जेठू के रेमटा टूरा लाकोनो का समझाए नान नान कुकुर के पिला देखे ओला बहुत दउड़ाए दुनो हाथ पसारे वोहादुनो गोड चकराए घुरुवा कचरा कांटा खुटीकहूँ भी खुसर जाये कुकुर पिला ला धरे खातिर भाग दउड मचाएखुदे हपट के गिरे वोहा एको ठन नई सपडाए चल संगी हम पिला पकड़बोओखर दुकान लगाबो नान नान पिला ला बेचबोअऊ पैसा कमाबो अपन दुसर संगवारी मन ला पईसा के धौंस देखाबो पईसा वाले हम बन जाबो पिकनिक पार्टी मानबो अइसने मा फेर चाबिस एक दिन कुकुर पिला के दाई दांत गड गे मांस…
Read MoreYear: 2010
सरग सुख : कहिनी
मुकुल के जीव फनफनागे। अल्थी-कल्थी लेवत सोचिस, अलकरहा फांदा म फंदागेंव रे बबा। न मुनिया संग मेंछरई न दई -ददा के दुलार। ये सरग लोक घला भुगतउल हे। ओला लागिस कुछ बुता करतेंव, नांव कमातेंव, पढ़-गुन के हुसियार बनतेंव। वोहा देवदूत ला कथे- मोला लागथे, जिनगीच हर बने रिहिसे। एक झन पोठहा गौंटिया के एकलौता बेटा राहय मुकुल। दूरिहा के नत्ता-गोत्ता वाली जौंजर छोकरी घला संग मं राहय मुनिया। ओकर अपन बिरान कोनो नी राहय। तेकरे सेती गौंटिया घर पिलपोसवा रिहिस। मुकुल अऊ मुनिया संगे खेलंय, पढ़ंय लड़ंय अऊ मेछरावंय।…
Read Moreअरुण निगम के छत्तीसगढी गीत : मन झुमै ,नाचे ,गावै रात-दिन
मया के पहिली-पहिली चघे हे निसा,मन झुमै , नाचै , गावै रात – दिन.आवत हे,साँस-साँस जीए के मजा,मन झुमै , नाचै , गावै रात – दिन. अपने आप हांसत हौं,अपने आप रोवत हौं,आनी-बानी रँग-रँग के , सपना संजोवत हौं.पिया के ! घेरी – बेरी आवय सुरता…मन झुमै , नाचै , गावै रात – दिन . बिंदिया लगावत हौं , रूप ला सजावत हौं,सोलहों सिंगार कर के , दर्पण निहारत हौं.लाजवौं ! हाथ-मा लुका के चेहरा….मन झुमै , नाचै , गावै रात-दिन . बिन देखे मन तरसै , देखे लजावत हौं,जाने…
Read Moreनंदिनी केहेस त मोर गांव देमार – कहिनी
आज दुखवा बबा के कुछ आरो नइ मिलत हे। बबा ल कुछु हो तो नई गे! आजेच ओखरघर के मोहाटी के कई बच्छर जुन्ना पीपर पेड़ हर जर समेत उखड़ गे हे। कहुं बबा ह उही मा चपका के… छी…छी… ये कहा मेहा अण्ड-बण्ड सोंचत हंव। बबा ल कुछु नई होवय अबहीन तो वो हा कई बच्छर अऊ जीही। अइसन सोंच के मेहा अपन आप ल धीर तर धरा डरेंव फेर मन के बेचइनी ल दूर नई कर सकेंव। मोर गोड़ अपने-अपन बबा के घर जाय बर उठगे। दुखवा बबा…
Read Moreअरुण कुमार निगम के छत्तीसगढी गीत : चले आबे नदी तीर मा …..
खन-खन बाजे चूरी , छन – छन बाजे पैरी ,हाय ! दूनों होगे बैरी,कइसे आवंव नदी तीर-मा ? चूरी – ला समझा दे अउ ,पैरी – ला मना ले ,मेंहदी -माहुर लगा के ,चले आबे नदी तीर-मा. बैरी ! मान गे हे चूरी अउ चुप होगे पैरी ,अब आँखी भेद खोले, कैसे आवँव नदी तीर-मा ? आँखी काजर लगा के,दूनों नैना ला झुका के चुप्पे गगरी उठा के,चले आबे नदी तीर-मा. आँखी कजरा लगाएँव,चुप्पे गगरी उठाएंव अब चाल होगे बैरी,कैसे आवंव नदी तीर -मा ? लोक – लाज के बिचार…
Read Moreअब के गुरुजी
का बतावंव बेटा, मोरो टुरा हा तोरेच कक्छा या पढ़थे रे। फेर ओ हा पढ़ई-लिखई मा कक्छा म दूसरइया नंबर मा हे अउ तयं पहिली नंबर मा। त मोर कोनहो जेवनी हाथ के अंगूठा ला कटवा देतेंव, ते मोर टुरा हा कक्छा मा पहिली नंबर मा आ जातिस रे।गुरु पूर्णिमा के दिन रिहिस। गुरु हा अपन जम्मो शिष्य मन ला दिक्छा देवत रिहिस अउ जम्मो सिस्य मन हा गुरुजी ला मुंह मांगा दक्छिना देवत रहय। अइसने मा एक झन शिस्य आघू मा आइस अऊ कहिस- गुरूजी मय तोर शिस्य अंव…
Read Moreफिल्मी गोठ: फिलमी लेखक अउ पारिश्रमिक 8 नव
छत्तीसगढ़ के फिलीम उद्योग म पटकथा अउ पटकथा लेखक मन बर उदासीनता दिखाई देथे। मानदेय के कमी या फेर फोकट म पटकथा लेना लेखक मन ल निरास कर दे हावय। बने लेखक अउ बने पटकथा के कमी के कारन इही आय। बने मानदेय के घोसना होय ले पटकथा पटा जही और छालीवुड म फिलीम के सुग्घर पंक्ति खड़ा हो जही। जब फिलीम हा परदा म दिखथे, हीरो नाचथे, हिरवइन झूमथे, खलनायक हा मार खाथे, गीत हा हिरदे म छा जाथे बाजा हा बढ़िया-बढ़िया बाजथे त सिरतोन म मजा आ जाथे।…
Read Moreनान्हे कहिनी : सिरिफ एक पेड़
बड़ उदास राहय सुकालू अउ दुकालू। घर- कुरिया, खेत-खार भांय-भांय लगय। कतको खातिन, कमातिन, पातिन, फेर मनछोट, अधूरा-अधूरा। आंधी म टूटे गिरे लिपटिस कस बगीचा लगय परिवार। ददा तो राहय फेर, दाई तो होथे दाई, कोनो नई पा सकंय ओखर गहराई। दाई तो छाता होथे, अउ ददा पितर पाख के महीना चलत राहय। नवमीं के पितर अवइया राहय ऊंखर दाई-ददा ल जीयत राखेबर, ओखर खुशी शांति बर, भागवत कहवाये राहंय। मंदिर बनवाए राहय। फेर दूनो भाई के मन ल शांति नई मिलिस। ऊंखर मन म घेरी-बेरी खटकय के दाई बर…
Read Moreपातर पान बंभुर के, केरा पान दलगीर
राऊत नाचा ह महाभारत काल के संस्कृति, कृसि, संस्कृति अउ भारत के लोक संस्कृति ले जुरे हावय। राऊत नाच राऊत मन के संस्कृति आय फेर ये ह भारतीय संस्कृति के पोषक घलो हे। भारत के संस्कृति कृसि प्रधान हे। ये कारन गाय-बइला, खेत-खार, गोबर-माटी अउ पेड़-पौधा, नदिया-नरवा ले सबो ल मया हावय। येला राऊत नाचा अउ ओखर दोहा के माध्यम ले समझे अउ देखे जा सकथे।’ जगमग-जगमग करत दीया के अंजोर ले देवारी के अंधियारी रात घला पुन्नी रात कस लागथे। लोगन के हृदय के अंगना म हर्स अउ उमंग…
Read Moreकहिनी : चटकन
‘ओ खाली परिया जमीन म न मंदिर बनाए जाय न मस्जिद बनाए जाय। ओमा एक अइसे आसरम बनाए जाए जेमा बेसहारा डोकरा, डोकरी, बइहा कस किंजरइया मनखे, अनाथ लोग लइका राहय। संग म गांव के अइसे मनखे जेखर गुंजाइस के लइक ठउर-ठिकाना नइ हे तउने मन ए आसरम म रहि सकंय। हिन्दू भाई अउ मुसलमान भाई आप मन मंदिर अउ मस्जिद बनवाए बर जउन चंदा सकेले हव तेला आसरम बनवाए बर लगा दव।’ सड़क तीर मा पीपर खाल्हे खाली परिया में जब बनही ते बजरंग बलीच के मंदिर बनही। ए…
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