मोर गंवई गांव

बर, पीपर अउ लीम के बढिया होतिस छांव बबा, दाई मन कहिनी सुनातिन सुनतिस जम्मो गांव। हरेली, तीजा, पोरा, देवारी जेठौनी, होरी बने मनातेन भोजली, सुवा, करमा, ददरिया एक्के सुर म गातेन। सपना होवत जात हे संगी का मैं तोला बतावं जुर मिल के गोठियातिन सुग्घर अईसन गांव कहां ले लांव बर, पीपर अउ लीम के…। खेत-खार अउ रुख रई मं चिरई, चुनगुनातिन नदिया, नरवा धार बोहाके सातो सुर म गातिन। अइसन सुघ्घर गांव ल देख के देवता धामी के रूक जातिस बढ़त पांव सरग जइसे रहितिस सुग्घर मोर गंवई…

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नवा अंजोर कहिनी

नोनी मैं तो आन धर के छईहां नई खुंदे रहें, बुता करई तो जानते नई रहें। फेर मोर आदमी के बीते म जीनगी के ताना नना होगे। घर चलाय बर गहना गूंठा तक बेचागे। माय मइके मैं दिन के चार दिन बने राखही तहां…। नानमुन गोठ ह हूल मारे कस लागथे। एही पाय के मैं मिस्टरी बबा अउ रउतईन दाई संग-संग रांधे करे के काम करे लागे। कोनो काम छोटे बड़े नई होवै। काम करे म का के लाज। गांव के सियान मन कहिथें- परवार के बड़े अउ छोटे ल…

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माटी के दियना

माटी के दियना, करथे अंजोर। मया बांध रे, पिरितिया डोर॥ जगमग-जगमग लागे देवारी, लीपे-पोते घर, अंगना, दुवारी खलखला के हांसे रे, सोनहा धान के बाली चला चलव जी, लुए बर संगी मोर॥ माटी के दियना… नौकर-चाकर, सौजिया, पहटिया जोरे-जोरे बइहां रेंगे, धरे-धरे झौंहा डलिया चुक-चुक ले, गांव, गली, खोर माटी के दियना… छन-छन ले घाट-घटौंदा तरिया-डबरी, नरवा-नदिया पैडगरी लागे उजास रे माटी के दियना… रामकुमार साहू मयारू गिर्रा पलारी

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बम-निकलगे दम

एक झन कहिस- का बताबे सिरतोन म बहुत बुरा हाल हे। जुन्ना रेलवे पुलिया अउ करमचारी मन के लापरवाही ले वइसने जब नहीं तब जिहां नहीं तिहां बम फोरत हे, गोली चलावत हे। इंकर मारे तो कहूं आना-जाना घलो मुसकुल होगे हे। हिंसा ले सुख, खुशहाली अउ सांति लाए के उदिम अउ हिंसा ले ये नई लाय जा सकय। येला लाए बर दया-मया, भाईचारा अउ अहिंसा के रद्दा ल अपनाए ल परही। बम! जइसने बम के गोठ निकलिस रेल ह थरथरागे अउ वोकर पोटा कांपे ल धर लिस। वोला बम…

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मोर कुकरा कलगी वाला हे ( गीत )

दुनिया में सबले निराला हे ….मोर कुकरा कलगी वाला हे ….चार बजे उठ जावे ओहा सरी गाव ला सोरियावे ओहा माता देवाला के लीम ला चढ़ के कूकरुसकू नरियावे ओहा गुरतुर ओखर बोली लागे गजब चटपटा मसाला हे मोर कुकरा कलगी वाला हे ….मोर कुकरा रेंगे मस्ती मा यही चल ओखर अंदाजा हे बस्ती के गली गली किंजरेसब कुकरी मन के राजा हे दिल फेक बड़े दिलवाला हे मतवाला हे मधुशाला हे मोर कुकरा कलगी वाला हे ….ओखर, काखी मा चितरी पाखी हे पंजा मा धारी नाखी हे पियुरी चोच…

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रेमटा टुरा – २ चिपरिन के मही

ममा गाँव मा रहे एक झनठेठ्वारिन दाई अंकलहिन् बेलमार के मइके ओखर बढौवल नाम बेलमरहिन् ओखर घर मा गैया भैसी रहे कोठार बियारा खोरबाहरा मंगलू चरवाहा अऊ , पहटिया मन करे तियारा किसम -किसम के जेवर गहना पहिरे रहे लदलदावैआनी-बानी के चीज़-बसदूध-दही के नदी बोहावै चिपरिन डोकरी सास ओखर मही बेचे बार जावै मही ले वो – मही ले वो गली गली चिल्लावै जेठू के रेमटा टूर हा चिपरिन ला रोज़ बलावै अपन दाई मेर जिद्दी करके रोजेच मही लेवावै ठंडा दिन मा रमकेलिया साग अम्टाहा मा रंधवावै जुर –…

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बाल कहिनी : अइसे धरिन चोर गोहड़ी

बाल कहिनी सबो चोरी ओतके बेर होथे, जतका बेर मनखे घर ले बाहिर रथे। ओहर घातेच बिचारिस त सुध आईस, जमे चोरी मं कोनो अवइया-जवइया नइते अइसे मनखे के हात हे, जेहर घर वाला मन के अवई-जवई ला जानथे। तहांले राहुल हर अपन जहुंरिया रमेश अउ वीरेश ल संघेरिस अउ किहिस हमला चोरहा मनके चिन्हारी करके, कुछु उदीम करना हे। वहू दूनो झक चोरी चपटी ले बगियाय राहंय। डॉ. राउत संझा कुन अपन सुवारी सन किंजरे बर निकलिन। घंटा भर मं लहुटिन ते खोर मुहांटी के तारा टूटे राहय। देख…

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रूख लगाय के डाढ़ – कहिनी

एक झन पुराना बाबू कहिस रूख के बदला हमन ला रूख लगा के दिही। अब तुंहर काय विचार हे अब तुमन बतावव। गांव के पंच, सरपंच, मिलजुल के कहे लागिस। तुमन अपन अपन हाथ म बीस-बीस पेड़ तरिया के जात ले लगाहू, जेमा गांव हर पेड़ पौधा ले भरे-भरे लागय, रूख लगाय के डाढ़ हर तुहर मन के डांढ ये जान डरव। पुराना सियान मन के भाखा हर संत बानी कस होथे। इकर मन के कहे हर कभू बेकार नई होवय। कोई मनखे ल कुछु कही त सोच समझ के…

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जनकवि स्व.कोदूराम’दलित’ जनम के सौ बरिस म बिसेस : ”धान-लुवाई”

चल संगवारी ! चल संगवारिन ,धान लुए ला जाई ,मातिस धान-लुवाई अड़बड़ ,मातिस धान-लुवाई. पाकिस धान- अजान,भेजरी,गुरमटिया,बैकोनी,कारी-बरई ,बुढ़िया-बांको,लुचाई,श्याम-सलोनी. धान के डोली पींयर-पींयर,दीखय जइसे सोना,वो जग-पालनहार बिछाइस ,ये सुनहरा बिछौना . गंगाराम लोहार सबो हंसिया मन-ला फरगावय ,टेंय – टुवाँ के नंगत दूज के चंदा जस चमकावय दुलहिन धान लजाय मनेमन, गूनय मुड़ी नवा के,आही हंसिया-राजा मोला लेगही आज बिहा के. मंडल मन बनिहार तियारयं, बड़े बिहिनिया ले जाके,चलो दादा हो !,चलो बाबा ! कहि-लेजयं मना-मना के. कोन्हों धान डोहारे खातिर,लेजयं गाड़ी-गाड़ा,फ़ोकट नहीं मिलयं तो देवयं , छै-छै रुपिया भाड़ा. लकर-धकर…

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कहिनी – जिनगी के खातिर

बाबा तेहा लीम बीजा ल काबर सकेले हस गा। काय करबे येला? येला न रे जगो त सौ म पच्चीस-तीस ठन ह पेड़ बनही रे! चल जल्दी बबा, तोला खाय बर देखथे, चल बेटा आवथवं। दाई बबा ह लीम बीजा सकेलथे। आघू कीहिस हे, डोकरा लाज नइए का रे लीम बीजा ल काय अपन मुड़ म थोपही। झन बटकर रांध, लोग मन काय कही ओतेक बड़ आदमी ह लीम बीजा बीनथे। कही, आवन दे तोर बाप ल बतावत हंव। ये डोकरा हा हमर मन के नाक ल कटवाही अउ कांही…

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