कहिनी फूल सुन्दरी राजकुमारी

ओकर बइसाखी मन फेंका गय रहिन। पीछू-पीछू एक झन टूरी आत रहिस तेन ह ओकर तीर म आइस। ओला उठा के बइठारिस अउ बइसाखी मन ल ला के दिस। लतेल के साबूत गोड़ म लागे रहिस तेला देखके ओहा कहिस- ‘अरे तोला तो बने लाग देहे हे।’ अतका बोल के ओकर घाव ल पोंछे अउ सहलाय लगिस।ओ हा अपंग रहिस। लइकई म पोलियो होगे रहिस। डेरी गोड़ के माड़ी खाल्हे ह पतला अउ कमजोर हो गे रहिस। दाई-ददा मनके पेट-पीठ बरोबर रहिस त का ओकर इलाज करातिन। वइसे भी गांव…

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बियंग : पारसद ला फदल्लाराम के फोन

जय हो छत्तीसगढ़ महतारी। हम गरीब मन ऊपर तोर अइसने छइंहा रहय दाई। हमर छत्तीसगढ़ के गरीब मन अइसे-वइसे नो हंय पारसद जी। वो मन उसना चाउंर ल उहुंचे कंट्रोल वाले ल बेच देथे। कन्ट्रोल मालिक के घलो पौ बारा। हां हलो… कोन… पारसद जी? हां, मैं फदल्ला राम बोलत हों। अरे नहीं… जदल्ला राम नहीं, फदल्लाराम बोलत हों-फदल्लाराम। का करवं पारसद जी। दाई-ददा मन तो बने ‘गनेस’ नाम राखे रहिन हें। फेर मैं थोरिक मोटा का गेंव, मोर नाम फदल्लाराम धरागे। अब मोर जुन्ना नाम हर तोपागे। अब ‘गनेस’…

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मन के लाड़ू

रोज बिगड़ई म परिसान होके बिदही तीस हजार म मेटाडोर ल बेच दीस। घर म न चांउर रहीस न दार, उई पइसा ल सब उड़ात गिस। सब पइसा सिरागे त बिदही रोजी-रोटी कमाय जाय लगिस।’समारू ल गांव के सब छोटे बड़े मन बढ़िया मान गौन करयं। समारू हर तको अपन ले बड़े के गोड़ छू के पांव परथे। समारू हर गांव म ककरो घर पर लर जाथे जिहा दंऊड़ के आ जाथे। अपने सब काम ल छोड़ के। ककरो घर चांउर-दार नई रहय त समारू हर चाउर-दार, लकड़ी-फाटा सब दे…

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माँ-छत्तीसगढ़ के महत्व

जेन ह जिनगी भर लइका ल देते रहिथे। तभे तो प्रसाद जी कहे हे अतेक सुग्घर के मन म वोला गुनगुनाते रहाय तइसे लागथे इस अर्पण में कुछ और नहीं, केवल उत्सर्ग छलकता है। मैं दे दूं और न फिर कुछ लूं, इतना ही सरल झलकता है। व्यास जी कहे हे- ‘गुनी लइका ह दाई अऊ ददा दूनू ल एक संग देखय त पहिली दाई ल परनाम करय पीछू ददा ल।’सुग्घर समाज म पढ़े-लिखे लइका मन जहां अपन पांव म खड़ा हो जाथे तहां अपन जनम देवइया महतारी ल अपन…

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जाड़ मा हाथ पांव चरका फाटथे

सुर सुर सुर पुरवईया चले, रूख राई हालत हे।पूस के महीना कथरी, कमरा काम नई आवते॥सुटुर-सुटुर हवा मा पुटुर-पुटुर पोटा कांपत हे।पानी ला देख के जर जुड़हा ह भागत हे॥ब्यारा मा दौंरी बेलन के आवाज ह सुनावत हे।गोरसी भूर्री के मजा मनखे जम्मो उठावत हे॥खाय-पिये के कमी नईए लोटा-लोटा चाय ढरकावत हे।हरियर साग-भाजी ल मन भर झड़कावत हे॥पताल के फतका धनिया संग मजा आवत हे।मेथी के फोरन मा सब्जी अब्बड़ ममहावत हे।स्वास दमा में खांस-खांस के बिमरहा अकबकावत हे।सरसों तेल ल हांथ-पांव मा उत्ता धुर्रा लगावत हे॥गरीब ल कोन कहे…

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हमर घर गाय नइए

हमर घर गाय नइए, अब्बड़ बडा बाय होगे।द्वापर मं काहयं, लेवना-लेवनाकलजुग मं कहिथें, देवना-देवनाकोठा म गाय नहीं, अलविदा, टाटा बाय होगे।हमर घर गाय नइए…गिलास, लोटा धरे-धरेमोर दिमाक आंय-बांय होगेखोजे म दूध मिले नहीं,लाल-लाल चाय होगे,दूध टूटहा लइका ल जियाय बर, बड़ा बकवाय होगे…दूध बिन कहां बनहीं,खोवा अउ रबड़ीखाय बर कहां मिलही,तसमई अउ रबड़ीपीके लस्सी, जिए सौ साल अस्सी, फेर अब तो तरसाय होगे…कब वो बेरा आहीदूध-दही के नदिया बोहाही,हे माखन चोर, सुन तो मोरदूध-दही मं छत्तीसगढ़ ल बोरमरत बेरा, मनखे ल, गाय के पूछी, धराय बर, सबके आम राय होगे…मकसूदन…

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लींग परीक्छन के परिनाम

आज कई परिवार एक या दू लड़की ले संतुस्ट हावय अउ अपन लड़की ल इंजीनियर डाक्टर बनाये के सोचत हे। पिछड़ा समाज घलो ये विचार ल स्वीकारत अपन बेटी मन ल पढ़ावत हावय।आज के जुग ह बिज्ञान के जुग आय। आज बिज्ञान के सहारा ले मनखे ह कहां ले कहां पहुंच गे हे। जम्मो जिनिस के बिमारी ल जाने बर कतको किसम के नवां-नवां उपकरन के ईजाद होय हे। मनखे ह मंगल अऊ चंद्र ग्रह म जाके बिज्ञान के महत्व ल उजागर करत हे। कंपुटर अऊ मोबाईल युग ह कतको…

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नान्हे गम्मत : झिटकू-मिटकू

किताब, डरेस अउ मंझनिया के जेवन के संगे संग कई ठन सुविधा देवत हे। छात्रवृत्ति पइसा तको देथे। जेन ह जादा गरीब हे अपन लइका मन ल नइ पढ़ा सकंय उंकर बर जगा-जगा छात्रावास आसरम अउ डारमेटरी इसकूल चलावत हे।‘दिरिस्य पहला’(मिटकू ह छेरी-पठरू चरावत रहिथे उही डहर ले झिटकू ह इसकूल जाथे। मिटकू ह झिटकू ल देखके दऊंड़ के ओकर मेर आथे अउ कहिथे):मिटकू: अरे यार झिटकू, तैं तो साहेब असन दिखत हस। यहा दे जूता-मोजा, बेल्ट अउ ये ह काय हरे यार?झिटकू: अरे! मोर संगवारी, ये ल टाई कहिथे…

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मध्यान्ह भोजन अउ गांव के कुकुर

इसकुल म मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम चलत हेलइका मन के संगे-संग गांव के कुकुर घलो पलत हें।मंझनिया जइसे ही गुरुजीखाना खाय के छुट्टी के घंटी बजाथेलइका मन के पहिली कुकुर आके बइठ जाथे।अब रसोइया राम भरोसेलइका म ल पहिली खाना परोसेके कुकुर ल परोसे!एक दिन पढ़ात-पढ़ात गुरुजीडेढ बजे घंटी बजाय बर भुलागे,कुकुर मन गुरार्वत कक्छा भीतरी आगे-चल मार घंटी अउ दे छुट्टी!इसकुल म एक झन नवा-नवा शिक्षाकर्मी आय रहेओ ह मध्यान्ह भोजन अउ कुकुर के गनित लनइ समझ पाय रहे,एक दिन सुंटी उठा के मार पारिसअउ कुकुर मन ल इसकुल ले…

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बकठी दाई के गांव

एती बकठी दाई के मिहनत के हाथ रहीस। ओहा बिहानिया ले रतिहा सुतत तक काहीं न काही बुता करते राहय। ओकर घर के मन घलो मिहनत करे म बरोबरी ले ओखर संग देवयं। तीर- तार के गांव म इज्जत बाढ़गे, लइका मन ल बने संस्कार मिलीस।कोनो माई लोगन ला अगर कोनो बकठी कही देही तो ओहा गुस्सा में आगी असन बरे बर धर लिही। फेर बकठी दाई ला कभु ये बात हा खराब नई लागिस। सिरतोन में बिचारी हा बकठी रहिस। बिहाव होय के बाद दस बच्छर तक आगोरिस ओकर…

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