मया के दीया

घर कुरिया, चारों मुड़ा होही अंजोरफुलवारी कस दिखही महाटी अऊ खोरजुर मिलके पिरित के रंग सजाबो रेआगे देवारी मया के दीया जलाबो रेबैरी भाव छोड़ के जम्मो बनव मितानजइसे माटी के रखवारी करथे किसानबो बोन जइसे बीजा ओइसने पाबो रेआगे देवारी मया के दीया जलाबो रेमने मन मुस्कुराये खेत म धान के बालीभुइयां करे सिंगार, लुगरा पहिरे हरियर लालीगांव के जम्मो देवी-देवता ल नेवता दे आबो रेआगे देवारी मया के दीया जलाबो रेअसीस दिही लक्ष्मीदाई होही उपकारलइका सियान सब ल मिलही मया दुलारबांट के खुशी जग म अपन खुशी पाबो…

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मन के दीया ल बार

कटय नहीं अंधियारचाहे लाख दीया ल बारहोही जगजग ले अंजोरमन के एक दीया ल बार।जाति-धरम भाषा के झगरा बंद होक जाहीमया पिरीत के रूंधना चौबंद हो जाहीसावन कीरा कस गंजा जाही संसार…सुने म न तो कान पिरावय न देखे म आंखीदेख सुन के कर नियाव, निकले मुख अमरित बानीकबीर कहे हे उड़ जय थोथा राहय सुपा में सार…तैंतीस कोटी देवी-देवता अउ कतको धरम-करमखड़-खड़ के भगवान चुनेन नई जानेन हम मरमहर मनखे भगवान के अंशी करले चिटिक सोच विचार…कुआं, तरिया, नदी-नरवा, फेर कतको कन हे पियासापगुरा लेयन सब घाट घठौंदा पानी…

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फिल्मी गोठ : छत्तीसगढ़ी फिलीम म बाल कलाकार

एक-एक ईंटा, एक-एक पथरा, रेती-सीमेंट अउ बड़ अकन मकान बनाए के जीनीस ले मिस्री ह एक सुग्घर मकान, भवन, महल के निर्माण करथे। ठीक वइसने एक फिलीम के निरमान म नान-नान जीनीस अउ कई झन व्यक्ति के सहयोग ले होथे। फिलीम म बाल कलाकर मन के भूमिका ल घलो छोड़े नई जा सकय। चाहे वो फिलीम मुंबइया हो, बंगाली हो, दक्षिण भारतीय हो उड़िया हो या फेर हमर छत्तीसगढ़िया हो। छत्तीसगढ़िया फिलीम के बाल कलाकार ले मोर भेंट होईस त मोला लागिस कि छत्तीसगढिया फिलीम घलो बाल कलाकार के बिना…

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कहिनी : दूध भात

डोकरा काहत रिहिस दूध भात खाहूं कहिके। उही पाय के लोटा ल धर के दूध मांगे बर आए हंव। होही ते दे देतेस? अतका म बिसवन्तीन किहिस- काला बतांव डोकरी। मेहा तो ए रोगही बिलई के मारे मर गेंव। ते नइ पतियाबे, मंझनिया बेरा अंधियारी के बेंस ला लगाए बर भूला गेंव अऊ नाहे बर चल देंव। आवत ले बिलई ह जम्मो कसेली भर दूध ला पी डरिस। नदिया के तीर मां नानकून गांव- ‘जामगांव’। जामगांव के बड़े गंउटिया बेलास ह संझउती बेरा अंगना म बिछे खटिया मां बइठे रिहिस…

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फिल्मी गोठ : फिलीम अउ साहित्य

को नों भी सुग्घर अउ महान फिलीम म या कहन कि जनप्रिय अउ मनप्रिय फिलीम म साहित्य के इसथान कहूं न कहूं जरूर रहिथे अउ कोनो फिलीम म साहित्य हे त निश्चित रूप ले वो महान कृति बन जाथे। हम बालीवुड के गोठ करन तब तो अइसन बड़ अकन फिलीम हा जुबान म आ जाथे, लेकिन जब हम छालीवुड माने छत्तीसगढ़ी फिलीम के बात ल लाथन त एक दू ठन फिलीम ला छोड़के अउ मोला फिलीम नइ दिखय जऊन म कोनो भी रूप म साहित्य के दर्शन होथे। साहित्य समाज…

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नान्‍हे कहिनी : रोजी

करे के इच्छा नई हे त छोड़व महराज! एहि साल भर पूरा करे के किरपा करव। भागवत घर हर बछर सत्यनारायण कथा अउ शंकर पूजा होवय। दू तीन पीढ़ी ले चलत रहिस हे। बड़ सुग्घर लगय, गांव भर के मनखे आवै, कथा सुने ल, परसाद झोकेल। भागवत के मन अउ अंगना दूनो भर जाय। फेर जम्मो आनंद मजा, किचकिच हो जय, महराज के भाव बियाना म। बबा जमाना म खाये बर खपरा न पीये बर पानी रहिस तेन दिन एहि गंवई के सहारा, रहिस हे, जीनगी के गुजारा इंहे ले…

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समय मांगथे सुधार,छत्तीसगढ़ी वर्णमाला एक बहस

एक डहर हम चाहथन के छत्तीसगढ़ी ल चारों मुड़ा विस्तार मिलय, अउ दूसर डहर लकीर के फकीर बने रहना चाहथन। कुआं के मेचका बने रहना चाहथन, त बात कइसे बनही? आज ले सौ-पचास साल पहिली हमर पुरखा मन नानकुन पटका पहिर के किंजरय, आज अइसना पहिरइया मन ला अशिक्षित अउ पिछड़ा कहे जाही। वइसने आज भासा के दर्जा प्राप्त छत्तीसगढ़ी ल ‘बोली’ के मापदण्ड म लिखबो तभो पिछड़ा अउ अशिक्षित माने जाबो। कोनो भी मनखे ह अपन अंतस के भाव ल कोनो दूसर मनखे ल समझाय खातिर जेन भासा के…

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भासा कइसना होना चाही?

छत्तीसगढ़ी भासा के लेखन ऊपर प्रस्न उठत हावय। कइसे बनिस ओमा कहाँ-कहाँ के कतेक सब्द समाय हावय। येला सब जानत हावयं। आज दूरदर्शन के हिन्दी कइसना हे येला सब सुनत हावयं। बोलचाल के हिन्दी अउ लिखे के हिन्दी अलग-अलग हावय। साहित्यिक हिन्दी अलग हावय। छत्तीसगढ़ी के संग घलो अभी अइसने होवत हावय। ये ह एक संधि काव्य आय। मैं अइसना समझथंव आज हिन्दी म अनेक सब्द अंग्रेजी समागे हावय वइसने छत्तीसगढ़ी म घलो अंग्रेजी हिन्दी के सब्द समागे हावय। येला स्वीकारे बर परही। लेखन म घलो बहुत फरक दिखाई देथे।…

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कहिनी : सिद्धू चोर

सब झन एती ओती माल-टाल टमरत राहंय। सिध्दू गोमहा कस ठाढ़े रिहिस। एती ओती झांकिस त देखथे चुल्हा म तसमई चूरत राहय। उही मेर कोठी म पीठ टेकाय डोकरी अउंघात राहय। सिध्दू गीस, अउ माली म तसमई हेर के खाय धर लीस। थोरिक बेरा म डोकरी ल जमहासी आईस। मुहुं फार के आऽऽऽ करके हथौरी ला मुंहु मेर लेगिस। सिध्दू ओरखिस डोकरी दाई इसारा करत हे मुहुं म तसमई डार। एक साहर राहय जी, साहर के ओप्पार गांव गोहड़ा राहय जी। कोरई ढेखरा अऊ खदर मसर टेकनी झिपारी के घर…

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अनुवाद : तीसर सर्ग : सरद ऋतु

कालिदास कृत ऋतुसंहारम् के छत्तीसगढ़ी अनुवाद- अओ मयारुककांसी फूल केओन्हा पहिरे,फूले कमल कसहाँसत सुघ्घर मुंहरनमदमातेहंसा के बोली असछमकत पैजनियां वालीपाके धान के पिंवरी लेसुघ्घर येकसरी देंह केमोहनी रूपनवा बहुरिया कससीत रितु ह आगे। सीतरितुआय ले कांसी फूल ले धरतीचंदा अंजोर म रतिहाहंसा मन लेपानी नदिया के कुई ले तरियाफूल म लहसे छतवन ले बन अउमालती ले बाग बगइचा हरचारों खूंट हो गेहे उज्जर फर-फर। ये बेरा म तुलमुलही, मन भावननान-नान मछरी के करधन चारों खूंटअंडा लर के उज्जरमाली पहिरेचाकर पाट कसकनिहावालीबिन सउर केमोटियारिन कसधीरे-धीरे रेंगत हेनदिया। चांदी, संख अउ कमल कसउज्जरपानी…

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