल दूर करइया, भूले- भटके ल रद्दा देखइया माता के जोत ले। लगय जइसे जम्मो चांद-सितारा, सरग आगे हें धरती म…

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