बुधारू के जीवन

बूढ़त काल में खेती ल रेंढ़त हस। ते हमला कहिबे न ददा, जा बेटा बुधारू भारा करपा खेती-खार मे परे हे, गाड़ा पीढ़ा खोज के लान डार अऊ धान-पान ल मिंज डार। हमन तो नी जा सकन ददा। चाहे कोनो चोराय, चाहे कोनो लुकाय। बुधारू अपन बाप ल खिसिया-खिसिया के काहत रथे। बुधारू के पुर्रू ददा ह खेती खार ल परे डरे देखे त ओकर मन ल रोआसी आ जथे। अतका खरचा पानी करके धान-पान ल बोए हन अउ आए दिन में दूसर मन ह लेग जही- चोरा लीही त…

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छत्तीसगढ़ भासा के असली सवाल सोझ-सोझ बात

छत्तीसगढ़ म रा.ब.क्ष.ण. के उच्चारन नई होय। अउ उच्चारन नई होय तिही पाय के जुन्ना विद्वान मन ये वर्न मन ल वर्नमाला म सामिल नइ करिन अउ छत्तीसगढ़ी वर्नमाला म ये वर्न मन गैरहाजिर हे। तौ ये वर्न मन ल जब मन लगिस सामिल कर लौ अउ जब मन लगिस छटिया दौ, ये नीति ल ठीक नइ केहे जा सकय। हां, यदि सब विद्वान मन हिंदी के वर्नमाला बर बिना बदलाव के एकमत हो जाय तब बात दूसर रइही। तब अइसन म सब्द मन के दोहरा परयोग ले बांचे ल…

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लोक कथा म ‘दसमत कइना’ के किस्सा

छत्तीसगढ़ म लोक कथा के अनेक रूप देखे ल मिलथे। जेमा प्रेम प्रधान, विरह के वेदना म फिजे लोक कथा, आध्यात्मिक लोक कथा, वीर रस के लोक कथा एकरे संगे संग जनजातीय आधार म घलो कथा के प्रचलन हाबे। अंचल के प्रतिनिधित्व करत ये छत्तीसगढ़ी लोककथा मन आज भी सियान बबा के मुंह ले सुने ल मिलथे। कतकोन लोक कथा ह तो गाथा गायन के रूप म देस विदेस म अपन सोर बगरावथे। लोक कथा ‘दसमत कइना’ घलो अइसने प्रचलित लोक कथा आय जेला गाथा के रूप में घलो बेरा-बेरा…

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लोक कहिनी : ठोली बोली

छकड़ा भर खार पीये के जिनिस देख के सबे गांव वाला मन पनछाय धर लिन कब चूरय त कब सपेटन। ए क ठन गांव म नाऊ राहय। बड़ चतुरा अऊ चड़बांक। तइहा पइंत के कंथ ली आय। जाने ले तुंहरेच नी जाने ले तुंहरेच, गांव भर के हक-हुन्नर, मगनी, बरनी, छट्ठी, बरही अऊ कोनो घला चरझनियां बुता बर छड़ीदार राहय। घरो-घर नेवता जोहारे अऊ ओट्टिंट (आघात) ले झारे-झार जेवन सपेटे। अक तहा घला झोंकावय। घर लेगय। ओकरो घर एक झन टूरा पिला होइस। त कोनो-कोनो ओलियांय। ‘कइसे मर्दनिया तै सबके…

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कहिनी : बेर्रा टूरा बेर्रा टूरा

सहदेव गुरूजी के ओ दिन इसकूल में पहिली दिन रहीस। ओहा पहिली कक्षा में लइका मन के हाजिरी लेवत रहीस। ओतके बेरा इसकूल में लइका मन गोहार पारे बर धर लीन। ”बेर्रा टूरा बेर्रा टूरा अपन दाई बर जठाथे पैरा” कहीके। गुरूजी कक्छा ले बाहिर निकल के देखीस तव उहां एक झन सोगसोगवान गड़हन के लइका अपन महतारी संग कक्षा के बाहिर खड़े रहीस। गुरूजी हा लइका मन ला दपकार के चुप करइस। लइका हा तो सुसक सुसक के रोवत रहीस। ओकर महतारी के आंखी हा घलो डबडबा गे रहीस।…

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कबिता : बसंत रितु आथे!

हासत हे पाना डारा। लहलहात हे बन के चारा॥ कुद कुद बेंदरा खाथे। रितु राज बसंत आथे॥ चिरई चिरगुन चहके लागे। गुलाबी जाड़ अब आगे॥ लहलहात हे खेत खार। रुख राई लगे हे मेड़ पार॥ पेड़ ले अब गिरत हे पान। अइसे हे बसंत रितु के मान॥ टेसु सेम्हरा कस फूल फूलत हे। कोयली ये डार ले ओ डार झूलत हे॥ झिंगरा मेकरा सब कहय। बसंत ऋतु हरदम रहय॥ न पानी न बादर घाम। दुख शासर न काम॥ फुलगे आमा डारा। कुहकय कोयली बिचारा॥ उड़त हे आसमान म फुतका। कूद-कूद…

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आन के तान

संगी हो! आजकाल मोला एक ठिक जबड़ भारी रोग हो गे हे। रोग का होय हे, मोर जीव के काल हो गे हे। रोग ये हे के मैं हर, आन कहत-कहत तान कहि पारथां, कोनो आन कहिथें त मैं हर तान समझ पारथों। पाछू, आठ महीना ले मोर कनिहा मा पीरा ऊचे लग गे। सोचेंव लापरवाही बने नोहय। कोनो डॉक्टर ला देखई देत हों। एक झिक कोन्टा-छाप डॉक्टर करा गेंव। देखथों ओकर नाक हर आलूगुण्डा कस फूले रहय। मैं सोंचेव जब ये हर अपने ‘नाक’ नई ओसका सकत हे त…

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नाटक अऊ डॉ. खूबचंद बघेल

आज जरूरत हे अइसना साहित्यकार के जेन ह छत्तीसगढ़ के धार्मिक राजनैतिक अऊ सामाजिक परिवेस के दरसन अपन लेखन के माध्यम ले करा सकय। बिना ये कहे के मैं ह पहिली नाटककार आवं के कवि आंव। आज के कुछ लेखक मन ये सोच के लिखत हावंय के मैं ह कोन मेर फिट होहूं। जल्द बाजी म लिखे साहित्य आज के छत्तीसगढ़ के परिवेस के दरसन नई करावय। अइसना सबो लेखक नई करत हावंय फेर कुछ मन के इही स्थिति हावय। डॉ. खूबचंद बघेल ये छत्तीसगढ़ के धरती के पहिली नाटककार…

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कहिनी : लछमी

मास्टर ह रखवार ल कथे- चल जी मंय तोला परमान भीतरी दूंहू आ कहिके रखवार अऊ रऊत संग गुरुजी ह भीतरी म जाथे, गरूआ मन ओला देख के बिदके ल लगथे एती-ओती भागे ल धरथे त रखवार ह हांसथे- ले जम्मो तो तोला देखके भीतरी म भागथे बड़ा गाय वाला बनथस। मास्टर कथे अभी देख न जी परमान ल अऊ मास्टर ह हूंत कराथे- अरे सुकवारो, लछमी गायत्री, बुधियन्तीन, सुक्रती, सुती आओ लछमी दाई हो। गाय मन ओरी पारी आगे मास्टर के चारो कोती झूम जथे। भभगवान ह सिरीस्टी ल…

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कहिनी : ममता

ममता एक झन ल पूछिस जेहा गाड़ी म बइठे रीहिस। का होगे? कइसे लागत हे एला ओ मनखे ह थोरिक ढकेलहा कस जुबान दिस मोर गोसईन हरे। कालीचे भात रांधत-रांधत लेसागे। उही ल अस्पताल लाने हावन। म मता नांवेच ल सुनके पता चल जथे कि कतिक मया ल समोय हे अपन भीतरी। ममता अऊ मया के अगम दहरा हरे ममता बेटी के अंतस ह। नपन ले पढ़ई-लिखई म गजब हुसियार। अइसन गुणवंतीन बेटी ल काकरो नजर झन लग जाय कहिके घेरी-बेरी काजर आंजे ओकर दाई रमोतिन ह। फेर करिया काजर…

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