सुर सुर सुर पुरवईया चले, रूख राई हालत हे।पूस के महीना कथरी, कमरा काम नई आवते॥सुटुर-सुटुर हवा मा पुटुर-पुटुर पोटा कांपत हे।पानी ला देख के जर जुड़हा ह भागत हे॥ब्यारा मा दौंरी बेलन के आवाज ह सुनावत हे।गोरसी भूर्री के मजा मनखे जम्मो उठावत हे॥खाय-पिये के कमी नईए लोटा-लोटा चाय ढरकावत हे।हरियर साग-भाजी ल मन भर झड़कावत हे॥पताल के फतका धनिया संग मजा आवत हे।मेथी के फोरन मा सब्जी अब्बड़ ममहावत हे।स्वास दमा में खांस-खांस के बिमरहा अकबकावत हे।सरसों तेल ल हांथ-पांव मा उत्ता धुर्रा लगावत हे॥गरीब ल कोन कहे…
Read MoreMonth: February 2011
हमर घर गाय नइए
हमर घर गाय नइए, अब्बड़ बडा बाय होगे।द्वापर मं काहयं, लेवना-लेवनाकलजुग मं कहिथें, देवना-देवनाकोठा म गाय नहीं, अलविदा, टाटा बाय होगे।हमर घर गाय नइए…गिलास, लोटा धरे-धरेमोर दिमाक आंय-बांय होगेखोजे म दूध मिले नहीं,लाल-लाल चाय होगे,दूध टूटहा लइका ल जियाय बर, बड़ा बकवाय होगे…दूध बिन कहां बनहीं,खोवा अउ रबड़ीखाय बर कहां मिलही,तसमई अउ रबड़ीपीके लस्सी, जिए सौ साल अस्सी, फेर अब तो तरसाय होगे…कब वो बेरा आहीदूध-दही के नदिया बोहाही,हे माखन चोर, सुन तो मोरदूध-दही मं छत्तीसगढ़ ल बोरमरत बेरा, मनखे ल, गाय के पूछी, धराय बर, सबके आम राय होगे…मकसूदन…
Read Moreलींग परीक्छन के परिनाम
आज कई परिवार एक या दू लड़की ले संतुस्ट हावय अउ अपन लड़की ल इंजीनियर डाक्टर बनाये के सोचत हे। पिछड़ा समाज घलो ये विचार ल स्वीकारत अपन बेटी मन ल पढ़ावत हावय।आज के जुग ह बिज्ञान के जुग आय। आज बिज्ञान के सहारा ले मनखे ह कहां ले कहां पहुंच गे हे। जम्मो जिनिस के बिमारी ल जाने बर कतको किसम के नवां-नवां उपकरन के ईजाद होय हे। मनखे ह मंगल अऊ चंद्र ग्रह म जाके बिज्ञान के महत्व ल उजागर करत हे। कंपुटर अऊ मोबाईल युग ह कतको…
Read Moreनान्हे गम्मत : झिटकू-मिटकू
किताब, डरेस अउ मंझनिया के जेवन के संगे संग कई ठन सुविधा देवत हे। छात्रवृत्ति पइसा तको देथे। जेन ह जादा गरीब हे अपन लइका मन ल नइ पढ़ा सकंय उंकर बर जगा-जगा छात्रावास आसरम अउ डारमेटरी इसकूल चलावत हे।‘दिरिस्य पहला’(मिटकू ह छेरी-पठरू चरावत रहिथे उही डहर ले झिटकू ह इसकूल जाथे। मिटकू ह झिटकू ल देखके दऊंड़ के ओकर मेर आथे अउ कहिथे):मिटकू: अरे यार झिटकू, तैं तो साहेब असन दिखत हस। यहा दे जूता-मोजा, बेल्ट अउ ये ह काय हरे यार?झिटकू: अरे! मोर संगवारी, ये ल टाई कहिथे…
Read Moreमध्यान्ह भोजन अउ गांव के कुकुर
इसकुल म मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम चलत हेलइका मन के संगे-संग गांव के कुकुर घलो पलत हें।मंझनिया जइसे ही गुरुजीखाना खाय के छुट्टी के घंटी बजाथेलइका मन के पहिली कुकुर आके बइठ जाथे।अब रसोइया राम भरोसेलइका म ल पहिली खाना परोसेके कुकुर ल परोसे!एक दिन पढ़ात-पढ़ात गुरुजीडेढ बजे घंटी बजाय बर भुलागे,कुकुर मन गुरार्वत कक्छा भीतरी आगे-चल मार घंटी अउ दे छुट्टी!इसकुल म एक झन नवा-नवा शिक्षाकर्मी आय रहेओ ह मध्यान्ह भोजन अउ कुकुर के गनित लनइ समझ पाय रहे,एक दिन सुंटी उठा के मार पारिसअउ कुकुर मन ल इसकुल ले…
Read Moreबकठी दाई के गांव
एती बकठी दाई के मिहनत के हाथ रहीस। ओहा बिहानिया ले रतिहा सुतत तक काहीं न काही बुता करते राहय। ओकर घर के मन घलो मिहनत करे म बरोबरी ले ओखर संग देवयं। तीर- तार के गांव म इज्जत बाढ़गे, लइका मन ल बने संस्कार मिलीस।कोनो माई लोगन ला अगर कोनो बकठी कही देही तो ओहा गुस्सा में आगी असन बरे बर धर लिही। फेर बकठी दाई ला कभु ये बात हा खराब नई लागिस। सिरतोन में बिचारी हा बकठी रहिस। बिहाव होय के बाद दस बच्छर तक आगोरिस ओकर…
Read Moreमितान के मया देखे बर उमड़िस भीड़
‘मितान’ परंपरा ला अपन छत्तीसगढ़ी फिलिम ‘मितान 420’ मा संघारत फिलिम बनाए हे। ओखर बाते अलग हे। पहिली च दिन सिनेमा ला देखे बर अतका भीड़ उमिड़स कि देखइया-सुनइया के संग फिलिम के कलाकार, गीतकार, संगीतकार, अउ जम्मो छत्तीसगढ़ी सिनेमा ले जुड़े लोगन गदगद होगे। फिलिम के मनभावन गीत घलो चर्चा मा हे। जेमा से खास गीत हे- कुहुक, कुहुक बोले काली कोयरिया, मन के मंजूर नाचे संगी मोर….। उछाह अउ उमंग भरे गीत सुनके मन मगन हो जथे। दूसरइया गीत हे जादू चलाए वो, बइहा बनाए ना तोर खोपा…
Read Moreनान्हे कहिनी – दहकत गोरसी म करा बरसगे
ये बखत कतका जाड़ परिस अउ कतका गरमी रही येला प्रकृति के नारी छुवइया मन बने बताही। रेडियो अउ टीबी वाला मन ओकरे बात ल पतिया के सरी दुनिया म बात बगराथें। टीबी म संझा के समाचार सुन के मैं मुड़ी गोड़ ले गरम ओनहा पहिरेंव अउ रातपाली काम म जाय बर निकलेंव। गर्मी होवे चाहे ठंड, खाय बर कमाय ल परथे। दस बजती रात म पूरा शहर कोहरा ले तोपा गे रिहीस। गली म एक्का-दुक्का मनखे रिहीस। हमन गली के आखिरी कोन्टा म रिक्सा वाला के परिवार रिथे। कोनो…
Read Moreछत्तीसगढ़ गीत म सिंगार रस
छत्तीसगढ़ी भाखा ल भले भारत सरकार ह भासा के मान्यता नइ देये फेर येमा जम्मो रस के गीत अउ गोठ समाय हे। तभे तो गीत म ये भाखा सही कोनो मीठ अउ धीरलगहा भाखा नइए केहे हे। मोर भाखा संग दया-मया के, सुग्घर हावय मिलाप रे। अइसन छत्तीसगढ़िया भाखा, ककरो संग झन नाप रे॥ ये भाखा के मिठास अतेक हे ते ककरो संग तुलना नइ करे जा सकय। सिंगार रस म छत्तीसगढ़ी के कतको गीत हे जेला रेडियो अउ पोंगा रेडियो म सुने ल मिलथे जइसे टूरा अपन पिरोहील ल…
Read Moreकलेवा
ये ह, छत्तीसगढ़ के कलेवा आय। तिहार बार के रोटी-पीठा आय॥ अइरसा, अंगाकर रोटी, इडहर, कढ़ी। करी लाड़ू, कोचईपाग, कोचईपीठा, पपची॥ खस्ता, खाजा, खुरमा, खुरमी। गुलगुला, गुरहाचीला, गुरहा भजिया, कुसली। चीला नूनहा, चौसेला, घुघरी, ठेठरी। डुबकी, बफौरी, डुबका, दूधफरा। तुमापाग, तिलगुझिया, तसमई, कतरा। दुधकुसली, देहरौरी, तुमा तसमई, दही बरा॥ नमकीन, नूनहाकरा, नूनहाचीला, पूरनपूरी। पापड़ी, पापर, पकुवा, पनकरी॥ बुदिंया, पनबुदिंया, बुदिंयालाड़ू, बोबरा। भजिया, मिर्चीभजिया, प्याजीबड़ा, मालपुआ॥ मुरकू, मुगौड़ी, मूंगकतरा, मूंगबड़ा। मोतीचूर, मुर्रालाड़ू, रखियापाक, हलुवा॥ रेहनकतरा, तिखुरकतरा, लपसी, सिंघाड़ा कतरा। सेवई, सोंहारी, रसगुल्ला, मोहनभोग॥ जलेबी, गुरहाचीला, तिललाड़ू, तिलपापड़ी। सलौनी, चिरौंजी, लाई, बेसनपापड़ी,…
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